भारतीय संविधान में किन आधारों पर अल्पसंख्यकों को स्वीकार किया गया है? क्या अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार दिया जाना ‘विधि के समक्ष समता’ तथा ‘धर्मनिरपेक्षता’ के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है?
11 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा
|
भारतीय संविधान में भाषा तथा धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को स्वीकार करते हुए अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30 में उनके संरक्षण के प्रावधान किये गए हैं। इसके अलावा संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का प्रावधान भी है।
हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समता की बात की गई है जिसके तहत सभी व्यक्ति विधि के समक्ष समान माने जाएंगे, किंतु इसी अनुच्छेद में विधियों के समान संरक्षण की बात भी की गई है। यह तार्किक रूप से युक्तियुक्त वर्गीकरण को स्वीकार करते हुए सामाजिक परिस्थिति के अनुसार असुरक्षित समूहों के हितों के संवर्द्धन पर बल देता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में बहुमत की सरकार बनती है, ऐसे में संख्या में कम होने के कारण अल्पसंख्यकों के हितों की अनदेखी की जा सकती है। इस दृष्टि से उन्हें विशेष अधिकार दिया जाना हमारे संविधान के अनुकूल ही है। यहाँ इस तथ्य पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि किसी वर्ग की सुरक्षा के लिये प्रदान किये गए विशेष अधिकारों को विधि के तहत समता का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत, धर्म के आधार पर विभेद किये जाने का विरोध करता है। भारत में धर्मनिरपेक्षता के तहत गांधी जी की अवधारणा को अपनाया गया है, जिसके अनुसार सभी धर्मों को समान और सकारात्मक रूप से प्रोत्साहित करने की बात की गई है। जैसा कि पूर्व लिखित है ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ सिस्टम में धार्मिक रूप से बहुसंख्यक लोग अल्पसंख्यकों का शोषण कर सकते हैं, ऐसे में धर्म के आधार पर उन्हें विशेष अधिकार दिया जाना धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्षता की भावना का सम्मान करना है। यहाँ यह ध्यान देना भी आवश्यक है कि आपराधिक कार्यों के लिये किसी भी धर्म को विशेष अधिकार नहीं दिया गया है। यह भी हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता की भावना को ही दर्शाता है।
स्पष्ट है कि अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार दिया जाना ‘विधि के समक्ष समता’ तथा ‘धर्मनिरपेक्षता’ के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है।