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प्रश्न :
हाल ही में गृह मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ो के अनुसार पूर्वोत्तर क्षेत्र में हिंसा में कमी आयी है। हिंसा में कमी के कारणों को समझाते हुए उन उपायों को समझाएं जिन्हें अपनाकर इस क्षेत्र में पूर्ण शांति स्थापित की जा सकती है।
31 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में हिंसा में कमी के कारण
- उपाय
- निष्कर्ष
पूर्वोत्तर क्षेत्र में अधिक-से-अधिक विद्रोही समूहों का सरकार के साथ शांति-वार्ता में शामिल होने से पिछले 5 से 6 वर्षों में उग्रवाद में भारी गिरावट दिख रही है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014 के बाद से पूर्वोत्तर क्षेत्र में विद्रोह में कमी आ रही है।
पिछले कुछ वर्षों में हिंसा में गिरावट के कारण-
- बाहरी सहायता की समाप्ति: पहले विद्रोही समूह पूर्वोत्तर राज्यों से सटे देशों में शरण लेते थे। बांग्लादेश या म्यांमार क्षेत्र का उपयोग किये बिना विद्रोही अपना अस्तित्व नहीं बचा सकते और तब तक प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर सकते हैं जब तक कि वहाँ से हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति नहीं होती। म्यांमार और बांग्लादेश के साथ बेहतर सुरक्षा संबंधों ने इन समर्थनों को समाप्त कर दिया है।
- वार्ताओं में संलग्नता: बहुत से विद्रोही समूह सरकार के साथ शांति वार्ताओं में शामिल थे, जिसके कारण पिछले कुछ वर्षों में हिंसक घटनाओं में कमी आई है। उदाहरण के लिये, नागा वार्ता वर्ष 1997 से चल रही थी, लेकिन वर्ष 2015 में समझौते की वास्तविक शर्तों पर बातचीत हुई और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवा) (एनएससीएन-आईएम) और केंद्र सरकार के मध्य हस्ताक्षर किये गये।
- वर्षों के प्रयासों से तंग आना: वर्षों से चल रहे संघर्षों में विद्रोहियों की शक्ति क्षीण हुई और इस तरह आंदोलन की तीव्रता धीरे-धीरे बेहद कम रह गई। स्थानीय आबादी वर्षों से चल रही हिंसा से तंग आ गई और विद्रोही समूहों के नेताओं की लोकप्रियता में समय के साथ गिरावट आई।
- समय के साथ-साथ संघर्ष से निपटने में राज्य के दृष्टिकोण में भिन्नताएँ आई हैं। अभी इसे एक लंबा रास्ता तय करना है। बदलती सरकारें एवं प्रतिनिधि तथा सैनिकों कि कोशिशें भी इस दिशा में परिवर्तन ला सकती हैं।
- हालाँकि, फिलहाल इन आंदोलनों को बनाए रखने के लिये एक नेता द्वारा इसका नेतृत्व किया जाना आवश्यक है। इन आंदोलनों ने उनके नेतृत्व को खो दिया और कई बार मतभेदों के कारण छोटे-छोटे गुटों में बँट गए।
- विद्रोही समूहों के बीच असहमति: सरकारी बल और इसकी खुफिया इकाइयाँ एक समूह को दूसरे के खिलाफ करने में सक्षम रही हैं और विद्रोही समूहों की एकता को नष्ट किया है। बँटे हुए समूह तुलनात्मक रूप से छोटे समूह हैं और उनके पास इतना राजस्व और संसाधन नहीं हैं और इसलिये उनके पास वार्ता करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
उपाय-
- कनेक्टिविटी बढ़ाना: पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिये व्यापक भौगोलिक कनेक्टिविटी महत्त्वपूर्ण है। बांग्लादेश और भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के माध्यम से भारतीय मुख्य भूमि से जुड़ने की इस परिवहन व्यवस्था को पूर्ण किया जाना चाहिये।
- इस राजमार्ग से भारत-आसियान मुक्त व्यापार क्षेत्र के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया के बाकी हिस्सों में व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- निरंतर सतर्कता: भारत को यह सोचकर कि उग्रवाद समाप्त हो गया है अपने सुरक्षा उपाय कम नहीं करने चाहिये तथा सतर्क रहना चाहिये। ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ नए गठित समूहों द्वारा बहुत लंबे अंतराल के बाद हिंसक घटनाएँ को अंजाम दिया गया है।
- केंद्र और राज्य सरकार को छोटे और बड़े सभी समूहों की पहचान करनी चाहिये और उनसे निपटना चाहिये ताकि उग्रवाद फिर से न फैले।
- लोगों की आकांक्षाओं को संबोधित करना: पूर्वोत्तर में संघर्ष लोगों की आकांक्षाओं की शारीरिक अभिव्यक्ति है। इस प्रकार उनके साथ निरंतर संवाद स्थापित करके लोगों की आकांक्षाओं को संबोधित करने की आवश्यकता है।
- शांति समझौतों की सफलता का मूल्यांकन सैन्य परिणामों की तुलना में सामाजिक-आर्थिक परिणामों पर अधिक किया जाना चाहिये।
- भ्रष्ट मेल-जोल को समाप्त करना: मुद्दों को स्थायी रूप से हल करने के लिये हितधारकों की पहचान करने और उनके मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है। पूर्वोत्तर में चुनाव परिणाम अक्सर इस आधार पर निर्धारित किये जाते हैं कि राजनीतिक दल किन समूहों के प्रति निष्ठा रखते हैं।
- इस प्रकार राज्य विधायिका और इन भूमिगत समूहों से जुड़े भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को समाप्त किया जाना चाहिये।
- दूरदर्शी नीति: एक संरचित प्रतिपक्ष नीति की आवश्यकता है जिसमें भविष्य में इस तरह के उग्रवाद से निपटने के लिये सभी हितधारकों से परामर्श करके सरकार द्वारा सभी कारकों पर विचार किया जाना चाहिये।
- अधिक एकीकरण: स्थानीय आबादी के बीच अपनेपन की भावना को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कोहिमा युद्ध जैसे भारत में उनके योगदान के लिये उनमें गर्व की भावना उत्पन्न की जानी चाहिये।
निष्कर्षतः यह केवल एक चक्र का अंत है जहाँ आंदोलन में शामिल एक पीढ़ी काफी जीर्ण-शीर्ण हो गई है। हालाँकि स्थानीय आबादी में अभी भी विद्रोह की भावना है और भावनात्मक रूप से अपने मनोरथ से जुड़ी हुई है, केवल माँग रखने का तरीका हिंसक से अहिंसक में परिवर्तित हो गया है। राजनीतिक आकांक्षाओं को हिंसा के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। ऐसी भावना को हतोत्साहित किया जाना चाहिये। इसके लिये पूर्वोत्तर राज्यों का राजनीतिक सशक्तीकरण होना चाहिये और सुशासन को जमीनी स्तर तक पहुँचना चाहिये।
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