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प्रश्न :
'किसी भी प्रकार के आक्रमण से अपनी प्रजा की रक्षा करना राजसत्ता का सर्वप्रथम उद्देश्य होता है।' कथन के संदर्भ में देश की आंतरिक सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों की चर्चा करते हुए समाधान के बिंदुओं पर प्रकाश डालें।
21 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका।
• आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां।
• समाधान।
• निष्कर्ष।
आंतरिक सुरक्षा से आशय किसी देश की अपनी सीमाओं के भीतर की सुरक्षा से है। आंतरिक सुरक्षा का अर्थ समय के साथ बदलता रहा है। स्वतंत्रता से पूर्व जहाँ आंतरिक सुरक्षा के केंद्र में धरना-प्रदर्शन, रैलियाँ, सांप्रदायिक दंगे, धार्मिक उन्माद से निपटना था। वहीँ स्वतंत्रता के बाद विज्ञान एवं तकनीकी की विकसित होती प्रणालियों ने आंतरिक सुरक्षा को अधिक संवेदनशील और जटिल बना दिया है। आज पारंपरिक युद्ध की बजाय अब छदम युद्ध के रूप में आंतरिक सुरक्षा हमारे लिये बड़ी चुनौती बन गई है।
आंतरिक सुरक्षा के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ
भारत की भू-राजनैतिक स्थिति, इसके पड़ोसी कारक, विस्तृत एवं जोखिम भरी स्थलीय, वायु और समुद्री सीमा के साथ इस देश के ऐतिहासिक अनुभव इसे सुरक्षा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील बनाते हैं।
इस संदर्भ में आंतरिक सुरक्षा के सम्मुख निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं-
नक्सलवाद- नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई।आज नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती के रूप में मौज़ूद है।
धार्मिक कट्टरता एवं नृजातीय संघर्ष- स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक भारत में अनेक सांप्रदायिक दंगे हुए हैं। जिसने भारत की बहुलतावादी संस्कृति को छिन्न-भिन्न कर दिया है, धर्म, भाषा या क्षेत्र आदि संकीर्ण आधारों पर अनेक समूह व संगठनों ने लोगों में सामाजिक विषमता बढ़ाने का समानांतर रूप में प्रयास भी करते रहे हैं।
भ्रष्टाचार- भ्रष्टाचार को सभी समस्याओं की जननी माना जाता है, क्योंकि यह राज्य के नियंत्रण, विनियमन एवं नीति-निर्णयन क्षमता को प्रतिकूल रूप में प्रभावित करता है।
मादक द्रव्य व्यापार- भारत के पड़ोसी देशों में ‘स्वर्णिम त्रिभुज’ (म्यांमार, थाईलैंड और लाओस) व ‘स्वर्णिम अर्द्धचंद्राकार’ (अफगानिस्तान, ईरान एवं पाकिस्तान) क्षेत्रों की उपस्थिति के फलस्वरूप मादक द्रव्य का बढ़ता व्यापार भारत की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौती बन कर उभरा है।
मनी लाँड्रिंग- काले धन को वैध बनाना ही मनी लाँड्रिंग है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अवैध स्रोत से अर्जित की गई आय को वैध बनाकर दिखाया जाता है। इसमें शामिल धन को मादक द्रव्य व्यापार, आतंकी फंडिंग और हवाला इत्यादि गतिविधियाँ में प्रयोग किया जाता है।
आतंकवाद- आतंकवाद ऐसे कार्यों का समूह होता है जिसमें हिंसा का उपयोग किसी प्रकार का भय व क्षति उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। आतंकवाद की सीमा कोई एक राज्य, देश अथवा क्षेत्र नहीं है बल्कि आज यह एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या के रूप में उभर रही है।
संगठित अपराध- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक अथवा अन्य लाभों के लिये एक से अधिक व्यक्तियों का संगठित दल, जो गंभीर अपराध करने के लिये एकजुट होते हैं, संगठित अपराध के श्रेणी में आता है। परंपरागत संगठित अपराधों में अवैध शराब का धंधा, अपहरण, जबरन वसूली, डकैती, लूट और ब्लैकमेलिंग इत्यादि। गैर-पारंपरिक अथवा आधुनिक संगठित अपराधों में हवाला कारोबार, साइबर अपराध, मानव तस्करी, मादक द्रव्य व्यापार आदि शामिल हैं।
आंतरिक सुरक्षा को बेहतर बनाने के संदर्भ में उपाय-
राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक खुफिया तंत्र में तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और सुरक्षा पर गठित कैबिनेट समिति को पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आईएसआई से उत्पन्न सुरक्षा खतरों के खिलाफ एक प्रभावी जवाबी रणनीति तैयार करनी चाहिये।
केंद्र सरकार को सभी राज्य सरकारों को उनके द्वारा सुरक्षा प्रबंधन के विषय को प्राथमिकता देने की आवश्यकता के संदर्भ में जागरूक किया जाना चाहिये।
जिस समय सुरक्षाबलों द्वारा नक्सलवाद और आतंकवाद विरोधी अभियान चलाएँ जा रहे हों, उस समय राज्य सरकार को विकास योजनाओं के क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देना चाहिये। इस दिशा में ‘SAMADHAN पहल’ एक सराहनीय कदम है।
राज्यों के पुलिस बल के आधुनिकीकरण की ओर तत्काल ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
आर्थिक अपराधों से निपटने के लिये संबंधित नियामक एजेंसियों के बीच समन्वय सुनिश्चित किया जाना चाहिये। ‘केंद्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो’ इस संबंध में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
संगठित अपराध से निपटने के लिये अंतर्राज्यीय व अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
साइबर सुरक्षा के लिये हर विभाग में विशेष सेल बनाए जाने के साथ-साथ आईटी अधिनियम में संशोधन कर सजा के सख्त प्रावधान किये जाने चाहिये।
सीमा को तकनीकी की सहायता से प्रबंधित व निगरानी करने की आवश्यकता है।
निष्कर्षतः भारत सरकार को एक ‘समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति’ बनाने की आवश्यकता है। इस नीति के माध्यम से एक ‘राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों का मंत्रालय’ तथा ‘राष्ट्रीय सुरक्षा प्रशासनिक सेवा’ नाम से एक अलग केंद्रीय सेवा गठित किया जाना चाहिये।
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