निम्नलिखित पदों का संदर्भ सहित व्याख्या करें।
"पीछै लागा जाई था, लोक वेद के साथि,
आगे तैं सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि।।
सतगुरु हमसूँ रीझकर, कह्या एक परसंग,
बरस्या बादर प्रेम का, भीज गया सब अंग।।"
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • संदर्भ • प्रसंग • विशेष व्याख्या • निष्कर्ष |
संदर्भ: प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ भक्तिकाल के संत कव्याधारा के शिखर कवि कबीरदास द्वारा रचित हैं। कबीरदास की रचनाओं का संकलन डॉ. श्यामसुंदर दास ने 'कबीर ग्रंथावली' नाम से किया है। इस संकलन में कबीर की कविताएँ विषयवस्तु के अनुसार विभिन्न खंडों में विभाजित हैं। उपरोक्त पंक्तियाँ 'गुरुदेव को अंग' नामक खंड में से उद्धृत हैं।
प्रसंग: कबीर भारतीय साहित्य परंपरा के एकमात्र रचनाकार हैं जिन्होंने गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्त्व दिया है। इस दृष्टि से वे हर अन्य कवि तथा काव्य परंपरा पर भारी पड़ते हैं। 'गुरुदेव को अंग' कबीर की उन साखियों का संकलन है जिसमें उनके गुरुभक्ति संबंधी भाव व्यक्त हुए हैं। प्रस्तुत साखियाँ ऐसे ही भावों को व्यक्त करती हैं।
व्याख्या: पहली साखी में कबीर शास्त्र ज्ञान और प्रदत्त ज्ञान का अंतर स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि पहले मैं लोगों द्वारा सुनी हुई बातों और शास्त्रों द्वारा बताए गए मार्ग को ही परम सत्य मानकर उनका अनुसरण कर रहा था। वस्तुत: यह अंधकार का मार्ग था जिस पर चलकर कोई उपलब्धि नहीं हो सकती थी। फिर मेरी भेंट सतगुरु से हुई जिन्होंने मुझे इस मार्ग की निरर्थकता समझाई। उन्होंने मुझ पर कोई मार्ग थोपा नहीं बल्कि मेरे हाथ में दीपक देकर स्वयं अपना सत्य खोजने की प्रेरणा दी।
दूसरी साखी में कबीर उस क्षण की अनुभूति व्यक्त कर रहे हैं जब गुरु ने उन्हें परम ज्ञान की उपलब्धि कराई। वे बताते हैं कि सतगुरु ने मेरे भक्तिभाव और जिज्ञासा आदि से प्रसन्न होकर मुझे परम ज्ञान दिया। परम ज्ञान की प्राप्ति इतनी आह्लादकारी थी कि यूँ लगा जैसे प्रेम का बादल फट पड़ा हो और अंग-अंग प्रेम की वर्षा में भींगकर सराबोर हो गया हो।
विशेष
1. इन साखियों में सतगुरु का अप्रतिम महत्त्व बताया गया है। ध्यातव्य है कि कबीर गुरु नहीं सतगुरु का महत्त्व बताते हैं क्योंकि जहाँ गुरु का संबंध साधारण व शास्त्रीय ज्ञान से है, वहीं सतगुरु नि:स्वार्थ भाव से जीवन के गहनतम रहस्यों का ज्ञान देता है।
2. कबीर पर नाथों का गहरा प्रभाव था क्योंकि उनकी परवरिश नाथ परंपरा के माहौल में हुई थी। भक्ति का यह भाव संभावत: नाथों की प्रेरणा से भी उन्हें मिला है।
3. कबीर मध्यकाल में होकर भी आधुनिक कवि हैं क्योंकि वह शास्त्रवाद के विरुद्ध तर्क व अनुभव पर बल देते हैं। इन पंक्तियों में ज्ञान को महत्व दिया गया है किंतु यह ज्ञान शंकराचार्य के अद्वैतवाद का शुष्क व निरस ज्ञान नहीं है बल्कि ईश्वर के प्रेम की ओर उन्मुख करने वाला ज्ञान है।
4. दूसरी साखी में प्रेम और भक्ति की गहरी मस्ती भावपूर्ण तन्मयता के साथ विद्यमान है। कबीर आरंभ में हठयोगी थे और भावनाओं के मार्ग को काम्य नहीं समझते थे किंतु आगे चलकर सूफियों से भावुकता और तन्मयता के साथ विद्यमान है और उसका चरम उदाहरण अपनी कविताओं में पेश किया।
कबीर साहित्य के संदर्भ में यह पंक्तियाँ इसलिए प्रासंगिक हैं कि यह कबीर के सबसे प्रिय भाव की अभिव्यक्ति करती हैं। कबीर के संपूर्ण साहित्य में सबसे ज्यादा गहराई और प्रतिबद्धता उनके गुरु भक्ति संबंधी पदों में दिखती हैं जिनका साक्ष्य इन कविताओं में नज़र आता है।