- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
क्या कारण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अनेक सुधार आंदोलनों तथा संवैधानिक प्रावधानों के बावज़ूद भी देश में बलात् श्रम विभिन्न प्रकार की दासता के रूप में अभी भी विद्यमान है। भारत में बलात् श्रम के विरुद्ध किये गए प्रावधानों की चर्चा करते हुए इस समस्या के निवारण में निहित चुनौतियों पर प्रकाश डालें।
14 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
• भूमिका
• प्रवधान।
• चुनौतियां।
• निष्कर्ष।
भारतीय समाज में बलात् श्रम या बंधुआ मज़दूरी कई वर्षों से चली आ रही है। अतीत के सामंती समाज में इसका स्वरूप अलग था जिसमें आर्थिक या जातीय कारणों से निम्न वर्गीय लोगों (दलित, आदिवासी, महिला) से बंधुआ मज़दूरी कराई जाती थी।
वर्ष 2018 में वाक फ्री फाउंडेशन द्वारा जारी वैश्विक दासता सूचकांक में आधुनिक दासता के मामले में भारत विश्व के 167 देशों में से 53वें स्थान पर है, जबकि संख्या के आधार पर भारत में विश्व के सर्वाधिक व्यक्ति (80 लाख) दासता का जीवन बिता रहे हैं। GSI के अनुसार, विश्व में आधुनिक दासता की सर्वाधिक गहनता उत्तर कोरिया में, जबकि न्यूनतम गहनता जापान में है।
आधुनिक दासता पारंपरिक रूप से चली आ रही दासता से भिन्न है। इसके अंतर्गत मानव तस्करी, ज़बरन विवाह, बाल विवाह, घरेलू नौकर बनाना, यौन हिंसा, जोखिम युक्त परिस्थितियों या कम वेतन पर कार्य कराना आदि शामिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के बलात् श्रम अभिसमय, 1930 के अनुसार, बलात् श्रम का अर्थ “दंड का भय दिखाकर किसी व्यक्ति से स्वेच्छा से तैयार या सहमत न होने पर भी श्रम करवाया जाना है।”
भारत में इसके प्रचलन के निम्नलिखित कारण हैं:
आर्थिक कारण: किसी व्यक्ति को बंधुआ मज़दूरी या बलात् श्रम में धकेलने का मुख्य कारण भूमिहीनता, बेरोज़गारी तथा निर्धनता है जो अन्य कारणों के साथ मिलकर लोगों को ऋण के जाल में उलझा देते हैं और व्यक्ति बंधुआ मज़दूरी की ओर प्रवृत्त होने को विवश हो जाता है।
सामाजिक कारण: भारत में बंधुआ मज़दूरी के कारणों में जातिगत संरचना प्रमुख है। भारत में बंधुआ मज़दूरी के सर्वाधिक पीड़ित दलित तथा आदिवासी समाज रहा है। इसके अतिरिक्त निरक्षरता, विवाह आदि जैसे सामाजिक संस्कारों, प्रथाओं और परम्पराओं में होने वाले खर्च भी व्यक्ति के सामाजिक-आर्थिक शोषण के लिये उत्तरदायी होते हैं।
अन्य कारण: बलात् श्रम को जारी रखने के अन्य कारणों में आप्रवासन, उद्योगों की अवस्थिति (दूर-दराज के क्षेत्रों में), श्रम गहन प्रौद्योगिकी आदि शामिल हैं।
भारत में बलात् श्रम के विरुद्ध प्रावधान-
संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान में विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से नागरिकों की गरिमा की रक्षा का वचन दिया गया है।
अनुच्छेद-23: संविधान का यह अनुच्छेद मानव दुर्व्यापार, बेगार तथा ऐसे ही अन्य प्रकार की बंधुआ मज़दूरी की प्रथा का उन्मूलन करता है।
यह अधिकार नागरिक और गैर-नागरिक दोनों के लिये उपलब्ध है। इसके अलावा यह व्यक्ति को न केवल राज्य के विरुद्ध बल्कि व्यक्तियों के विरुद्ध भी सुरक्षा प्रदान करता है।
