पंडित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत दर्शन ‘एकात्म मानववाद’ से आप क्या समझतें हैं? वर्तमान प्रासंगिकता में इसकी प्रसांगिकता के बिंदुओं पर प्रकाश डालें।
28 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण- • भूमिका • पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन। • ‘एकात्म मानववाद’ की संकल्पना। • प्रसांगिकता। • निष्कर्ष। |
पंडित दीन दयाल उपाध्याय का जन्म सितंबर, 1916 को मथुरा ज़िले के नगला चन्द्रभान ग्राम में हुआ था। इन्होंने पिलानी, आगरा और प्रयाग से अपनी शिक्षा पूरी की। स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए और कॉलेज छोड़ने के तुरंत बाद ही संघ के प्रचारक बन गए। अपने संक्षिप्त जीवनकाल के दौरान इन्होंने राजनीतिक क्षेत्र, दार्शनिक क्षेत्र, पत्रकारिता एवं लेखन क्षेत्र इत्यादि में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ थे। इनके द्वारा प्रस्तुत दर्शन को ‘एकात्म मानववाद’ कहा जाता है जिसका उद्देश्य एक ऐसा ‘स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडल’ प्रस्तुत करना था जिसमें विकास के केंद्र में मानव हो। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पश्चिमी ‘पूंजीवादी व्यक्तिवाद’ एवं ‘मार्क्सवादी समाजवाद’ दोनों का विरोध किया, लेकिन आधुनिक तकनीक एवं पश्चिमी विज्ञान का स्वागत किया। ये पूंजीवाद एवं समाजवाद के मध्य एक ऐसी राह के पक्षधर थे जिसमें दोनों प्रणालियों के गुण तो मौजूद हों लेकिन उनके अतिरेक एवं अलगाव जैसे अवगुण न हो।
इनके अनुसार पूंजीवादी एवं समाजवादी विचारधाराएँ केवल मानव के शरीर एवं मन की आवश्यकताओं पर विचार करती है इसलिए वे भौतिकवादी उद्देश्य पर आधारित हैं जबकि मानव के संपूर्ण विकास के लिए इनके साथ-साथ आत्मिक विकास भी आवश्यक है। साथ ही, उन्होंने एक वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था की कल्पना की थी।
एकात्म मानववाद की वर्तमान प्रासंगिकता-
एकात्म मानववाद का उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है। यह प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय उपभोग का समर्थन करता है जिससे कि उन संसाधनों की पुनः पूर्ति की जा सके।
आज वैश्विक स्तर पर एक बड़ी जनसंख्या गरीबी में जीवन यापन कर रही है। विश्वभर में विकास के कई मॉडल लाए गए लेकिन आशानुरूप परिणाम नहीं मिला। अतः दुनिया को एक ऐसे विकास मॉडल की तलाश है जो एकीकृत और संधारणीय हो। एकात्म मानववाद ऐसा ही एक दर्शन है जो अपनी प्रकृति में एकीकृत एवं संधारणीय है।
एकात्म मानववाद न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता को भी बढ़ाता है। यह सिद्धांत विविधता को प्रोत्साहन देता है अतः भारत जैससे विविधतापूर्ण देश के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त है।
निष्कर्षतः एकात्म मानववाद का उद्देश्य प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना है एवं ‘अंत्योदय’ अर्थात समाज के निचले स्तर पर स्थित व्यक्ति के जीवन में सुधार करना है अतः यह दर्शन न केवल भारत अपितु सभी विकासशील देशों में सदैव प्रासंगिक रहेगा।