उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
• भूमिका
• सरकारी प्रयास
• चुनौतियां
• निष्कर्ष
|
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्री ने बाघ जनगणना पर ‘स्टेटस ऑफ टाइगर्स को-प्रीडेटर्स एंड प्रे इन इंडिया’ नामक एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। जिसके अनुसार वर्तमान में बाघ संरक्षण के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब बाघों की संख्या में वृद्धि देखी गई। वर्तमान में विश्व के बाघों की आबादी का 70% भारत में है। बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये प्रति वर्ष 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रथम विश्व बाघ दिवस का आयोजन वर्ष 2010 में ‘सेंट पीटर्सबर्ग बाघ शिखर सम्मेलन’ के दौरान किया गया था।
खाद्य श्रृंखला में बाघ शीर्ष के जीवों में से एक है जिस पर पूरा पारिस्थितिकी तंत्र निर्भर करता है। पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिये बाघों का संरक्षण बहुत ही आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि पिछले 100 वर्षों में वैश्विक स्तर पर बाघों की आबादी में भारी गिरावट देखने को मिली है और कई क्षेत्रों में बाघों की आबादी पूर्णतयः समाप्त हो चुकी है।
बाघ संरक्षण हेतु प्रयास-
- वर्ष 1969 में नई दिल्ली में आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ’ की 10 वीं आम सभा में बाघों की घटती आबादी का मुद्दा उठाया गया।
- वर्ष 1970 के दशक में केंद्र सरकार की तरफ से बाघों के संरक्षण के प्रति एक मज़बूत राजनीतिक प्रतिबद्धता देखने को मिली और सरकार द्वारा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम का मसौदा प्रस्तुत किया गया।
- इसके परिणामस्वरूप देश के विभिन्न हिस्सों में राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्वों की स्थापना की गई।
- राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्वों की स्थापना के माध्यम से वन्य जीवों के संरक्षण हेतु विशेष प्रावधान किये गए जो देश के सामान्य वनों में संभव/उपलब्ध नहीं थे।
- इसी दौरान सरकार द्वारा 'प्रोज़ेक्ट टाइगर' जैसे कुछ बड़े प्रयास शुरू किये गए।
चुनौतियाँ:
- अवैध शिकार: लंबे समय से बाघों का शिकार शक्ति प्रदर्शन के लिये किया जाता रहा है, साथ ही बाघों के शरीर के प्रत्येक हिस्से का बाज़ार में अच्छा मूल्य प्राप्त होता है। अतः व्यक्तिगत और कारणों से बड़े पैमाने पर बाघों का शिकार किया जाता है।
- मानव-प्रकृति संघर्ष: जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक विकास और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण वन्य जीवों के प्रवास क्षेत्र का लगातार ह्रास हो रहा है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाघों की संख्या में वृद्धि तो हुई है परंतु प्राकृतिक प्रवास स्थान के क्षरण के कारण बाघों को बहुत ही छोटे से क्षेत्र में सीमित रहना पड़ता है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत और दक्षिण के कुछ राज्यों में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है परंतु पूर्वोत्तर भारत और देश के कुछ अन्य हिस्सों में बाघों की आबादी में गिरावट देखी गई है।
- हाल के वर्षों में सरकार ने वन्य क्षेत्रों में विनिर्माण परियोजनाओं के लिये ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ से जुड़ी मंज़ूरी देने की प्रक्रिया को आसान कर दिया गया, जिसके कारण वन्य क्षेत्रों के निकट औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
- टाइगर रिज़र्वों के बीच संपर्क मार्गों की स्थिति का ठीक न होना भी एक बड़ी चुनौती है, बाघों के संरक्षण के लिये देश के अलग-अलग हिस्सों से बाघों की आबादी के बीच जीन पूल का हस्तानान्तरण बहुत ही आवश्यक है।
निष्कर्षतः उपरोक्त प्रयासों के अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में हो रहे प्राकृतिक बदलावों को देखते हुए बाघ संरक्षण परियोजनाओं में भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप आवश्यक बदलाव भी करना होगा जिससे बाघ संरक्षण कर पारिस्थितिक संतुलन को बनाये रखा जा सके।