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प्रश्न :
ग्राम न्यायालय की अवधारणा से आप क्या समझते हैं ?ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लाभ तथा इससे संबंधित चुनौतियों पर प्रकाश डालें।
31 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लाभ
- इससे संबंधित चुनौतियां
- निष्कर्ष
देश के आम नागरिकों तक न्याय व्यवस्था की पहुँच को बढ़ाने और प्रत्येक नागरिक को देश के न्यायिक तंत्र से जोड़ने के लिये ‘ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008’ के तहत ‘ग्राम न्यायालयों’ की स्थापना की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। इस व्यवस्था के अंतर्गत राज्यों को ग्राम पंचायत स्तर पर ‘ग्राम न्यायलयों’ की स्थापना करने के निर्देश दिये गए हैं, जिससे पंचायत स्तर पर दीवानी या फौजदारी के सामान्य मामलों (अधिकतम सज़ा 2 वर्ष) में सुनवाई कर नागरिकों को त्वरित न्याय उपलब्ध कराया जा सके।
आज भी भारत की कुल जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या के अनुपात में विधिक निकायों की कमी और ग्रामीण क्षेत्रों से इनकी दूरी देश के सभी नागरिकों तक विधि व्यवस्था की पहुँच के लिये एक बड़ी चुनौती है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2017 में देश भर के ज़िला न्यायालयों और उससे निचले स्तरों पर कार्यरत न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या लगभग 3 करोड़ थी। ग्राम न्यायालयों की स्थापना से न्याय तंत्र के इस भार में कुछ स्तर तक कमी लाने में सहायता मिलेगी।
ग्राम न्यायालयों की स्थापना के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं-
- ग्राम पंचायत स्तर पर न्यायालयों की तक पहुँच से लोगों के लिये समय और धन की बचत होगी।
- लंबित मामलों में एक बड़ी संख्या उन मामलों की भी है जिनका आपसी सुलह या मध्यस्थता से निस्तारण किया जा सकता है, ग्राम न्यायालयों के गठन से ऐसे मामलों में भारी कमी आएगी।
- न्याय प्रक्रिया में आसानी और इसके तीव्र निस्तारण से जनता में विधि व्यवस्था के प्रति विश्वास बढ़ेगा।
चुनौतियाँ:
- प्रारंभ में कुछ राज्यों में ग्राम न्यायालयों की स्थापना की गई परंतु बाद में राज्यों ने इस संदर्भ में अनेक चुनौतियों का हवाला देकर योजना के प्रति कोई उत्साह नहीं दिखाया। ग्राम न्यायालयों की स्थापना में कुछ चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं-
- मानव संसाधनों की कमी: वर्तमान में देश के कई राज्यों में विधि विभाग के शीर्ष अधिकारियों के साथ सहायक पदों पर कार्य करने वाले सदस्यों की भारी कमी है। ध्यातव्य है कि ग्राम न्यायालय की रूपरेखा तैयार करने के लिये गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में एक ग्राम न्यायालय के व्यवस्थित संचालन के लिये विभिन्न स्तरों पर 21 सदस्यों को आवश्यक बताया था। ऐसे में पंचायत स्तर पर ग्राम न्यायालय की स्थापना करना और उसका सुव्यवस्थित संचालन करना राज्यों के लिये एक बड़ी चुनौती है।
- आर्थिक कारण: योजना की रूपरेखा में समिति ने ऐसे न्यायालयों की स्थापना के लिये 1 करोड़ रुपए की लागत का अनुमान लगाया था, गौरतलब है कि पिछले 10 वर्षों में यह लागत और बढ़ी है। इसे देखते हुए ज़्यादातर राज्यों ने केंद्र सरकार की सहायता के बगैर ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम न्यायालयों के संचालन में असमर्थता जताई है।
- संसाधनों का अभाव: देश के अनेक दूरस्थ क्षेत्रों के गाँवों में महत्त्वपूर्ण संसाधनों, जैसे-24 घंटे बिजली, पक्की सड़क, बेहतर इंटरनेट का न होना भी इस योजना के कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा रही है।
- अन्य हितधारकों के सहयोग की कमी: इस योजना के क्रियान्वयन में एक बड़ी चुनौती विधि तंत्र से जुड़े अन्य विभागों के सहयोग में कमी रही है। ज़िला स्तर पर कार्यरत वकील, पुलिस और विधि विभाग के अनेक शीर्ष अधिकारी नगरों या शहरों को छोड़कर गाँवों में नहीं जाना चाहते, जिसके कारण योजना को समय-समय पर विभिन्न समूहों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विरोध का सामना करना पड़ा है।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: ग्राम न्यायालय के संचालन में अधिकांश बाधाएँ मानव-निर्मित हैं और कुछ प्रयासों से इनका समाधान किया जा सकता है। परंतु इस परियोजना को लागू करने के लिये शीर्ष राजनीतिक प्रतिनिधियों से अपेक्षित प्रयास में भारी कमी देखी गई है।
निष्कर्षतः ग्राम न्यायालय की स्थापना और संचालन के लिये राज्य तथा केंद्र सरकारों को मिलकर आर्थिक सहयोग करना चाहिये, जिससे देश की न्यायिक व्यवस्था का सुचारु रूप से संचालन हो सके। ज़िला स्तर पर एवं अन्य स्थानीय न्यायालयों में रिक्त पदों को भरकर न्याय तंत्र पर बढ़ रहे बोझ को कम किया जा सकता है। देश के सुदूर हिस्सों के गाँवों तक विभिन्न महत्त्वपूर्ण सुविधाओं जैसे-सड़क, इंटरनेट, बिजली आदि की पहुँच को बेहतर बनाकर ग्राम न्यायालयों तक लोगों की पहुँच को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही सरकार द्वारा इस योजना से जुड़े अन्य हितधारकों जैसे-वकीलों, स्टांप पेपर विक्रेताओं आदि की ज़िम्मेदारी सुनिश्चित कर इस योजना के सफल क्रियान्वयन में तेज़ी लाई जा सकती है। इस योजना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे नागरिक हैं, अतः उनके बीच ग्राम न्यायालयों और न्यायालय में उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाकर इस योजना के उद्देश्यों को सफल बनाया जा सकता है।
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