पर्यावरणीय नैतिकता से आप क्या समझते हैं? इसे सुनिश्चित करने में गाँधीवादी विचारों के महत्त्व पर प्रकाश डालें।
28 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण:
|
पर्यावरणीय नीतिशास्त्र व्यावहारिक दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जिसके अंतर्गत आस-पास के पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित नैतिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थात् मनुष्य एवं पर्यावरण के आपसी संबंधों का नैतिकता के सिद्धांतों एवं नैतिक मूल्यों के आलोक में अध्ययन किया जाता है। मुख्यत: मनुष्य के उन क्रियाकलापों का नैतिक आधार पर मूल्यांकन किया जाता है जिससे पर्यावरण प्रभावित होता है।
नेचर पत्रिका के अनुसार, ‘‘पर्यावरणीय नीतिशास्त्र व्यावहारिक दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जिसके अंतर्गत पर्यावरणीय मूल्यों की आधारभूत अवधारणाओं के अध्ययन के साथ-साथ जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण एवं उसे बनाए रखने के लिये आस-पास के सामाजिक दृष्टिकोण, कार्य एवं नीतियों जैसे मुद्दों का अध्ययन किया जाता है।’’ पर्यावरणीय नैतिकता इस विश्वास पर आधारित है कि मनुष्य के साथ-साथ पृथ्वी के जैवमंडल में निवास करने वाले विभिन्न जीव-जंतु, पेड़-पौधे भी इस समाज का हिस्सा हैं। अमेरिकी विद्वान एल्डो लियोपोल्ड का मानना है कि सभी प्राकृतिक पदार्थों में मूल्य अंतर्निहित होते हैं, इसलिये मानव द्वारा दावा किये जा रहे सभी अधिकार, सभी प्राकृतिक पदार्थों पर भी लागू होते हैं तथा मानव को उनका सम्मान करना चाहिये।
महात्मा गाँधी के कार्य तथा विचार भारत के पर्यावरण संबंधी आंदोलन पर गहरा प्रभाव डालते हैं । महात्मा गाँधी को भारतीय पर्यावरण आंदोलन में एक सारस्वत की तरह माना जाता है। पर्यावरण कार्यकर्ता गाँधीजी के अहिंसात्मक विरोध या सत्याग्रह पर अत्यधिक भरोसा रखते हैं एवं भारी उद्योगों के विषय में गाँधी जि का मानना है कि विरुद्ध गाँधी यह गरीबों एवं पद-दलितों के विरुद्ध है।
चिपको आंदोलन जिसकी शुरुआत चंडी प्रसाद भट्ट एवं सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा किया गया तथा मेधा पाटकर द्वारा चलाये गये नर्मदा बचाओ आंदोलन का प्रेरणा स्त्रोत गाँधीजी ही थे। अन्य दूसरे समूह जैसे सुलभ इंटरनेशनल जो हरिजनों एवं सफाई कर्मियों के स्तर को ऊँचा उठाने, के लिये काम करता है, यह भी गाँधीजी के विचारों से ही प्रेरित थे। गाँधीजी वास्तव में सबसे पहले पर्यावरणविद थे जिन्होंने आधुनिक औद्योगिक समाज के कारण होने वाले पर्यावरणीय समस्याओं के विषय में ध्यान दिया था। 1909 में ‘हिंद स्वराज’ में प्रकाशित अपने लेख में उन्होंने लिखा था कि वर्तमान अनियोजित विकास के कारण किस प्रकार से मनुष्य का मनुष्य द्वारा एवं मनुष्य के द्वारा प्रकृति का शोषण किया जा रहा है।
गाँधीजी ने मितव्ययता एवं साधारण जीवन जीने पर जोर दिया था जिसका यह अर्थ नहीं है कि अपनी खुशियों के लिये पर्यावरणीय मूल्यों का सम्मान नहीं करे। फिर भी ऐसा माना जाता है कि व्यर्थ उपभोग करने में कोई खुशी नहीं है। खुशियाँ एक दूसरे के साथ सौहार्दपूर्वक रहते हुए एवं प्रकृति के साथ आती हैं। खुशियाँ जीवों के शोषण पर आधारित नहीं होनी चाहिये। इससे पृथ्वी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होना चाहिये लेकिन ये कुछ क्रियाशील कार्यों एवं क्रियाकलापों एवं आपसी सहयोग के द्वारा आनी चाहिए। पर्यावरणीय नैतिकता प्रकृति एवं उसकी उदारता के प्रति सौहार्दपूर्वक व्यवहार के बारे में हमें सिखाती है।
भारत की वृद्धि एवं विकास के लिये की जाने वाली सभी योजनाओं में पर्यावरणीय मूल्यों को एक अभिन्न अंग के रूप में माना जाना चाहिये।