मूल कर्त्तव्यों में वर्णित मूल्य यद्यपि आम लोगों की समझ से परे हैं, साथ ही यह बाध्यकारी भी नहीं हैं, तथापि इसके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है। स्पष्ट कीजिये।
26 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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मूल कर्त्तव्यों को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा संविधान के भाग-IV के अंतर्गत अनुच्छेद 51 के रूप में जोड़ा गया जिसमें 10 मूल कर्त्तव्यों की चर्चा की गई थी। इसके पश्चात् 2002 में एक और मूल कर्त्तव्य को जोड़ा गया। वर्तमान में भारतीय संविधान में 11 मूल कर्त्तव्य शामिल हैं। यह नागरिकों को अपने देश, अपने समाज और अपने साथी नागरिकों के प्रति अपने कर्त्तव्यों के संबंध में प्रेरणा स्रोत हैं। यद्यपि इसमें वर्णित कुछ मूल्य आम लोगों की समझ से परे हैं साथ ही यह बाध्यकारी भी नहीं है, फिर भी इसके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता।
मूल कर्त्तव्यों में वर्णित मूल्य आम लोगों की समझ से परे हैं क्योंकि कुछ कर्त्तव्य अस्पष्ट एवं बहुअर्थी हैं, जैसे- उच्च आदर्श, सामासिक संस्कृति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि। साथ ही, इसमें दिये गए कर्त्तव्यों की सूची भी पूर्ण नहीं है, जैसे- मतदान, कर अदायगी, परिवार नियोजन आदि को समाहित नहीं किया गया है। मूल कर्त्तव्य की गैर-न्यायोचित छवि के कारण भी आलोचना की जाती है।
ध्यातव्य है कि तमाम आलोचनाओं के बाद भी इसकी विशेषताओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। मूल्य कर्त्तव्य भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्म एवं पद्धतियों से संबंधित हैं। इनमें से कुछ नैतिक कर्त्तव्य हैं तो कुछ नागरिक। उदाहरण के लिये स्वतंत्रता संग्राम के उच्च आदर्शों का सम्मान एक नैतिक दायित्व है, जबकि राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना नागरिक कर्त्तव्य। मूल कर्त्तव्य केवल नागरिकों के लिये हैं न कि विदेशियों के लिये, जबकि मूल अधिकार नागरिक और विदेशी दोनों पर लागू होते हैं। मूल कर्त्तव्य नागरिकों को उनके कर्त्तव्यों से अवगत कराते हुए उनमें अनुशासन और प्रतिबद्धता को बढ़ाते हैं। साथ ही, नागरिकों में इस भावना को विकसित करने में मदद करते है कि नागरिक केवल मूल दर्शक नहीं है बल्कि राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति में सक्रिय भागीदारी हैं। मूल कर्त्तव्य राष्ट्र विरोधी एवं समाज विरोधी गतिविधियों, जैसे- राष्ट्रध्वज को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने के खिलाफ चेतावनी देने के रूप में भी कार्य करते हैं।
मूल कर्त्तव्यों का पालन प्रत्येक नागरिक को करना चाहिये क्योंकि ये हमारे राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्यों को बताते हुए हमें अनुशासन में रखने का कार्य भी करते हैं।
उपरोक्त के अध्ययन से स्पष्ट है कि मूल कर्त्तव्य गैर-बाध्यकारी होते हुए भी लोगों में नैतिक आदर्शों के विकास, राष्ट्र भावना के विकास के साथ-साथ सामाजिक समानता स्थापित करने में सहायक हैं।