सरकार द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण पानी की दैनिक खपत में दोगुनी वृद्धि देखने को मिली। अतः इस बात की आशंका भी बढ़ी है कि अगले कुछ वर्षों में हमें गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। वर्तमान में जल संकट के कारणों की चर्चा करते हुए उचित समाधान सुझाएँ।
15 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
हल करने का दृष्टिकोण- • भूमिका • भारत में जलसंकट की स्थिति • कारण • समाधान • निष्कर्ष |
भारत में उपलब्ध जल संसाधन विश्व का लगभग 4% है जबकि देश की जनसंख्या विश्व की कुल आबादी का लगभग 18% है। देश में उपलब्ध जल संसाधनों की गुणवत्ता में कमी और जनसंख्या में हुई तीव्र वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में भारी गिरावट आई है। सरकार के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में लोगों की दैनिक ज़रूरतों के लिये होने वाला भूमिगत जल का दोहन सामान्य औसत से 2.5 गुना अधिक है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2030 तक जल की मांग में 26% की वृद्धि देखी जा सकती है जबकि जल की उपलब्धता में 29% की कमी देखी जा सकती है। ऐसी स्थिति में उपलब्ध जल और मांग में 55% का अंतर देखा जा सकता है जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
वर्ष 2019 में वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट के ‘एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस’ में भारत को ‘अत्यधिक उच्च’ जल संकट वाले देशों की सूची में 13वें स्थान पर रखा गया था। COVID-19 के कारण देश में लागू लॉकडाउन के बीच जहाँ देश में पानी की खपत में वृद्धि हुई है वहीं इस महामारी के कारण जल संरक्षण की योजनाओं का कार्यान्वयन भी बाधित हुआ है।
जल संकट के प्रमुख कारण:
वर्षा का असमान वितरण : देश में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिये आवश्यक जल में वर्षा से प्राप्त होने वाले जल की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। परंतु देश के सभी हिस्सों में वर्षा की मात्रा और अवधि में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। साथ ही लगभग सभी भागों में वर्षा कुछ ही महीनों तक सीमित रहती है, जिसे हम मानसून के रूप में जानते हैं। ऐसे में वर्षभर जल की आवश्यकता के सापेक्ष वर्षा का सीमित और अनियमित होना एक बड़ी समस्या है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की मात्रा पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है परंतु इसके कारण समय और भौगोलिक दृष्टि से वर्षा का वितरण प्रभावित हुआ है। इससे होने वाली तात्कालिक क्षति के अतिरिक्त जल संरक्षण की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है।
प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन: 1960 के दशक में हरित क्रांति के तहत सिंचाई तकनीकों को नवीनीकृत करने पर विशेष ध्यान दिया गया और ग्रामीण क्षेत्रों तक सस्ती दरों पर विद्युत की पहुँच सुनिश्चित की गई, परंतु इससे कृषि उपज हेतु भूमिगत जल के अनियंत्रित उपयोग को बढ़ावा मिला। वर्तमान में दैनिक जीवन में जल की कुल मांग का 80-85% कृषि क्षेत्र में प्रयोग होता है। कृषि क्षेत्र में जल के प्रयोग के प्रति यह व्यवहार भविष्य में एक बड़े संकट का कारण बन सकता है।
कृषि भूमि और औद्योगिक इकाईयों के विस्तार के साथ आर्द्रभूमि की संख्या में कमी हुई है जिससे जल संरक्षण के प्राकृतिक तंत्र को काफी क्षति हुई है।
अतिक्रमण: वर्ष 2015-16 में शहरी विकास मंत्रालय द्वारा लोकसभा की जल संरक्षण पर स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत एक रिपोर्ट में देश के विभिन्न शहरी क्षेत्रों में जल संसाधनों के अतिक्रमण की जानकारी दी गई थी, इस रिपोर्ट के अनुसार देश के अधिकांश राज्यों में तालाबों और अन्य जल संसाधनों में अतिक्रमण के मामले देखे गए। लगभग सभी राज्यों में अतिक्रमण का कारण कृषि भूमि में विस्तार, बढ़ती जनसंख्या का दबाव और शहरीकरण ही थे।
समाधान:
निष्कर्षतः लॉकडाउन के कारण जहाँ घरेलू उपयोग के लिये जल की मांग बढ़ी हुई वहीं जल संरक्षण की कई योजनाओं में भी रुकावट आई है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय शहरों की आबादी में तीव्र वृद्धि देखने को मिली है ऐसे में भविष्य में शहरों में जल की मांग काफी बढ़ सकती है, अतः वर्तमान चुनौतियों से सीख लेते हुए हमें जल के सदुपयोग और संरक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा।