‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7)’ को स्पष्ट कीजिये। क्या यह अधिनियम भ्रष्टाचार, प्रशासनिक शिथिलता व अनावश्यक वित्तीय बोझ को बढ़ावा देता है। इस अधिनियम के संदर्भ में चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों की चर्चा कीजिये?
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अधिनियम की धारा 33(7) को स्पष्ट करें।
- अधिनियम द्वारा गलत प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने के संदर्भ में अपना मत प्रस्तुत कीजिये।
- चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदम।
- निष्कर्ष।
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लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33(7) के अनुसार कोई भी व्यक्ति लोकसभा निर्वाचन के लिये दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्याशी नहीं हो सकता। इस अधिनियम के 4, 5, 8, 10, 33, 34, 62, 77, 123, 126 इत्यादि धाराओं के अंतर्गत अनेक प्रवाधान किये गए हैं जो भारतीय लोकतंत्र को सकारात्मक तौर पर प्रभावित करते हैं। यद्यपि बदलती परिस्थितियों के अनुरूप कई प्रावधानों में संशोधन करने की आवश्यकता है।
अधिनियम द्वारा गलत प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने के संदर्भ में मत निम्नलिखित रूपों में प्रस्तुत हैं-
- अधिनियम की धारा 8(4) के अंतर्गत पूर्व में दागी नेताओं को फैसले के विरुद्ध ऊपरी अदालत में अपील दायर करने और उसके फैसले तक बने रहने का अधिकार प्राप्त था। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे समानता के अधिकार के विरुद्ध घोषित करते हुए सज़ा सुनाए जाने के दिन से ही सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता समाप्त करने का आदेश दिया गया, लेकिन इसने राजनीति के अपराधीकरण एवं अपराध के राजनीतिकरण में अपनी अहम भूमिका निभाई।
- अधिनियम की धारा 123(3) के अंतर्गत वर्णित धर्म, नस्ल व जाति आदि आधारों पर समुदाय में नफरत एवं दुश्मनी पैदा करने पर रोक के बावजूद चुनाव आयोग के पास चुनाव प्रक्रिया के दौरान ऐसी घटनाओं की जाँच कराने का अधिकार नहीं है। अत: यह धारा जातिवाद, संप्रदायवाद जैसी विसंगतियों को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
- मीडिया प्लेटफॉर्मों के विस्तार एवं विविधता को देखते हुए तथा अधिनियम की धारा 126 में उल्लिखित पिछले 48 घंटों की अवधि के दौरान निर्वाचन सामग्री के प्रदर्शन के नियमन और नियंत्रण में आने वाली चुनौतियों का समाधान निकालने में यह अधिनियम प्रभावी साबित नहीं हो पा रहा है।
- अधिनियम की धारा 33(7) के चलते दो सीट जीतने की स्थिति में एक सीट छोड़ने पर न सिर्फ सरकारी खजाने पर बल्कि खाली हुई सीट पर चुनाव कराने से सरकारी तंत्र और अन्य संसाधनों पर आर्थिक बोझ पड़ने के साथ-साथ संबंधित क्षेत्र के मतदाताओं में निराशा का भाव उत्पन्न होता है।
अधिनियम के संदर्भ में चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कुछ प्रमुख कदमों का उल्लेख निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर वर्णित है-
- मीडिया प्लेटफॉर्मों के विस्तार और विविधता एवं अधिनियम की धारा 126 की सीमाओं को देखते हुए चुनाव आयोग द्वारा इनकी समीक्षा कर प्रभावी संशोधन सुझाने के लिये जनवरी, 2018 में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया।
- चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर धारा 33(7) के तहत एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का समर्थन किया है। आयोग ने इसे मतदाताओं के साथ अन्याय व अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ने का हवाला देते हुए सीट छोड़ने वाले व्यक्ति से दोबारा चुनाव का खर्च वसूलने का सुझाव दिया है।
- चुनाव आयोग ने सिफारिश की थी कि अधिनियम की धारा 123 के तहत झूठा हलफनामा दायर करने को करप्ट प्रैक्टिस माना जाए। और इस तरह कानून की धारा 8 (1) के तहत इस मामले में कैंडिडेट को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया जाए तथा दो साल कैद का प्रावधान किया जाए।
उपर्युक्त प्रयासों के बावजूद धरातल पर स्थिति उतनी सकारात्मक नहीं है। धनबल का बढ़ता प्रचलन, जाति-धर्म के नाम पर वोटबैंक की राजनीति के चलते हिंसा में होने वाली वृद्धि, राजनीति के अपराधीकरण व अपराध के राजनीतिकरण जैसी विकृत गतिविधियाँ चिंता का प्रमुख विषय हैं। चुनावों में स्टेट फंडिंग, राजनीतिक दलों द्वारा सूचना के अधिकार की अनुमति देने, राईट टू रिकॉल, राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का प्रभावी ढंग से पालन करने जैसे प्रावधानों के माध्यमों से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम को नई दिशा देने की आवश्यकता है।