ईरान और अमेरिका के मध्य तनाव न केवल मध्य-पूर्व अपितु भारत के भी आर्थिक व सामरिक हितों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। स्पष्ट करें।
19 Nov, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हल करने का दृष्टिकोण-
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संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2020 के प्रारंभ में ईरान की कुद्स फोर्स के प्रमुख और इरानी सेना के शीर्ष अधिकारी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी सहित सेना के कई अन्य अधिकारियों को बगदाद हवाई अड्डे के बाहर हवाई हमले में मार गिराया था। इस घटना के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुँच गया था। जहां अमेरिका ने इसे अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिहाज से उठाया गया कदम बताया , तो वहीं ईरान ने इसे युद्ध का कारण माना । इस घटना के पाँच माह बाद ईरान के एक न्यायालय ने ईरानी सेना के शीर्ष अधिकारी की हत्या करने व ईरान में आतंकवादी गतिविधियों को प्रायोजित करने के आरोप में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत 30 अन्य लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश ज़ारी किया है। इसके साथ ही अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिये इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस
जारी करने की भी माँग की गई है। इस प्रकार दोनों देशों के मध्य तनाव बढ़ रहा है।
पश्चिम एशिया पर पड़ने वाला प्रभाव -
यदि यह तनाव सैन्य संघर्ष में तब्दील हो जाता है तो इस तनाव का सबसे अधिक प्रभाव पश्चिम एशिया पर पड़ने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका कि सोच सीमित सैनिक संघर्ष के माध्यम से ईरान से अपनी मांगे मनवाने की है जो कि भ्रामक है। यदि अमेरिका, ईरान पर कार्यवाही करता है तो संभव है कि ईरान भी जवाबी कार्यवाही करेगा। यदि ईरान भी सैन्य कार्यवाही करता है तो वह अमेरिकी सहयोगियों जैसे- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात तथा इसराइल में स्थित अमेरिका के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाएगा। जिससे पूरा खाड़ी क्षेत्र व पश्चिम एशिया संघर्ष का मैदान बन सकता है। इसके साथ ही यदि ईरान होर्मुज़ जलसंधि को भी बाधित करने का प्रयास करता है, तो खाड़ी देशों पर निर्भर कई देशों में तेल का संकट गंभीर रूप ले सकता है।
भारत पर प्रभाव -
इसके अलावा खाड़ी देशों में रह रहे भारतीय अपने सगे-संबंधियों को करीब प्रतिवर्ष लगभग 40 अरब डालर की मुद्रा रेमिटेंसेस के रूप में भेजते हैं। यदि मध्य-पूर्व में किसी भी प्रकार का संघर्ष होता है तो भारत को इसका आर्थिक खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है।