सहकारी बैंकों में अनियमितता के मामलों में वृद्धि को देखते हुए सरकार द्वारा ‘बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित कियागया है। इसकी आवश्यकता के बिंदुओं को समझाते हुए बताएं कि विधेयक किस प्रकार सहकारी बैंकों की अनियमितता को सुधारने में मददगार सिद्ध हो सकता है?
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- आवश्यकता के बिंदु
- सुधार में कैसे मददगार
- निष्कर्ष
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हाल ही में सहकारी बैंकों में अनियमितता के मामलों में वृद्धि को देखते हुए संसद से ‘बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020’ को पारित कर दिया गया है। इसके माध्यम से अन्य व्यावसायिक बैंकों पर लागू होने वाले कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को सहकारी बैंकों पर भी लागू किया जाएगा। इस विधेयक के तहत प्रस्तावित संशोधन प्राथमिक कृषि ऋण समितियों या ऐसी किसी भी संस्था पर लागू नहीं होगा अपने नाम या अपने व्यवसाय के संबंध में ‘बैंक’, ‘बैंकर’ या ’बैंकिंग’ शब्द का उपयोग नहीं करती है।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी ‘बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1965’ के माध्यम से सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली की निगरानी के संदर्भ में RBI को कुछ शक्तियाँ प्रदान की गई थी। हालाँकि इस अधिनियम में RBI सहकारी बैंकों के संदर्भ में वे सभी अधिकार नहीं प्रदान किये गए जो उसे सामान्य व्यावसायिक बैंकों के लिये प्राप्त हैं।
सुधार की आवश्यकता क्यों?
- सहकारी बैंकों की वर्तमान चुनौतियों का प्रमुख कारण पेशेवर प्रबंधन में कमी, पूंजी का अभाव और कमज़ोर निगरानी प्रणाली है।
- RBI द्वारा सामान्य व्यावसायिक बैंकों के लिये निर्धारित कई आवश्यक प्रावधान सहकारी बैंकों पर नहीं लागू होते जिसके कारण सहकारी बैंकों में वित्तीय गड़बड़ियों की सही समय पर निगरानी नहीं हो पाती है। उदाहरण के लिये व्यावसायिक बैंकों के अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के लिये आवेदक को दिवालिया नहीं होना चाहिये और न ही उसे किसी न्यायालय से अपराधी घोषित किया गया हो. इसके साथ ही कुछ मामलों में RBI को किसी व्यावसायिक बैंक के अध्यक्ष को हटाने का भी अधिकार है जबकि सहकारी बैंकों पर ये प्रावधान नहीं लागू होते।
- स्वतंत्रता के पश्चात संघीय व्यवस्था के तहत देश में बैंकों को केंद्र सरकार के अधिकार में रखा गया था जबकि सहकारी संस्थाओं की स्थापना, प्रबंधन आदि को राज्य के अधिकार क्षेत्र में रखा गया।परंतु सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी समस्याओं के कारण पिछले कुछ वर्षों में सहकारी बैंकों में वित्तीय गड़बड़ी के मामलों में वृद्धि देखने को मिली थी।
- सहकारी बैंकों की स्थापना का उद्देश्य आर्थिक लाभ को प्राथमिकता दिए बगैर जन भागीदारी के द्वारा लोगों की ज़रूरतों के अनुरूप बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना था।
- केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, वर्तमान में देश लगभग 277 शहरी सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति कमज़ोर है, जबकि 47 सहकारी बैंकों में निवल संपत्तियाँ ऋणात्मक थी।
- इसके साथ ही लगभग 328 शहरी सहकारी बैंकों में सकल गैर-निष्पादित संपत्तियों का अनुपात 15% से अधिक हो गया है।
सुधार में कैसे मददगार सिद्ध हो सकता है?
- इस विधेयक के एक कानून के रूप में लागू होने के बाद RBI को सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली के बारे में बेहतर जानकारी उपलब्ध हो पाएगी जिससे RBI को इन बैंकों के विनियमन में आसानी होगी।
- इस विधेयक के लागू होने के बाद सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल में शामिल 51% सदस्यों के पास बैंकिंग, विधि, अर्थशास्त्र आदि क्षेत्रों में विशेष अनुभव होना अनिवार्य हो जाएगा, जिससे सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार होगा।
- इन सुधारों के माध्यम से सहकारी बैंक शेयर और ऋण-पत्र के माध्यम से अधिक पूँजी की व्यवस्था कर सकेंगे।
- इस विधेयक के माध्यम से RBI को सहकारी बैंकों के ऑडिट (Audit) से जुड़े अधिकार भी दे दिए जाएंगे जिससे सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी।
उपरोक्त के अलावा इस विधेयक के माध्यम से सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में आवश्यक सुधार किये जा सकेंगे जिससे उनकी वित्तीय स्थिरता बढ़ेगी और जनता में सहकारी बैंकों के प्रति विश्वास बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।