दिल्ली सल्तनत के राज्य में नगरीय अर्थव्यवस्था के विस्तार को बनाये रखने वाले प्रमुख कारकों की पहचान कीजिए?
21 Oct, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण:
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तुर्को के आगमन ने नगरीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिये अनुकूल वातावरण प्रस्तुत करने का काम किया जिसमें किसानों को बिचौलियों की शक्ति से मुक्त किया गया तथा अधिशेष उत्पादन से नगरीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित किया गया। नगरीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि ने विभिन्न प्रकार की प्रौद्योगिकी एवं शिल्पों को जन्म दिया जिससे उद्योगों का विकास हुआ जिसने नागरीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित कर विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया।
रेशम के कीड़ों को पालने के साथ रेशम वस्त्र उद्योग का विकास हुआ तो साथ ही कालीन बुनने का उद्योग प्रारंभ हो गया इसी के साथ कागज के परिणामस्वरूप जिल्दसाजी उद्योगों को बढ़ावा मिला। इस प्रकार विभिन्न प्रकार के उद्योगों की स्थापना के साथ दस्तकारों का एक वर्ग तैयार होने लगा जिससे उसने उद्योगों में प्रोत्साहन का कार्य किया। इन्हीं गतिविधियों के साथ विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े नगरों की शृंखला बनती चली गयी।
वस्त्र उद्योग की स्थिति तुर्को के द्वारा लाये गये चरखे के प्रचार के साथ और उन्नत होती गयी। मोटे सूती वस्त्र उद्योंगों के साथ मलमल का उत्पादन बढ़ता गया। उस समय पटोला वस्त्र गुजरात के निर्मित होते थे तथा रेशम के उच्च कोटि के वस्त्र ईरान से आपात किये जाते थे, जिसके साथ व्यापार को बढ़ावा मिला इसी व्यापार के साथ बड़े-बड़े नगरों का विकास होता गया और नगर दिल्ली सल्तनत में अर्थव्यवस्था के केंद्र बनते चले गये।
नगरों में रोज़गार के अवसर प्रचुर मात्रा में बढ़ने लगे तथा ग्रामीण कारीगारों का पलायन नगरों की ओर बढ़ा। नगरों में रोज़गार का एक प्रमुख साधन भवन निर्माण भी रहा क्योंकि इसी समय दिल्ली सुल्तानों ने नगरों में बड़े-बड़े भवनों का निर्माण करना। बरनी के अनुसार, अलाउद्दीन ने ही सत्तर हजार मज़दूर अपने भवनों के निर्माण के लिये नियुक्त कर रखे थे। जो कहीं न कहीं नगरीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित एवं विस्तारित कर रहे थे।
विभिन्न दिल्ली सुल्तानों ने नगरों की अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिये कार्य किये, रोज़गार के साधनों की वृद्धि के लिये नगरों में शाही कारखानों की स्थापना की जाती थी। जिससे राज परिवार की शाही आवश्यकता पूर्ण हो सके तथा आय के नवीन साधन विकसित हो सके तथा आम जन जीवन की आवश्यकता की सभी वस्तुएँ नियमित उत्पादित हो सके इसके लिये विभिन्न शिल्पों को प्रोत्साहित किया जाता था। फिरोज शाह तुगलक ने अनेक शाही कारखानों की स्थापना की जिसमें लगभग 12000 दासों को लगाया गया था।
दिल्ली सल्तनत में अंतर्देशीय एवं विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित दिया गया जिसके साथ नगरीय अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ। नगरों के व्यापार वाणिज्य विकास के लिये सड़कों का निर्माण किया गया। तुगलक काल तक दक्षिण में देवगिरि, तेलंगाना एवं माबर तक के क्षेत्र सड़को के माध्यम से दिल्ली से जुड़ चुके थे।। सड़क मार्गो ने आंतरिक व्यापार को बढ़ावा दिया जो नगरीय व्यापारियों के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण थे जिसने नगरीय व्यापार को बढ़ावा दिया। इसी के साथ गुजरात विजय के बाद समुद्री मार्ग से विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित किया। तथा नगरीय अर्थव्यवस्था की संभावनाओं को और अधिक विकसित किया।
आमतौर पर व्यापारी वर्ग नगरों में निवास करता था उसने नगरीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित एवं विस्तारित किया था व्यापारी वर्ग में अनेक वर्ग सक्रिय थे जो मारवाड़ी, गुजराती, सुल्तानी, हिंदू एवं जैन थे। नगरीय अर्थव्यवस्था के विस्तार को बनाये रखने में मुख्य भूमिका मुद्रा प्रणाली की थी इसने व्यापक लेन-देन को बढ़ावा दिया। दिल्ली सुल्तानों के अंतर्गत मुद्रा की सिक्कों में ढलाई और विनियम के माध्यम से व्यापक असर पड़ा जिसने वस्तुओं की ठीक-ठीक कीमत मापने का काम किया जिसने शहरी केंद्रीयकरण को बढ़ावा दिया। इसी के साथ मुद्रा ने भूमि के अलावा संपत्ति का एक अन्य स्थाई और अविनाशी रूप प्रदान किया।
सल्तनत काल में बहुत से शहरों का विकास हुआ तथा प्राचीन शासन व्यवस्था के केंद्र बिंदु भी नगर ही रहे उनकी राजधानियाँ भी नगरों के रूप में स्थापित थे जिन्हें गोलकुंडा, अहमदाबाद आदि शहरों के रूप में देख सकते है। कुछ सुल्तानों ने व्यक्तिगत रूप से भी नगरों को प्रोत्साहन दिया जिसमें फिरोज शाह का नाम लिया जा सकता है जिसने जौनपुर, फिरोजपुर, फतेहाबाद एवं फिरोजाबाद जैसे नगरों की स्थापना की।
निष्कर्षतः इस प्रकार प्रशासकीय आवश्यकताओं तथा नागरिक आवश्यकताओं के साथ व्यापारिक गतिविधियों प्रसार ने नगरीय अर्थव्यवस्था को विस्तारित किया। अतः कह सकते है कि सल्तनत काल को विकसित नगरीय अर्थव्यवस्था ने मुगल काल की प्रगति के मार्ग को प्रशस्त किया।