क्या आप इस मत से सहमत हैं की ‘बिस्मार्क की विदेश नीति ने यूरोप में राजनीतिक गुटबंदी का एक ऐसा माहौल तैयार कर दिया जिसने प्रथम विश्व युद्ध को अवश्यंभावी बना दिया।’ टिप्पणी करें ।
15 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण-
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कूटनीति किसी भी युद्ध का कारण नहीं मानी जा सकती किंतु उसके कारण युद्ध के अनुकूल स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व भी ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो चुकीं थीं बिस्मार्क की कूटनीतिक संधियों के कारण एक ओरर त्रिगुट का निर्माण हुआ,तो दूसरी ओर आत्मरक्षा में त्रिराष्ट्र मैत्री स्थापित हुई उसने पूरे यूरोप को दो विरोधी गुटों में बाँट दिया, जिसके सदस्य संधियों के जाल में इस प्रकार जुड़े थे कि यदि उनमें से कोई युद्ध छेड़ देता, तो दूसरे अपने आप ही खिचें चले जाते।
जर्मनी के आस्ट्रिया के साथ तथा अस्ट्रिया के रूस के साथ अच्छे संबंध न होने के बावजूद ‘यूरोप में शांति’ एवं ‘समाजवादी आंदोलन के खतरे’ का हवाला देकर बिस्मार्क ने 1872 ई. में बर्लिन में जर्मनी, आस्ट्रिया, रूस के ‘तीन सम्राटों के संघ’ का निर्माण किया।
रूस-तुर्की युद्ध उपरांत हुई ‘सन स्टीफानो संधि’ में संशोधन हेतु बर्लिन में बुलाए गए सम्मेलन में बिस्मार्क ने सीधे तौर पर आस्ट्रिया के हितों को वरीयता दी। इससे रूस तो नाराज हो गया परंतु जर्मनी की आस्ट्रिया के साथ घनिष्ठता बढ़ गई। 1879 में जर्मनी और आस्ट्रिया के बीच एक रक्षात्मक संधि हुई, जिसके अंतर्गत यह तय हुआ कि युद्ध छिड़ने की स्थिति में दोनों देश एक-दूसरे की पूरी ताकत से सहायता करेंगे।
आस्ट्रिया और इटली की शत्रुता का इतिहास पुराना था। सदियों तक आस्ट्रिया ने ही इटली की राष्ट्रीय एकता को रोका था। किंतु, ‘ट्यूनिस’ मुद्दे पर इटली फ्राँस के खिलाफ हो गया था। इन परिस्थितियों में बिस्मार्क ने अपनी कूटनीतिक चतुराई से इटली को जर्मनी और आस्ट्रिया के साथ मिलकर एक ‘त्रिगुट’ के निर्माण के लिये राजी कर लिया। यह संधि भी सुरक्षात्मक संधि थी।
1887 में बिस्मार्क ने रूस के साथ ‘पुनराश्वासन संधि' की जिसका मुख्य लक्ष्य रूस का फ्राँस से घनिष्ठ संबंध स्थापित नहीं होने देना था। रूस में बिस्मार्क विरोधी लहर होने के बावजूद बिस्मार्क ने रूस के साथ मित्रवत संबंधों को पुनर्जीवित करने के आश्वासन के साथ यह संधि करने में सफलता पाई।
उल्लेखनीय है कि उस समय ब्रिटेन यूरोपीय राजनीति में अलगाव की राजनीति का अनुसरण कर रहा था। बिस्मार्क को अहसास था कि यदि ब्रिटेन की नौसेना की श्रेष्ठता को चुनौती न दी जाए तो वह किसी राष्ट्र का विरोधी नहीं होगा। अतएव, ब्रिटेन को खुश करने के लिये बिस्मार्क ने जर्मनी नौ-सेना को बढ़ाने के लिये कोई कदम नहीं उठाया। उसने औपनिवेशिक विस्तार भी इंग्लैण्ड की सदिच्छा प्राप्त करके ही किया।
इस गुटबंदी के कारण ही गुट के प्रत्येक सदस्य को ऐसी कार्यवाही भी करनी पड़ती थी, जिसमें उन्हें कोई लाभ नज़र नहीं आ रहा हो क्योंकि उन्हें अपने मित्र का समर्थन करना पड़ता था अतः उनकी कार्यवाही में भी सम्मिलित होना पड़ता था ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय को भी यह विश्वास हो गया की ‘ट्रिपल एलायन्स’ के विरुद्ध ‘ट्रिपल ऐतांत’ को मज़बूत बनाने के लिये इंग्लैंड को रूस और फ्रांस का समर्थन करना चाहिए इस प्रकार कूटनीतिक संधियों, जिनकी शुरुआत बिस्मार्क ने की थी के कारण विश्व युद्ध आवश्यक हो गया। अतः बिस्मार्क की संधियां युद्ध का एकमात्र कारण तो नहीं मानी जा सकती किंतु एक महत्त्वपूर्ण कारण अवश्य थी।