संविधान में वर्णित ‘मानव दुर्व्यापार’ शब्द में पुरुष, महिला एवं बच्चों का वस्तु की भाँति क्रय-विक्रय करना, वेश्यावृत्ति, देवदासी, दासप्रथा आदि को शामिल किया गया है।
अनुच्छेद-24: संविधान का यह अनुच्छेद किसी फैक्ट्री, खान, अन्य संकटमय गतिविधियों यथा-निर्माण कार्य या रेलवे में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है।
कानूनी प्रावधान: भारत में बलात् श्रम या इससे संबंधित अन्य प्रकार के शोषणकारी कार्यों के निषेध हेतु विभिन्न कानूनी प्रावधान किये गए हैं जो निम्नलिखित हैं:
- अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956
- बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976
- न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948
- संविदा श्रम (नियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970
- बाल श्रम (निषेध और नियमन) अधिनियम, 1986
- भारतीय दंड संहिता की धारा-370
बलात् श्रम के निवारण में निहित चुनौतियाँ-
बंधुआ मज़दूरी प्रणाली में सर्वेक्षण का अभाव: भारत के प्रत्येक ज़िले को इस संबंध में सर्वेक्षण हेतु धन उपलब्ध कराए जाने के बावजूद वर्ष 1978 से अब तक पूरे देश में सरकारों द्वारा कोई सर्वेक्षण नहीं कराया गया। इससे संबंधित आँकड़ों के लिये सरकार बंधुआ मज़दूरी से छुड़ाए गए और पुनर्वासित लोगों की संख्या पर निर्भर है।
मामलों की पर्याप्त रिपोर्टिंग नहीं: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, पुलिस द्वारा सभी मामलों को रिपोर्ट नहीं किया जाता। वर्ष 2014 से वर्ष 2016 के बीच केवल 1,338 पीड़ितों का रिकॉर्ड रखा गया, इनमें 290 मामलों में पुलिस ने मुकदमे दर्ज किये। यह संख्या इसी अवधि में देश के छह राज्यों से छुड़ाए गए 5,676 पीड़ितों की संख्या के एकदम विपरीत है।
त्रुटिपूर्ण न्याय व्यवस्था: बलात् श्रम के मामले में पीड़ित को राहत के रूप में केवल आंशिक हर्जाना दिया जाता है तथा कई बार दोषियों को बहुत थोड़ी सज़ा देकर बरी कर दिया जाता है। न्यायिक व्यवस्था की लचर व्यवस्था को देखते हुए लोग कई ऐसे मामलों को दर्ज करने के प्रति हतोत्साहित दिखाई देते हैं।
पीड़ितों के पुनर्वास की समस्या: बलात् श्रम के पीड़ितों के बचाव तथा उन्हें मुख्य धारा में लाने में अनेक चुनौतियाँ व समस्याएँ विद्यमान हैं। इन समस्याओं में पुनर्समेकन सेवाओं की अपर्याप्तता, मानव तथा वित्तीय संसाधनों की कमी, सीमित संस्थागत जवाबदेही, गैर-सरकारी संगठनों और सरकार के मध्य साझेदारी की कमी आदि शामिल हैं।
नियमों के कार्यान्वयन में कमी: बलात् श्रम को नियंत्रित करने में मुख्य समस्या विद्यमान कानूनों के कार्यान्वयन में कमी है। तस्करी तथा बंधुआ मज़दूरी को अपराध घोषित करने वाले कानूनों को लागू करने में आने वाली मुख्य बाधा भारत के विभिन्न राज्यों में जाँच तथा अभियोजन के लिये एकीकृत कानून प्रत्यावर्तन प्रणालियों का अभाव भी है।
निष्कर्षतः बलात् श्रम के संबंध में मौजूदा कानूनों के सफल क्रियान्वयन हेतु प्रशासन, विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों, सिविल सोसाइटीज़ के साथ-साथ जन भागीदारी के माध्यम से सहयोग करना एवं लोगों के बीच बलात् श्रम के विरुद्ध जागरूकता का प्रसार करना होगा।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print