“भारत में सत्ता विकेंद्रीकरण के 25 वर्षों बाद भी पंचायती राज संस्थाओं को धन की कमी जैसी समस्या से जूझना पड़ रहा है।” इस संबंध में 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों तथा उसके प्रयासों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों तथा उसके प्रयासों का समालोचनात्मक मूल्यांकन करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण की कहानी का सिलसिला साल 1993 से तब शुरू होता है जब शहरी और ग्रामीण स्वायत्त संस्थाओं को सरकार का तीसरा स्तर मानते हुए क्रांतिकारी 73वें और 74वें संविधान संशोधन के तहत विधिवत रूप से पंचायतों और नगरपालिकाओं का गठन किया गया और उन्हें पर्याप्त अधिकार एवं ज़िम्मेदारियां सौंपी गईं। लेकिन इस गठन के 25 वर्ष बीत जाने के बाद आज भी पंचायती राज की ये संस्थाएँ धन की कमी जैसी बाधाओं का सामना कर रही हैं। हालाँकि 14वें वित्त आयोग ने संविधान संशोधनों के बाद पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के लिये संसाधनों का एक निश्चित हिस्सा आवंटित किये जाने की सिफारिश की है। इन सिफारिशों में शामिल हैं -
- पंचायतों और नगरपालिकाओं सहित सभी स्थानीय निकायों को 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने वाले पाँच वर्ष की अवधि के लिये कुल 2,87,436 करोड़ रुपए अनुदान का प्रावधान।
- ग्राम पंचायतों को 1,80,262 करोड़ रुपए मूल अनुदान के रूप में मिलेंगे, जबकि 20,029 करोड़ रुपए सभी राज्यों को प्रदर्शन के आधार पर अनुदान के रूप में मिलेंगे।
- स्थानीय नगर निकायों को 69,715 करोड़ रुपए मूल अनुदान तथा 17,428 करोड़ रुपए प्रदर्शन के आधार पर अनुदान के रूप में मिलेंगे।
- ग्राम पंचायतों और नगर निकायों की मज़बूती के लिए कुल कर का 42 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को दिये जाने के अलावा अतिरिक्त राशि भी 11 राज्यों को आवंटित की गई है। लेकिन इसके बाद भी इन राज्यों में राजस्व घाटे की स्थिति रहेगी।
- इन 11 राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा शामिल हैं ।
- राजस्व घाटे वाले इन 11 राज्यों को 2015-16 के दौरान 48,906 करोड़ रुपए की अनुदान सहायता दिये जाने की भी सिफारिश की गई है।
चौदहवें वित्त आयोग ने कई ऐसी पहल की हैं जिनसे पंचायतों के कामकाज में क्रांतिकारी बदलाव आने की संभावना बनी है। पिछले वित्त आयोगों से हटकर, 14वें वित्त आयोग ने पंचायतों के लिये काफी बड़ी राशि का आवंटन किया है। आयोग के दिशा-निर्देश में यह साफ़ कहा गया है कि पंचायतों का पैसा सरकार के पास 15 दिन से ज़्यादा की अवधि के लिये नहीं पड़ा रहना चाहिये और अगर इसमें देरी होती है तो ग्राम पंचायतों को ब्याज का भुगतान किया जाना चाहिये।
चौदहवें वित्त आयोग के प्रयासों का मूल्यांकन -
14वें वित्त आयोग द्वारा स्थानीय निकायों को धन के हस्तांतरण की व्यवस्था से उनके कुल संसाधनों में बढ़ोतरी हुई है। परिणामस्वरूप पैसा खर्च करने के बारे में पंचायतों की भूमिका और महत्त्वपूर्ण हो गई है। इसके कुछ सकारात्मक पहलुओं को संक्षेप में इस तरह समझा जा सकता है –
- स्थानीय सरकारों को विकेंद्रीकरण में वृद्धि से प्रति व्यक्ति धन की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई है।
- प्रति व्यति धन की उपलब्धता बढ़ने से ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार आया है।
- इससे गाँवों के विभिन्न क्षेत्रों के विकास का समुचित नियोजन संभव हो सका है।
- अब पंचायतों को इस बात का फैसला करने की अधिक स्वायत्ता मिल गई है कि किस बुनियादी सुविधा पर कितना पैसा खर्च होना चाहिये।
- विभिन्न राज्यों द्वारा लगाए गए अनेक प्रतिबंधों और प्राथमिकता संबंधी शर्तों के बावजूद ग्राम पंचायतों ने दूरदर्शिता से धन का उपयोग किया जिसके परिणामस्वरूप बुंदेलखंड में जहाँ भीषण सूखे में पानी के लिये तरसते लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने में मदद मिली वहीं, झारखंड में पुरानी टूटी-फूटी पुलिया की मरम्मत करके सड़क संपर्क बनाए रखा जा सका है।
- स्थानीय निकायों के प्रासंगिक बने रहने और उन्हें अधिक जवाबदेह बनाने के लिये यह एक बड़ा प्रोत्साहन है।
उपर्युक्त सकारात्मक पक्षों के होने के बावजूद भी इस दिशा में अनेक चुनौतियाँ विद्यमान हैं, जैसे –
- राज्यों को धन के अंतरण के लिये साल में दो किस्तें पहले से निर्धारित होने से बड़े पैमाने पर पैसे का उपयोग न हो पाने की गुंजाइश कम है।
- राज्यों को आवंटित संसाधनों में से आधे से भी कम का उपयोग हुआ है।
- उत्तर प्रदेश, जहाँ गरीबों की संख्या काफी अधिक है, केवल 2.02 प्रतिशत राशि का उपयोग कर सका, जबकि प्रगतिशील व धनी राज्य महाराष्ट्र अंतरित धनराशि का 3.76 प्रतिशत ही उपयोग कर सका।
- पंचायतों के सामने विकास संबंधी अनेक समस्याएँ हैं जिसके परिणामस्वरूप जनता/मतदाता के विभिन्न वर्गों की ओर से परस्पर प्रतिस्पर्द्धी मांगें उठती रहती हैं।
- ऐसे में अगर कोई राज्य किसी एक सेवा को अपनी प्राथमिकता बनाने का फैसला कर लेता है तो नलों से पानी की आपूर्ति, जल संरचनाओं की मरम्मत, तालाबों को गहरा करने तथा उनकी मरम्मत, पुलियाओं का निर्माण और रखरखाव, वर्षा जल की निकासी, हैंडपंपों की मरम्मत आदि जैसे कई अन्य ज़रूरी कार्यों की उपेक्षा की संभावना बनी रहती है।
चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशें लीक से हटकर और क्रांतिकारी हैं जिनसे हमारी स्थानीय सरकारें सुदृढ़ होंगी। वित्तीय विकेंद्रीकरण और भरोसे पर आधारित इस दृष्टिकोण ने हमारी ग्राम पंचायतों और नगर निकायों को स्थानीय आवश्यकता के अनुसार सशक्त किया है।