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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हिंदी के किसी एक यात्रा वृतांत लेखन की लेखनगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।

    19 Oct, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका
    • किसी यात्रा वृतांत लेखक की लेखन गत विशेषताएँ
    • निष्कर्ष

    यात्रा वृतांत एक आधुनिक साहित्यिक विधा है। यह यात्रा के दौरान देखे गए स्थलों, वस्तुओं, प्राकृतिक घटनाओं, व्यक्तियों आदि से संबंधित ब्योरों की स्मृतियों के सृजनात्मक उपयोग पर आधारित विधा है। इसकी उपस्थिति द्विवेदी युग से ही दर्ज हुई।

    यात्रा वृतांत लेखन में ‘राहुल सांकृत्यायन’ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने असंख्य यात्राएं की एवं उसी अनुपात में साहित्य भी रचा। इनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ ‘मेरी यूरोप यात्रा’, ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’, ‘गंगा से वोल्गा’, मेरी लद्दाख यात्र आदि हैं।

    लेखक ने अपने वृतांत यात्रा-साहित्य में स्वामी प्रणवानंद, भदंत आनंद कौसल्यायन तथा सिल्वा देवी आदि महान व्यक्तियों के शब्द-चित्र भी रेखांकित शैली में प्रस्तुत किये। राहुल की यात्रओं में आत्मकथा के तत्त्व सर्वत्र विद्यमान हैं। वर्णनों में लेखक के व्यक्तित्त्व की छवियाँ रोचकता बनाए रखती हैं। विभिन्न समाजों की भिन्न-भिन्न जीवनशैली और संस्कृतियों के दिव्य दर्शन पाठकों को बांधे रखती हैं।

    इनके लेखन की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इन्होंने भारत की सांस्कृतिक धरोहर का खूब प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने अपनी यात्रा-साहित्य में इतिहास-भूगोल, पुरातत्त्व-संस्कृति, समाज-धर्म,कला साहित्य आदि पक्षों पर भी पर्याप्त ध्यान दिया है। उन्होंने भारत के अतिरिक्त श्रीलंका, नेपाल, इंग्लैंड ,पेरिस, जापान, कोरिया, ईरान, रूस, आदि देशों का भी भ्रमण किया।

    राहुल घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, उन्होंने इसे संसार का सबसे बड़ा धर्म कहा एवं इस धर्म को समर्पित एक ऐसे ग्रंथ (घुमक्कड़ शास्त्र) की रचना की जिसने ना केवल घुमक्कड़ी के सार्वजनिक महत्त्व को प्रतिस्थापित किया बल्कि युवा-पीढ़ी को भी इस वर्ग के पालन की प्रेरणा दी।

    राहुल की यात्रा साहित्य में संस्कृति निष्ठ भाषा के साथ-साथ अरबी-फारसी के सह प्रचलित शब्दों की शोभा देखते ही बनती है। खास बात यह है कि लेखक प्रायः ऐसे शब्दों का हिंदी रूपांतरण भी देता चलता है।

    राहुल ने अपनी उर्दू की किताब में एक शेर पढ़ा था- “सैर कर दुनिया की गाफिल, ज़िंदगानी फिर कहाँ। ज़िंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ।”

    यह शेर राहुल के घुमक्कड़ जीवन का मूल-मंत्र बन गया और उन्होंने अपने जीवन में अनाथ अविरल गति से यात्रा करते हुए अपने समस्त अनुभवों का सफर कृतियों में निचोड़ दिया दिया।

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