- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- हिंदी साहित्य
-
प्रश्न :
मुक्त छंद की धारणा निराला की छंद संबंधी प्रयोगशीलता का सर्वोच्च स्तर है। मुक्त छंद छंद मात्र से नहीं छंद रूढ़ि से मुक्ति की बात करता है। स्पष्ट कीजिये।
24 Sep, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• मुक्त छंद के माध्यम से छंद रूढ़ि से मुक्ति
• निष्कर्ष
मुक्त छंद की धारणा निराला से संबंधित है। जिसमें वह स्थापित करते हैं कि छंदानुसार भावों के स्थान पर भावानुसार छंदों का प्रयोग होना चाहिए। मुक्त छंद में भावावेग के अनुकूल लय तो होती है परंतु उसमें तुक नहीं होता और उसके सभी चरण सम नहीं होते। अतः निराला के मुक्त छंद में बंधन तो है पर वह बाहरी ना होकर आंतरिक है। निराला लिखते हैं, "मुक्त छंद तो वह है जो छंद की भूमि में भी रहकर मुक्त है xxxx मुक्त छंद का समर्थक उसका प्रवाह ही है। वही उसे छंद सिद्ध करता है।"
निराला ने मुक्त छंद के समर्थन में वैदिक छंदों का तर्क दिया है। वेद में भी मुक्त छंद हैं। वह कहते हैं, "परमात्मा स्वयं अगर यह रबड़ छंद व केंचुआ छंद लिख सकते हैं तो मैंने कौन सा कसूर कर डाला।" मुक्त छंद के प्रयोग का एक कारण यह भी था कि छापे की मशीन आ जाने के कारण कविता श्रव्य के स्थान पर पाठ्य हो गई थी। 'आर्ट ऑफ रीडिंग' पर आधारित हो गई थी क्योंकि विराम चिन्ह, कोष्ठक आदि प्रणालियाँ भी कविता का अंग बन गई थी।
निराला छंद मुक्ति वह मानव मुक्ति में गहरा संबंध देखते हैं। परिमल की भूमिका में वह लिखते हैं, "मनुष्य की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्य की मुक्ति कार्यों के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के अनुशासन से अलग हो जाना है।" वह काव्य और छंद की मुक्ति इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें सामंती संस्कृति के जड़ बंधन असह्य व अमान्य है। जो स्वयं मुक्त होता है, वही दूसरों को मुक्त कर सकता है। इस दृष्टि से छंदों की मुक्ति निराला जैसे मुक्त पुरुष के हाथों से ही संभव थी।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print