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प्रश्न :
“कविता क्या है” निबंध के आधार पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल की “कविता की भाषा” विषयक मान्यताओं पर प्रकाश डालिये।
31 Oct, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल की “कविता की भाषा” विषयक मान्यताएँ
- निष्कर्ष
“कविता क्या है” आचार्य शुक्ल का सबसे महत्त्वपूर्ण निबंध है। इस निबंध के माध्यम से शुक्ल जी ने अपनी काव्यशास्त्रीय मान्यताएँ प्रस्तुत की है, जिसमें भाषा संदर्भ महत्त्वपूर्ण है।
कविता की भाषा के संदर्भ में शुक्ल जी बिम्ब एवं नाद सौंदर्य पर बल देते हैं। शुक्ल जी अलंकारों एवं कोरे उक्ति वैचित्र की अधिकता को कविता के लिये अनावश्यक मानते हैं। वे मूलतः सौंदर्य को आंतरिक वस्तु मानते हैं और कहते हैं कि “सौंदर्य बाहर की कोई वस्तु नहीं है मन के भीतर की वस्तु है।” साथ ही निबंधों को सरस बनाने के लिये कई स्थानों पर विनोद-भाव का समावेश भी किया है। उदाहरण स्वरूप- “बंदर को शायद बंदरिया के मुँह में ही सौंदर्य दिखाई देता होगा, पर मुनष्य पशु-पक्षी, फूल-पत्ते और रेत-पत्थर में भी सौंदर्य पाकर मुग्ध होता है।” (कविता क्या है)
शुक्ल जी ने ‘कविता की भाषा’ की विशेषताओं में सर्वप्रथम लाक्षणिकता को महत्त्व दिया है। उनका मानना है कि कविता हमारे समक्ष सूक्ष्म पदार्थों और व्यापारों को भी गोचर रूप से रखती है, स्थूल रूप में प्रत्यक्ष करती है। अन्य विशेषता उन्होंने नाद- सौस्ठव में देखी है। और कहा कि “(कविता) नादसौण्ठव के लिये संगीत कुछ-कुछ सहारा लेती है।” साथ ही इस बात पर भी ध्यान देते हैं कि भाव को अधिक तीव्रता और पुष्टता प्रदान करने के लिये, केवल चमत्कार उत्पन्न करने के लिये नहीं, वर्णों का सूक्ष्म भेद अपनाया जाना चाहिये।
कविता में व्यंग्य को वे महत्त्वपूर्ण मानते हैं और वे व्यंग्य करने में माहिर भी हैं। उनकी मान्यता है कि व्यंग्य विषय व्यंजकता को बढ़ा देता है वहीं दूसरी ओर गंभीर से गंभीर विषय को सरस भी बना देता है। उदाहरण के लिये- “खेद के साथ कहना पड़ता है कि बहुत दिनों से” बहुत से लोग कविता को विलास की सामग्री समझते चले आ रहे हैं।...... एक प्रकार के कविराज तो रईसों के मुँह में मकरहवज रस झोंकते थे, दूसरे प्रकार के कविराज कान में कमरध्वज रस की पिचकारी देते थे, पीछे से तो ग्रीष्मोपचार आदि के नुस्खे भी कवि लोग तैयार करने लगे। (कविता क्या है।)
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