निम्नलिखित काव्यांश की संदर्भ-सहित व्याख्या प्रस्तुत करते हुए उनके काव्य-सौंदर्य का परिचय दीजिये-
(a) स्थान मुख देखे ही परतीति।
जो तुम कोटि जतन करि सिखवत जोग ध्यान रीति नाहिंन कछू समान ज्ञान में यह हम कैसे मानें कहौ कहा कहिए या नभ को कैसे डर में आनैं।
यह मन एक, एक वही मूरति भृंगकीट सम माने।
सूर साथ दै बूझत अर्धी यह ब्रज लोग सयाने।
(b). कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा। दीन दयाल बिरिदु संभारी हरहु नाथ मम संकट भारी।।
24 Oct, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
हल करने का दृष्टिकोण:
|
(a) संदर्भः प्रस्तुत पद हिंदी की भक्तिकालीन कृष्ण काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि सूरदास के पदों के संग्रह ‘भ्रमरगीतसार’ से लिया गया है जिसका संपादन आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा किया गया है।
प्रसंगः प्रस्तुत पद में गोपियों की श्री कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति वर्णित है गोपियाँ एकमात्र श्रीकृष्ण को ही महत्त्व देती हैं। जबकि उद्धव उन्हें निर्गुण भक्ति की शिक्षा देने का असफल प्रयास करते हैं।
व्याख्याः गोपियाँ उद्धव से यह कह रही हैं- हे उद्धव! तुम जो हमें यत्नपूर्वक योग-ध्यान की विधियाँ सिखा रहे हो, वह हमारे लिए व्यर्थ हैं क्योंकि हमारा विश्वास तो श्रीकृष्ण के मुख दर्शन करने में है आपके द्वारा दिये जा रहे ज्ञान में कोई चतुराई नहीं हैं, यह भला हम कैसे मान लें अर्थात क्या आप बिना किसी प्रयोजन के ही हमें यह ज्ञान सिखा रहे हैं? साथ जो यह ब्रह्म और शून्य की बातें कर रहे हैं। जिसकी विराटता असीम है, उसके बारे में हम क्या निरूपित करें या फिर उसे हम किस प्रकार अपने हृदय में धारण करें। कहने का तात्पर्य यह है कि आपका ब्रह्म आकाश की भाँति शून्य और अनंत हैं अतः हमारे लिए आग्रह और अदम्य है। हमारा मन और श्रीकृष्ण की मूरत एक हो गए हैं और उन्होंने हमें भृंगी कीट के समान अपने रंग में रंग लिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार भृंगी कीट किसी कीड़े को पकड़कर उसे अपने अनुरूप बना लेता है, उसी प्रकार श्री कृष्ण ने गोपियों को अपने अनुरूप बना लिया है। हे उद्धव! ब्रज के चतुर लोग तुमसे सौगंध देकर पूछना चाहते हैं कि जब हम दोनों (गोपियाँ एवं श्रीकृष्ण) एक ही रंग में रंग गए हैं तो फिर योग साधना को कैसे ग्रहण कर सकते हैं?
विशेष
1. प्रेम की अनन्यता का चित्रण हुआ है।
2. ज्ञानमार्गी साधना के स्थान पर भक्ति की महत्ता का प्रतिपादन।
3. निर्गुण की उपासना की निरर्थकता को व्यक्त किया गया है।
4. सूरदास ने गोपियों की वाक् चतुरता का सुंदर प्रदर्शन कराया है।
(b) संदर्भः प्रस्तुत पंक्तियाँ भक्तिकालीन रामभक्ति काव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि गोस्वामी तुलसीदास के कालजयी महाकाव्य ‘रामचरित मानस’ के सुंदरकांड से उद्धत हैं।
प्रसंगः प्रस्तुत प्रसंग में हनुमान और माता सीता के बीच वार्तालाप को दर्शाया गया है।
व्याख्याः सीताजी ने कहा- हे तात! श्रीराम को मेरा प्रणाम बोलना। हे प्रभु आप सब प्रकार से मनोकामना रहित हैं। आप दुखियों पर दया करने वाले हैं। अतः हे नाथ मेरे भारी संकट को दूर करने की कृपा करें।
विशेषः यह प्रसंग वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण हनुमान्नाटक और रामचरितमानस में समान रूप से मिलता है।