भारत-चीन सीमा विवाद के समाधान में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की भूमिका का विश्लेष्ण करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
- भूमिका
- संघर्ष समाधान में संभावित भूमिका
- पश्चिम के देशों की प्रतिक्रिया
- चुनौतियाँ
- निष्कर्ष
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हाल ही में रूस में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव को कम करने हेतु एक पाँच सूत्रीय योजना पर सहमति व्यक्त की गई, इस बैठक के लिये रूस के साथ ही शंघाई सहयोग संगठन की भूमिका को भी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
ध्यातव्य है कि 9-10 सितंबर, 2020 को माॅस्को (रूस) में ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (SCO) विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक का आयोजन किया गया था। इस दौरान भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की एक बैठक के दौरान वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव को कम करने के लिये एक पाँच सूत्रीय योजना को लागू करने पर सहमति व्यक्त की गई।
शंघाई सहयोग संगठन जून 2001 में ‘शंघाई फाइव’ के विस्तार के बाद अस्तित्त्व में आया था। वर्तमान में विश्व के 8 देश (कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान) SCO के सदस्य हैं। इस संगठन के उद्देश्यों में क्षेत्रीय सुरक्षा, सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सैनिकों की संख्या में कमी करना, और आतंकवाद की चुनौती पर काम करना आदि शामिल था।
संघर्ष समाधान में संभावित भूमिका:
- ‘शंघाई फाइव’ की स्थापना का एक और अत्यंत महत्त्वपूर्ण लक्ष्य ‘संघर्ष समाधान’ भी था।
- यह समूह महत्त्वपूर्ण इसलिये भी है क्योंकि इस समूह की स्थापना के बाद यह चीन और रूस के बीच संघर्ष के समाधान के साथ आगे चलकर समूह में शामिल अन्य मध्य एशियाई गणराज्यों के बीच संघर्ष को दूर करने में सफल रहा।
- उदाहरण के लिये वर्ष 1996 की ‘शंघाई फाइव’ देशों की बैठक में चीन, रूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच ‘सीमा के निकट सैन्य क्षेत्रों में विश्वास-निर्माण पर समझौता’ नामक एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस समझौते के कारण ही वर्ष 1997 में इन देशों के बीच अपनी साझा सीमाओं पर सैनिकों की संख्या को कम करने का समझौता संभव हुआ।
- इसके बाद, इसने मध्य एशियाई देशों को अपने कुछ अन्य सीमा विवादों को हल करने में सहायता की है।
पश्चिम के देशों की प्रतिक्रिया:
- SCO द्वारा सैन्य सहयोग को बढ़ावा देने की मांग के कारण इस ‘नाटो विरोधी’ (Anti NATO) समूह के रूप में भी देखा गया। गौरतलब है कि वर्ष 2005 की ‘अस्ताना घोषणा’ (Astana declaration) में SCO देशों को ‘क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को खतरा पैदा करने वाली स्थितियों के विरूद्ध साझा प्रतिक्रिया पर कार्य करने का आह्वान किया गया था।
- SCO के संदर्भ में पश्चिमी और NATO देशों की चिंताएँ लगभग एक दशक बाद पुनः बढ़ गईं क्योंकि क्रीमिया विवाद को लेकर रूस पर पश्चिमी और NATO देशों द्वारा प्रतिबंधों की घोषणा के बाद चीन रूस के समर्थन में आया और दोनों देशों के बीच तीस वर्षों के लिये लगभग 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के गैस पाइपलाइन समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- चीन द्वारा शुरू की गई बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना भी SCO घोषणाओं का हिस्सा बन गई है, रूस इस योजना का हिस्सा नहीं है परंतु वह इसका समर्थन करता है।
चुनौतियाँ:
- भारत वर्ष 2005 में SCO समूह में एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुआ था और वर्ष 2015 में इस समूह का सदस्य बना।
- SCO में शामिल होने के निर्णय को महत्त्वपूर्ण होते हुए भी भारत सरकार की सबसे अधिक उलझी हुई विदेशी नीतियों में से एक माना जाता है।
- क्योंकि इसी समय भारत का झुकाव पश्चिमी देशों और विशेषकर क्वाड को मज़बूत करने पर था।
- वर्ष 2014 में भारत और पाकिस्तान के बीच सभी संबंध (वार्ता, व्यापार आदि) समाप्त कर दिये गए तथा भारत ने पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण सार्क शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया।
- हालाँकि दोनों देशों के प्रतिनिधि SCO की सभी बैठकों में शामिल हुए हैं।
- भारत द्वारा सभी वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिये ज़िम्मेदार बताया जाता है, परंतु SCO के तहत RATS के सदस्य के रूप में भारत और पाकिस्तान के सशस्त्र बल सैन्य अभ्यास और आतंकवाद-विरोधी अभ्यास में हिस्सा लेते हैं।
निष्कर्षतः SCO हमेशा से ही सदस्य देशों के बीच विवादों के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, ऐसे में भारत और चीन के बीच LAC पर हालिया तनाव को कम करने में SCO एक महत्त्वपूर्ण मंच प्रदान कर सकता है। हालाँकि इस बैठक का परिणाम सीमा पर दोनों देशों की गतिविधियों पर भी निर्भर करेगा। LAC पर चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के साथ ही हिंद-महासागर क्षेत्र में चीन के हस्तक्षेप को कम करने के लिये भारत द्वारा क्षेत्र के अन्य देशों के साथ मिलकर साझा प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। हाल के वर्षों में भारतीय विदेश नीति में पश्चिमी देशों (विशेषकर अमेरिका) की तरफ झुकाव अधिक देखने को मिला है अतः वर्तमान में SCO भारत के लिये अमेरिका और रूस के साथ संबंधों के संतुलन को बनाए रखने में सहायक हो सकता है।