ऐसा अक्सर देखा जाता है कि एक सिविल सेवक में अपने प्रशासनिक उत्तरदायित्व के निर्वहन करते समय कई नकारात्मक भाव विकसित हो जाते हैं। किन उपायों द्वारा वह इन नकारात्मकताओं से निपट सकता है। चर्चा करें।
30 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण
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एक सिविल सेवक को अपने प्रशासनिक उत्तरदायित्व को पूरा करने में कई विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जिसके कारण कई बार ऐसा होता है कि अपने पद व शक्ति के कारण भी सिविल सेवकों में कई नकारात्मक भाव विकसित हो जाते हैं। इसे हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं:
स्वार्थ व हित का संघर्ष: अपने पद एवं शक्ति का दुरुपयोग कर लोग अपने निजी हित साधने में लग जाते हैं। मानव अपनी प्रकृति से स्वार्थी होता है, किंतु हमें अपनी स्वार्थी प्रवृत्तियों को ईश्वर व समाज सेवा की ओर मोड़कर इसे लोकोत्तर बनाने का प्रयास करना चाहिये।
पलायनवादिता: कई बार कठिन परिस्थितियों में सिविल सेवकों द्वारा पलायनवाद का सहारा लिया जाता है। वे समस्याओं से भागने लगते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो मनुष्य की चुनौतियों से जूझने की क्षमता को कमज़ोर करती है। समस्याओं से भागना कोई समाधान नहीं है। अत: मनुष्य को धैर्य और साहसपूर्वक विपरीत परिस्थितियों का सामना करना चाहिये।
निराशा व प्रेरणा का अभाव: कई बार अच्छे कार्य करने के बावजूद आपको विरोधियों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में निराशा का भाव जागृत होता है तथा अच्छे कार्य करने की प्रेरणा समाप्त होने लगती है। ऐसी स्थिति में हमें अपनी अभिप्रेरणा बनाए रखने के लिये सिविल सेवा के मूल उद्देश्यों को याद करना चाहिये। जनसेवा स्वयं एक बड़ा पुरस्कार है और फिर यदि आप लगातार अच्छे कार्य कर रहे हैं तो धीरे-धीरे आलोचक भी आधार विहीन हो जाएंगे और उनकी आलोचनाओं का कोई महत्त्व नहीं रह जाएगा।
घमंड: कई अधिकारियों को अपनी शक्ति तथा पद का अत्यधिक घमंड हो जाता है और वे इसका दुरुपयोग करने लगते हैं। उन्हें यह समझना चाहिये कि यह शक्ति उन्हें जनहित के लिये प्राप्त हुई है। अत: इस प्रकार अनावश्यक घमंड करना अनुचित है।
ईर्ष्या व पाखंड: कई बार सिविल सेवकों में अपने सहकर्मी वरिष्ठ व कनिष्ठ अधिकारियों को लेकर निजी या अन्य कारणों से ईर्ष्या का भाव जागृत होता है और वे कई प्रकार की गुटबाज़ियों व पाखंड में लिप्त हो जाते हैं। इससे जनहित भी काफी दुष्प्रभावित होता है। ऐसी स्थिति का सामना करने के लिये सिविल सेवकों को अपने संकीर्ण हितों तथा पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर व्यापक जनहित को ध्यान में रखना चाहिये।
अतः सिविल सेवकों को कर्तव्यों के निर्वहन में कई नकारात्मक मनोभावों का सामना करना पड़ता है। इनसे निपटने के लिये उन्हें जनसेवा को अपना धर्म व व गीता के निष्काम कर्म को अपना कर्त्तव्य मानते हुए निरंतर अपनी सकारात्मक ऊर्जा व अभिप्रेरणा बनाए रखनी चाहिये।