निराला की कविताओं में प्रगति-चेतना मार्क्सवादी प्रभाव के कारण था। सतर्क विवेचना कीजिये।
11 Sep, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • निराला की प्रगति चेतना पर मार्क्सवादी प्रभाव • निष्कर्ष |
निराला के काव्य-विकास को सामान्यतः तीन चरणों में विभक्त किया जाता है। पहला वर्ष 1920 से 1936, द्वितीय चरण वर्ष 1936 से 1950 तथा तृतीय चरण 1950 से 1961 तक। इनमें द्वितीय चरण की कविताओं में निराला में प्रगतिशील चेतना दिखाई देती है। इस चरण की कविताओं की सर्वप्रमुख विशेषता यथार्थवाद है।
कुकुरमुत्ता (प्रथम संस्करण), 'अजीमा', 'नये पत्ते' की कविताओं में जो व्यंग्य दिखाई देता है उनके भीतर निराला का सामाजिक यथार्थ का गहरा बोध छिपा हुआ है। 'कुकुरमुत्ता' में तो व्यंग्य की दोहरी मार है। इसमें एक ओर पूंजीपति वर्ग पर व्यंग्य है तो दूसरी ओर संकीर्ण प्रगतिशील दृष्टि पर। निराला की प्रगतिशील चेतना 'नये पत्ते' की 'कुत्ता भौंकने लगा', 'झिंगुर डरकर बोला', 'उछाल मारता चला गया', 'महगू मँहगा रहा' जैसी कविताओं में अपने चरम रूप में अभिव्यक्त हुई है।
निराला की उपर्युक्त प्रगतिशील चेतना को कई आलोचकों ने सीधे-सीधे मार्क्सवादी प्रभाव से जोड़कर देखा है। लेकिन ध्यातव्य है उनकी 1936 से पहले की कई कविताओं में भी प्रगतिशील दृष्टि मौजूद है। 'विधवा', 'भिक्षुक', 'तोड़ती पत्थर' आदि ऐसी ही कविताएँ हैं। अतः यह तो स्वीकार किया जा सकता है कि बाद में उन पर मार्क्सवादी चिंतन का कुछ प्रभाव पड़ा होगा लेकिन उनके प्रगतिशील चेतना से युक्त काव्य को मार्क्सवाद का परिणाम मानना उचित नहीं है।