'डार्क वेब' से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व की चर्चा करते हुए इसे उपयोग में लाने संबंधी चुनौतियों पर प्रकाश डालें।
19 Nov, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी
हल करने का दृष्टिकोण-
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डार्क वेब अथवा डार्क नेट इंटरनेट का वह भाग है जिसे आमतौर पर प्रयुक्त किये जाने वाले सर्च इंजन से एक्सेस नहीं किया जा सकता। इसका इस्तेमाल मानव तस्करी, मादक पदार्थों की खरीद और बिक्री, हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है। डार्क वेब की साइट्स को टॉर (TOR-The Onion Router) एन्क्रिप्शन टूल की सहायता से छुपा दिया जाता है जिससे इन तक सामान्य सर्च इंजन से नहीं पहुँचा जा सकता। इन तक पहुँच के लिये एक विशेष टूल टॉर का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसमें एकल असुरक्षित सर्वर के विपरीत नोड्स के एक नेटवर्क का उपयोग करते हुए परत-दर-परत डेटा का एन्क्रिप्शन होता है जिससे इसके प्रयोगकर्त्ताओं की गोपनीयता बनी रहती है।
डार्क वेब की उपयोगिता:
नियंत्रण/सेंसरशिप से बचाव के लिये: बंद समाज अत्यधिक नियंत्रण या सेंसरशिप का सामना कर रहे लोग डार्क नेट का उपयोग अपने समाज से बाहर के दूसरे व्यक्तियों के साथ संवाद के लिये कर सकते हैं।
गुमनामी और गोपनीयता: वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में सरकार द्वारा जासूसी और डेटा संग्रह के बारे में बढ़ रही अनियमितताओं के कारण खुले समाज के व्यक्तियों को भी डार्क नेट के उपयोग में रुचि हो सकती है।
यह मुखबिरों और पत्रकारों के लिये संचार में गोपनीयता बनाए रखने तथा जानकारी लीक करने एवं स्थानांतरित करने हेतु उपयोगी है।
डार्क वेब से संबंधित चुनौतियां-
अवैध गतिविधियों की सुगमता: डार्क नेट पर संचालित गतिविधियों का एक बड़ा भाग अवैध है। डार्क नेट एक स्तर की पहचान सुरक्षा प्रदान करता है जो कि सतही नेट प्रदान नहीं करता है।
डार्क नेट एक काला बाज़ार की तरह है जहाँ अवैध गतिविधियाँ संचालित होती हैं।
अपराधी वर्ग किसी की नज़र में आने और पकड़े जाने से बचने के लिये अपनी पहचान छुपाने के उद्देश्य से डार्क नेट की ओर आकर्षित हुए हैं। इसलिये यह आश्चर्यजनक नहीं है कि कई चर्चित हैक और डेटा उल्लंघनों के मामले किसी-न-किसी प्रकार डार्क नेट से संबद्ध पाए गए हैं।
डार्क नेट की सापेक्ष अभेद्यता ने इसे ड्रग डीलरों, हथियार तस्करों, चाइल्ड पोर्नोग्राफी संग्रहकर्त्ताओं तथा वित्तीय और शारीरिक अपराधों में शामिल अन्य अपराधियों के लिये एक प्रमुख ज़ोन बना दिया है।
यदि संभावित क्रेता की डार्क नेट पर ऐसी वेबसाइट्स तक पहुँच हो जाए तो इनके माध्यम से विलुप्तप्राय वन्यजीव से लेकर विस्फोटक सामग्री एवं किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों की खरीद की जा सकती है।
सिल्क रोड मार्केटप्लेस नामक वेबसाइट डार्क नेटवर्क का एक प्रसिद्ध उदाहरण है जिस पर हथियारों सहित विभिन्न प्रकार की अवैध वस्तुओं की खरीद एवं बिक्री की जाती थी। यद्यपि इसे वर्ष 2013 में सरकार द्वारा बंद करा दिया गया किंतु इसने ऐसे कई अन्य बाज़ारों के उभार को प्रेरित किया।
सक्रियतावादियों और क्रांतिकारियों द्वारा डार्क नेट का उपयोग अपने संगठन के लिये किया जाता है जहाँ सरकार द्वारा उनकी गतिविधियों की निगरानी या उन्हें पकड़े जाने का भय कम होता है।
आतंकवादियों द्वारा डार्क नेट का उपयोग साथी आतंकवादियों तक सूचनाओं के प्रसार, उनकी भर्ती और उनमें कट्टरता का प्रसार, अपने आतंकी विचारों के प्रचार-प्रसार, धन जुटाने तथा अपने कार्यों व हमलों के समन्वय के लिये किया जाता है।
आतंकवादी बिटकॉइन एवं अन्य क्रिप्टोकरेंसी जैसी आभासी मुद्राओं का उपयोग करके विस्फोटक पदार्थों एवं हथियारों की अवैध खरीद के लिये भी डार्क नेट का उपयोग करते हैं।
सुरक्षा विशेषज्ञों का दावा है कि हैकिंग और धोखेबाज़ी में शामिल व्यक्ति डार्क वेब पर चर्चा मंचों के माध्यम से पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण और औद्योगिक नियंत्रण प्रणाली तक पहुँच की पेशकश करने लगे हैं जो विश्व भर के महत्तवपूर्ण अवसंरचनात्मक नेटवर्कों की सुरक्षा के लिये बड़ी चुनौती हो सकती है।
पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण प्रणाली का उपयोग परमाणु ऊर्जा स्टेशनों, तेल रिफाइनरियों और रासायनिक संयंत्रों जैसी सुविधाओं के संचालन के लिये किया जाता है इसलिये यदि साइबर अपराधियों को इन प्रमुख नेटवर्कों तक पहुँच प्राप्त हो गई तो इसके परिणाम अत्यंत घातक हो सकते हैं।
निष्कर्षतः वित्तीय क्षेत्र में क्रिप्टोकरेंसी के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए यह संभव है कि भविष्य में प्रतिदिन के इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के लिये भी डार्क नेट सामान्य रूप से उपलब्ध हो जाएगा। वहीं अपराधियों के लिये पहचान और गतिविधियों को गुप्त रखने का माध्यम होने के साथ यहाँ पूर्ण गोपनीयता की गारंटी नहीं है। डार्क नेट द्वारा उत्पन्न खतरों से निपटने के लिये दुनिया भर की सरकारों को अपने साइबर सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करना चाहिये तथा विश्व भर के साइबर स्पेस की सुरक्षा के लिये सरकारों को खुफिया ज़ानकारी, सूचना, तकनीकी और अनुभवों को साझा करते हुए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिये। भारत को साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास और कर्मियों के प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण पर पर्याप्त निवेश करना चाहिये।