भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों निरंतर प्रगति हुई है। वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को नियंत्रित करने में भारत-जापान द्विपक्षीय सहयोग के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
08 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हल करने का दृष्टिकोण- • भूमिका • भारत-जापान द्विपक्षीय सहयोग का महत्त्व • निष्कर्ष |
हाल ही में भारत और जापान की नौ-सेनाओं द्वारा हिंद महासागर में संयुक्त युद्धाभ्यास का आयोजन किया गया। इस युद्धाभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की नौ-सेनाओं के बीच परस्पर समन्वय बढ़ाना था। उल्लेखनीय है कि भारत और जापान के बीच नौसैनिक अभ्यास अब नियमित हो गया है परंतु इस युद्धाभ्यास को लद्दाख में भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध से जोड़कर देखा जा रहा है।
भारत-जापान द्विपक्षीय सहयोग के प्रमुख बिंदु-
भारत और जापान दोनों के लिये चीन एक साझा चुनौती रहा है। पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता क्षेत्र के अन्य देशों के लिये चिंता का विषय रही है। पिछले कुछ वर्षों में चीन की आक्रामकता की वृद्धि के परिणामस्वरूप क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) अधिक सक्रिय हुए है। ‘क्वाड प्लस’ में भी इंडोनेशिया, वियतनाम और फ्राँस जैसे देशों की रूचि बढ़ी है, जो क्षेत्र में भारत के लिये एक बड़ी रणनीतिक बढ़त है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता को बनाए रखने और इस क्षेत्र में दोनों देशों के साझा हितों की रक्षा के लिये भारत तथा जापान के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना बहुत अधिक आवश्यक है। भारत सरकार को जापान से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ाने के लिये पनडुब्बियों और अन्य रणनीतिक तकनीकों के आयात के लिये प्रयासों को तेज़ करना चाहिये।
निष्कर्षतः हाल के वर्षों में दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता को देखते हुए दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। भारत-जापान सैन्य सहयोग में वृद्धि से क्षेत्र में चीन के बढ़ती चुनौती को नियंत्रित करने के लिये बहुत आवश्यक है। साथ ही दवा उद्योग, तकनीकी और अन्य महत्त्वपूर्ण तथा रणनीतिक क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ा कर चीन पर निर्भरता को कम करने एवं भारत के आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होगी