‘समावेशी वित्तपोषण’ से आप क्या समझते हैं? यह किसी भी विकासशील देश को किस प्रकार लाभान्वित करता है? वर्तमान में इसे सुनिश्चित करने के लिए किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है? चर्चा करें।
16 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • ‘समावेशी वित्तपोषण’ क्या है? • लाभ • चुनौतियां |
‘समावेशी वित्तपोषण’ कम आय वाले लोग और समाज के वंचित वर्ग को वहनीय कीमत पर भुगतान, बचत, ऋण आदि सहित वित्तीय सेवायें पहुँचाने का प्रयास है। सामान्य शब्दों में इसे वित्तीय समावेशन भी कहा जाता है। ‘समावेशी वित्तपोषण’ का मुख्य उद्देश्य उन प्रतिबंधों को दूर करना है जो वित्तीय क्षेत्र में भाग लेने से लोगों को बाहर रखते हैं और किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वित्तीय सेवाओं को उपलब्ध कराना है।
‘समावेशी वित्तपोषण’ से लाभ-
विश्व बैंक की वैश्विक वित्तीय समावेशन डेटाबेस या ग्लोबल फाइंडेक्स रिपोर्ट-2017 के अनुसार, वर्ष 2014 में अनुमानित 53% भारतीय वयस्कों के अपेक्षा वर्तमान में 80% वयस्कों के पास एक बैंक खाता है।
जहाँ एक ओर इससे समाज में कमज़ोर तबके के लोगों को उनकी ज़रूरतों तथा भविष्य की आवश्यकताओं के लिये धन की बचत करने, विभिन्न वित्तीय उत्पादों जैसे-बैंकिंग सेवाओं, बीमा और पेंशन उत्पादों आदि में भाग लेकर देश के आर्थिक क्रियाकलापों से लाभ प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
वहीं दूसरी ओर इससे देश को 'पूंजी निर्माण' की दर में वृद्धि करने में भी सहायता प्राप्त होती है। इसके फलस्वरूप होने वाले धन के प्रवाह से देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलने के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों को भी संवर्धन प्राप्त होता है।
पूर्व में निजी वित्तीय संस्थान सीमित आय वाले ग्राहकों के साथ संलग्न नहीं थे, परंतु अब समय बदल गया है, और इस वर्ग के साथ भी निजी वित्तीय संस्थानों की सक्रिय भागीदारी भी हुई है। वितीय सेवाओं का एकीकरण जैसे प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना का जैम त्रयी योजना के साथ सम्मिलन लाभदायक प्रयोग सिद्ध हुआ।
वित्तीय समावेशन से सरकार को सरकारी सब्सिडी तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों में अंतराल एवं हेराफेरी पर रोक लगाने में भी मदद मिलती है, क्योंकि इससे सरकार उत्पादों पर सब्सिडी देने के बजाय सब्सिडी की राशि सीधे लाभार्थी के खाते में अंतरित कर सकती है।
संबंधित चुनौतियाँ -
निष्कर्षतः भारत में ‘समावेशी वित्तपोषण’ की सफलता के लिये, एक बहुआयामी दृष्टिकोण होना चाहिये, जिसके माध्यम से मौजूदा डिजिटल प्लेटफॉर्म, बुनियादी ढाँचे, मानव संसाधन, और नीतिगत ढाँचे को मज़बूत किया जाए और नए तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा दिया जाए। यदि मौजूदा समस्याओं के समाधान के लिये पर्याप्त उपाय किये जाते हैं, तो वित्तीय समावेशन के द्वारा गरीबों को भी आर्थिक विकास के लाभ प्राप्त होंगे।