हाल ही में संसद द्वारा पारित कृषि अधिनियमों के संदर्भ में कृषि से संबंधित विषय की संवैधानिक स्थिति को स्पष्ट करें तथा केंद्र के पास इससे संबंधित कानून बनाने का आधारों पर प्रकाश डालें।
29 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण
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संसद द्वारा पारित तीन कृषि अधिनियमों ने पूरे देश में संवैधानिक वैधता पर बहस छेड़ दी है। ये अधिनियम ‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2020, मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता (अधिकार प्रदान करना और सुरक्षा) अधिनियम, 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 हैं।
इन अधिनियमों की उपयोगिता बताते हुए सरकार का कहना है कि ये कानून किसानों की आय़ बढ़ाने में मदद करेंगे, पहले किसानों को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। देश भर के किसान संगठन, मंडी समितियों से जुड़े लोग इन अधिनियमों का विरोध कर रहे हैं, उनका मानना है कि इन अधिनियमों के जरिये सरकार कृषि में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है, जो किसानों की परेशानियों को और बढ़ाएगा। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या केंद्र सरकार के पास अधिकार है कि वह राज्य सूची के विषयों पर कानून का निर्माण कर सकता है। कई राज्यों ने कृषि अधिनियमों की संवैधानिक वैधता पर प्रश्न खड़े किये तथा कई राज्य इन अधिनियमों की वैधता को चुनौती देने के लिये कानूनी विकल्पों की तलाश कर रहे हैं।
कृषि से संबंधित विषय की संवैधानिक स्थिति -
केंद्र के पास कृषि से संबंधित कानून बनाने का आधार-
निष्कर्षतः वर्तमान में भी देश में किसानों की एक बड़ी आबादी के पास छोटी जोत है और उनके पास आधुनिक उपकरणों का अभाव है, ऐसे में सरकार को कृषि में वैज्ञानिक पद्धति के उपयोग और नवीन उपकरणों हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिये। संविधान की सूची-II (राज्य सूची) की प्रविष्टि-14 के तहत कृषि को राज्य सूची के विषय के रूप में शामिल किया गया है , अतः केंद्र सरकार का निर्णय राज्य के कार्यों में हस्तक्षेप के साथ संविधान में निहित सहकारी संघवाद की भावना को चोट पहुँचा सकता है, अतः केंद्र को इस प्रकार के कानून निर्माण से पूर्व राज्यों के विश्वास को प्राप्त करना चाहिये।