राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार में महात्मा गाँधी और राजर्षि पुरूषोत्त्तमदास टंडन की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
12 Nov, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
हल करने का दृष्टिकोण:
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महात्मा गांधी के सन् 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में हिंदी-प्रेम प्रकट करते हुए आह्वान किया था “आप हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का गौरव प्रदान करे। हिंदी सब समझते हैं। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर हमें अपना कर्त्तव्य पालन करना चाहिये।”
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी जी हिंदी और हिंदुस्तान को जगाने में लग गए। उन्होंने विभिन्न व्यक्तियों, पत्र-पत्रिकाओं और संस्थाओं को हिंदी के प्रयोग की अनूठी प्रेरणा दी है, गांधी जी का मानना था कि भारत की संपर्क भाषा के रूप में हिंदी आदर्श भूमिका निभा सकती है। गांधी सेवा संघ, हरिजन सेवक संघ आदि का सारा कामकाज हिंदी में होता रहा है। महात्मा गांधी की प्रेरणा से ही वर्धा और मद्रास में राष्ट्रभाषा प्रचार सभाएँ स्थापित हुई। उन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार सभा मद्रास की स्थापना भी की।
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने हिंदी को संघ की राजभाषा बनाने का अथक प्रयास किया। टंडन जी हिंदी साहित्य सम्मेलन के संस्थापकों में से थे एवं लाला लाजपत राय के साथ मिलकर भी हिंदी के प्रसार में लगे रहे। लाला जी की मृत्यु के पश्चात् टंडन जी ‘लोकसेवा मंडल’ के सभापति बन कर हिंदी के प्रसार में लगे रहे। हिंदी के संदर्भ में उनका यह-विचार दृष्टव्य है-
“मैं हिंदी के प्रचार, राष्ट्रभाषा के प्रचार को राष्ट्रीयता का मुख्य अंग मानता हूँ। मैं चाहता हूँ कि यह भाषा ऐसी हो, जिसमें हमारे विचार आसानी से साफ-साफ स्पष्टतापूर्वक व्यक्त हो सके। राष्ट्रभाषा ऐसी होनी चाहिये, जिसे केवल एक जगह के लोग न समझें, बल्कि उसे देश के सभी प्रांतों में सुगमता से पहुँचाया जा सके।”
उपरोक्त विश्लेषण से राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार में महात्मा गांधी और राजर्षि पुरूषोत्तमदास टंडन की भूमिका को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।