विधानसभा के गठन में राज्यपाल की भूमिका की चर्चा कीजिये। क्या आप इस मत से सहमत हैं कि कुछ विधानसभाओं में राज्यपाल की भूमिका संदिग्ध रही है? तार्किक विश्लेषण कीजिये।
11 Nov, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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भारतीय संविधान में केंद्र की तरह राज्य में भी संसदीय व्यवस्था को अपनाते हुए राज्य का कार्यकारी प्रमुख राज्यपाल को माना है। राज्यपाल राज्य की विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, किंतु किसी भी दल को बहुमत प्राप्त न होने की स्थिति में मुख्यमंत्री नियुक्त करने में राज्यपाल की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। ऐसे में कई मौकों पर राज्यपाल की भूमिका पर सवाल भी उठे हैं। कर्नाटक विधानसभा में राज्यपाल की भूमिका पर उठा विवाद इसका ज्वलंत उदाहरण है।
विधानसभा के गठन में राज्यपाल की भूमिका-
राज्यपाल के पास इन विवेकाधीन शक्तियों के कारण कई बार इनकी ओर से लिये गए फैसले चर्चा एवं विवादों का कारण भी बने हैं। कई बार मामले कोर्ट में भी गए और उनके फैसलों से संवैधानिक प्रावधानों की नई-नई व्याख्याएँ भी निकलकर सामने आईं।
कुछ घटनाक्रमों को देखें तो बिहार, गोवा, मणिपुर एवं मेघालय में राज्यपाल ने सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित करने की बजाय चुनाव बाद बने गठबंधनों को आमंत्रित किया था। कर्नाटक के राज्यपाल ने इसके उलट चुनाव में जीते सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित किया था जबकि चुनाव के बाद बने कॉन्ग्रेस-जनता दल गठबंधन को बहुमत प्राप्त था।
संविधान के अनुच्छेद-155 के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, लेकिन हकीकत में राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सिफारिश के आधार पर ही राज्यपालों को नियुक्त करता है। यही कारण है कि राज्यपालों के द्वारा दिये गए निर्णय केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के हितों को साधते हुए प्रतीत होते हैं। हालाँकि, सरकारिया आयोग की भी सलाह थी कि राज्यपाल का चयन राजनीति में सक्रिय व्यक्तियों में से नहीं होना चाहिये। सरकारिया आयोग ने भी सिफारिश की थी कि राज्यपालों का चयन केंद्र सरकार नहीं बल्कि एक स्वतंत्र समिति करे।
निष्कर्षतः राज्यपाल एक प्रमुख संवैधानिक पद है। अत: राज्यपाल पद पर आसीन व्यक्तियों को राजनीतिक पार्टियों के हितों को ध्यान में रखकर पैसले देने से बचना चाहिये एवं निष्पक्ष निर्णय देना चाहिये।