वर्तमान में COVID-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था के संकुचन ने शहरी क्षेत्रों में रोज़गार की स्थिति पर चिंताओं में वृद्धि की है। आपके अनुसार इससे निपटने हेतु सरकार द्वारा किन संभावित उपायों को अपनाया जा सकता है। चर्चा करें।
15 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण :
|
COVID -19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था के संकुचन ने शहरी क्षेत्रों में रोज़गार की स्थिति पर चिंताओं में वृद्धि की है। इसके अलावा महामारी एवं इससे संबद्ध नीतिगत प्रतिक्रियाओं (अनियोजित लॉकडाउन) ने इन शहरी नौकरियों की भेद्यता को भी उजागर किया है। ऐसे में, समग्र अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिये ,शहरी रोज़गार सृजन को पुनर्जीवित करने के लिये कुछ नीतिगत हस्तक्षेपों तथा नवीन उपायों को अपनाये जाने की आवश्यकता है।
आर्थिक मंदी के परिमाण का उदाहरण लॉकडाउन के शुरुआती चरण के दौरान बड़े पैमाने पर रिवर्स माइग्रेशन की लहर के रूप में दिया जा सकता है, जिससे शहरों में आजीविका चले जाने के कारण लाखों श्रमिक अपने गृह राज्यों में लौट गए थे। अपर्याप्त आय, कम उत्पादकता एवं काम की कठिन परिस्थितियाँ सुभेद्य रोज़गार की विशेषताएँ हैं जो श्रमिकों के मूल अधिकारों को क्षीण करती हैं।
हाल के वर्षों में अधिक आर्थिक विकास के बावज़ूद, भारत में कामकाजी ग़रीबों की संख्या में वृद्धि हो रही है। सेवा क्षेत्र की अगुवाई वाली वृद्धि ने इसे तीव्र कर दिया है क्योंकि कुछ सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) गहन सेवाओं में सुदृढ़ रोज़गार सृजन का सह-अस्तित्व है। नौकरियों की खराब गुणवत्ता एवं अधिक अनौपचारिकता "कामकाजी गरीबों" के उच्च स्तर का प्रमुख कारण हैं।
शहरीकरण को देखते हुए, शहरी रोज़गार सृजन कार्यक्रमों पर ध्यान स्थानीय सरकारों के केंद्र में होना चाहिये। इसके लिये स्थानीय स्तर पर कर्ताओं को अधिक संसाधन के व्यवस्थापन की आवश्यकता होगी। चुने हुए प्रतिनिधियों, ट्रेड यूनियनों, उद्यमियों और सामुदायिक समूहों को शामिल करके स्थानीय गठबंधनों के गठन से संसाधन जुटाए जा सकते हैं। यह शहरों के सामने आने वाली अन्य समस्याओं को हल करने में भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
उपाय-
रोज़गार-गहन निवेश नीतियों को कार्यान्वित करने के लिये प्रमुख स्थानीय पहलों की आवश्यकता है। इसके लिये प्रौद्योगिकी और उत्पादकता वृद्धि से जुड़े मुद्दों पर श्रमिकों और उद्यमियों के लिये हितों को कवर करने के लिये स्थानीय उद्यम निर्माण को रणनीति का एक अभिन्न अंग बनाने की आवश्यकता है।
इसके अलावा, लघु और सूक्ष्म उद्योग जो औद्योगिकीकरण का आधार हैं, श्रम और पूंजी के मध्य हितों को संतुलित करने के लिये अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है।
शहरी अवसंरचना को प्राथमिकता देना आवश्यक है क्योंकि यह समग्र अर्थव्यवस्था में कुल निवेश के एक बड़े हिस्से के लिये उत्तरदायी होती है। नगरीय बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये एक श्रम-साध्य दृष्टिकोण, पूंजी गहन-दृष्टिकोण का एक लागत-प्रभावी विकल्प हो सकता है क्योंकि मज़दूरी की दरें कम हैं। अवसंरचना निवेश रोज़गार उत्पन्न करेगा, आय उत्पन्न करेगा और छोटे उद्यम निर्माण में योगदान देगा।
कम लागत वाले आवास का निर्माण एक अन्य गतिविधि है जिसे शहरी निवासियों के लिये पर्याप्त लाभ प्रदान करते हुए, श्रम-गहन तरीकों का उपयोग करके किया जा सकता है। इसके साथ ही संपूर्ण भारत के शहरों और कस्बों में बड़े पैमाने पर चिकित्सा, स्वास्थ्य और स्वच्छता बुनियादी ढाँचे के निर्माण की दिशा में उन्मुख एक शहरी रोज़गार योजना के तत्काल शुभारंभ की आवश्यकता है।
बजटीय आवंटन बढ़ाने और काम के दिनों की न्यूनतम संख्या की गारंटी में वृद्धि कर शहरी क्षेत्रों के लिये मनरेगा का विस्तार किया जा सकता है। राज्य और स्थानीय सरकारों के कल्याणकारी हस्तक्षेप के रूप में अन्य रोज़गार सृजन तत्काल आवश्यक सेवाओं के नेटवर्क का विस्तार करने के लिये हो सकता है।
प्रवासन को कम करने के लिये प्रोत्साहन में वृद्धि: ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने और शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी एवं स्वच्छता जैसी सेवाओं में वृद्धि करके ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करना ग्रामीण से शहरी प्रवासन को नियंत्रित करने के लिये प्रभावी साधन है।
निष्कर्षतःआर्थिक संकुचन को देखते हुए, शहरी क्षेत्रों में समुचित वेतन और रोज़गार की सुरक्षा प्रदान करके अधिक रोज़गार उत्पन्न करने एवं सुभेद्यता को कम करने की आवश्यकता है। इस प्रकार, वर्तमान संकट शहरी रोज़गार के मुद्दे से निपटने के लिये एक बहु-आयामी रणनीति का आह्वान करता है।