मध्यकाल में काव्यभाषा के रूप में प्रयुक्त अवधी की विशेषताएँ।
15 Oct, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • काव्यभाषा के रूप में अवधी की विशेषताएँ • निष्कर्ष |
उत्तर प्रदेश के अंतर्गत जो क्षेत्र लखनऊ-फैज़ाबाद के आस-पास का है, उसे ही अवध कहा जाता है। इस क्षेत्र से संबंधित भाषा अवधी कहलाती है। भाषा के विकास में अवधी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अवधी की विशेषताओं को दो भागों में बाँटकर देखना बेहतर होगा-
1. सूफियों की अवधी की विशेषताएँ
2. समकाव्यधारा की अवधी की विशेषताएँ
1. ध्वनि संरचना के स्तर पर सूफी संदर्भ में व > ब, ष > ख, ऋ > रि मिलता है जैसे- वर्षा > बरखा, ऋतु > रितु वहीं रामकाव्यधारा में तत्सम ध्वनियों को प्रायः अवधी रूप में ढाल दिया गया है- श > स, क्ष > ख, ण > न न मिलता है। जैसे- लक्ष्मण > लखन, रावण > रावन
2. सूफियों की अवधी में सर्वनामों की संरचना इस प्रकार रही-उत्तम पुरूष – मइँ, हौं, मोर
अन्य पुरूष – वह, ओइ, तें
मध्यम पुरूष – तूँ, तैं तुम्ह, तुम
अन्य रामकाव्यधारा में भाषा को व्यापक बनाने के लिये खड़ी बोली के सर्वनामों वह, तुम्हारा, हमारा इत्यादि का प्रयोग भी किया गया है। साथ ही इस काव्यधारा के अपने सर्वनाम इस प्रकार हैं-
एकवचन बहुवचन
उ. पु. मैं, मोहि हम
म. पु. तु, तुम्ह तुम्हार
अ. पु. सो, वह
अन्य सर्वनाम – जो, को कौन, जिन्ह आदि
उदाहरण – जिन्ह हरि कथा सुनी नहिं काना।
3. क्रिया व्यवस्था के स्तर पर दोनों धाराओं में वर्तमान काल के लिये ‘त’ रूप वाली क्रियाएँ प्रचलित थीं। जैसे- करत, देखत। “करत तबकही अनुज सन, मन सिय रूप लोभान”।
सूफी काव्यधारा में भूतकाल के लिये प्रायः ‘स’ तथा ‘व’ रूप दिखते हैं, जैसे कीन्हेसि, आवा। वहीं रामभक्तिधारा मे देखिके, करिके, पावा, आवा जैसे प्रयोग प्रचलित हैं। भविष्यकाल के लिये सूफी काव्यधारा में ‘ब’ व ‘ह’ रूप प्रचलित है, जैसे- चलन, चलहि। वहीं रामकाव्यधारा में भी यही रूप प्रचलित है।
4. सूफी काव्यधारा में अव्यय, अविकारी पद इस प्रकार थे- कत, ऊपर आगे-पीछे, अस, तस, जस, तब, तब, फिर आदि एवं राम भक्तिधारा में इस प्रकार हैं-
कालवाचक – अब,तब, अबहूँ, तबहूँ, पीहले।
स्थानवाचक – इहाँ, कहाँ, तहँ, इत, उत।
प्रकारवाचक – इमि, जिमि, किमि,जस, कस।