विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण अवस्था संबंधी रिपोर्ट के अनुसार, भारत सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षित आबादी वाला देश है। खाद्य असुरक्षा से आप क्या समझते हैं? भारत में खाद्य असुरक्षा के कारणों पर प्रकाश डालते हुए इससे निपटने हेतु वैकल्पिक समाधान सुझाएँ।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
• भूमिका
• रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
• खाद्य असुरक्षा के कारण
• निपटने हेतु वैकल्पिक समाधान
• निष्कर्ष
|
खाद्य और कृषि संगठन तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से जारी की जाने वाली खाद्य सुरक्षा और पोषण अवस्था संबंधी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 से 2019 तक खाद्य असुरक्षा का दायरा 3.8 प्रतिशत तक बढ़ गया है। वर्ष 2014 के सापेक्ष वर्ष 2019 तक 6.2 करोड़ अन्य लोग भी खाद्य असुरक्षा के दायरे में आ गए हैं। इसके अनुसार भारत सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षित आबादी वाला देश है।
रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण वर्ष 2030 तक शून्य भुखमरी के लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन प्रतीत हो रहा है। साथ ही आर्थिक मंदी के कारण विश्वभर में लगभग 8-13 करोड़ अन्य लोगों के इस वर्ष भुखमरी के कगार पर पहुँचने की संभावना व्यक्त की गई है।
खाद्य असुरक्षा से तात्पर्य धन अथवा अन्य संसाधनों के अभाव में व्यक्ति की पौष्टिक और पर्याप्त भोजन तक अनियमित पहुँच से है।
खाद्य असुरक्षा के दौरान लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ता है। खाद्य असुरक्षा को मुख्यतः मध्यम स्तरीय खाद्य असुरक्षा तथा गंभीर खाद्य संकट दो भागों में विभाजित करके देखा जाता है।
भारत में खाद्य असुरक्षा के कारण-
- वर्तमान समय में भारत की लगभग एक चौथाई जनता गरीबी से जूझ रही है। ऐसे में ये आर्थिक कमी के कारण पोषण-युक्त भोजन खरीद नहीं पाते और कुपोषण का शिकार होते हैं।
- भारत में पारंपरिक रूप से गुणवत्तापूर्ण खाने के स्थान पर अधिक भोजन खाने को महत्त्व दिया जाता है, ऐसे लोगों में संतुलित भोजन के स्थान पर अनाज को ग्रहण करने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है।
- इसके अलावा धार्मिक रुझानों के कारण मांसाहार के प्रति नकारात्मक प्रवृत्ति भी कुपोषण का एक कारण है। अंडा जैसे उत्पाद अपेक्षाकृत कम कीमत में प्रोटीन के अच्छे स्रोत है।
- गरीबों की उचित पहचान नहीं हो पाने के कारण वे कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते और खाद्य असुरक्षा का शिकार हो जाते हैं।
- विश्व व्यापार संगठन जनता के लिये व्यापार की सुगमता के नाम पर खाद्यान्नों पर सब्सिडी कम करने का दबाव बना रहा है। इससे भारत सरकार गरीबों को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध नहीं कर पाएगी जिससे भारत में कुपोषण की संख्या और बढ़ेगी।
- इसके अलावा अवसंरचना के अभाव से भी खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
समाधान के बिंदु-
- सर्वप्रथम बाज़ार में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। इसके लिये कृषि विपणन स्थलों में सुधार करने की आवश्यकता है।
- खाद्यान्न तक पहुँच बेहतर क्रय शक्ति पर निर्भर करती है। कृषक के अतिरिक्त प्रत्येक को बाज़ार से खाद्यान्न क्रय करना पड़ता है। इस वैश्विक महामारी के दौरान आर्थिक गतिविधियाँ बाधित होने से लोगों की पास धन का संकट है, परंतु मनरेगा जैसी योजना के कारण लाखों लोगों को रोज़गार प्राप्त हुआ है जिससे उनकी पहुँच खाद्यान्न तक सुनिश्चित हो पाई है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिये निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले प्रत्येक परिवार को खाद्यान्न कूपन देकर उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों पर मुद्रा के स्थान पर स्वीकार किया जाना चाहिये। ऐसी दुकानों पर गेंहूँ-चावल की बिक्री प्रचलित बाज़ार मूल्य पर होनी चाहिये, परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार की संभावना कम होगी।
- प्रौद्योगिकी विकास के साथ-साथ बहु-उपयोगी स्मार्ट कार्ड व्यवस्था अस्तित्व में आई है। इन कार्डों के माध्यम से विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन को सरल बनाया जा सकता है। इस प्रकार यदि सभी अर्ह परिवारों की पहचान, अधिकृत लेन-देन की जानकारी तथा प्राप्त खाद्यान्न की मात्रा आदि का विवरण ऑन-लाइन उपलब्ध हो तो खाद्यान्न के निर्गम के समय इसकी पुष्टि की जा सकती है। विवरण की जानकारी भी ऑन-लाइन हो जाने से कार्यक्रम की प्रगति भी आसान हो जाएगी।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में खाद्यान्नों, दालों, चीनी इत्यादि वस्तुओं के भंडारण व आयात का पूर्वानुमान लगाकर बफर स्टॉक बनाए जाने की रणनीति तैयार की जानी चाहिये जिससे भ्रष्टाचार और जमाखोरी को रोका जा सके।
निष्कर्षतः भारत को विकसित राष्ट्रों की सूची में शामिल होना है, तो उसे अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।