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प्रश्न :
आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैं कि पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट यद्यपि एक बड़ा साम्राज्य स्थापित करने में सफल न हो सके किंतु तत्समय उत्पन्न परिस्थितियों से उपजे शून्य को भरने में अवश्य सफल हुए।
05 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
• भूमिका
• पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट की भूमिका के विभिन्न पक्ष
• निष्कर्ष
8वीं सदी के दौरान, कन्नौज पर नियंत्रण के लिए भारत के तीन प्रमुख साम्राज्यों जिनके नाम पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट थे, के बीच संघर्ष हुआ। पालों का भारत के पूर्वी भागों पर शासन था जबकि प्रतिहार के नियंत्रण में पश्चिमी भारत का अवंती-जालौर क्षेत्र था। राष्ट्रकूटों ने भारत के डक्कन क्षेत्र पर शासन किया था। इन तीन राजवंशों के बीच कन्नौज पर नियंत्रण के लिए हुए संघर्ष को भारतीय इतिहास में त्रिपक्षीय संघर्ष के रूप में जाना जाता है।
पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट शासकों की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-
हर्ष के बाद गुर्जर-प्रतिहारों ने उत्तरी भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की और अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से भी रोका। त्रिपक्षीय संघर्ष में सफलता के पश्चात् गुर्जर-प्रतिहार सर्वाधिक प्रभावशाली हो गए। पाल वंश के शासकों ने बंगाल को राजनीतिक एकता प्रदान करके सांस्कृतिक समुन्नति का मार्ग प्रशस्त किया और भारत की राजनीति में इसके महत्त्व को लगभग चार सौ वर्षों तक स्थापित करने में सफल रहे।
पाल वंश ने बंगाल में दशकों से चली आ रही मत्स्यन्याय एवं अराजकता को समाप्त कर एक सुदृढ़ राजशक्ति को कायम किया और इनका काल तीनों ही शक्तियों में से सबसे लंबे समय तक चला।
महाराष्ट्र-दक्कन में राष्ट्रकूट एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति थे जिनका सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रमुख योगदान था। इन्होंने भी आरम्भ में अरबों का विरोध कर महत्ता हासिल की। यदि ये अपनी महत्त्वाकांक्षा को दक्षिण तक ही सीमित रखते तो एक शक्तिशाली राज्य का निर्माण कर सकते थे। लगभग एक सदी तक गंगा घाटी में स्थित कन्नौज नगर के ऊपर नियंत्रण को लेकर आपस में लड़ने के पश्चात् अंतत: नौवीं शताब्दी में गुर्जर-प्रतिहारों ने आधिपत्य स्थापित करने में सफलता पाई।
त्रिपक्षीय संघर्ष ने तीनों महाशक्तियों की स्थिति को कमज़ोर किया जिससे ये एक बड़ा साम्राज्य कायम नहीं कर सकीं और इसने तुर्कों को इन्हें सत्ता से बेदखल करने में सक्षम बनाया। तीनों महाशक्तियों की शक्ति लगभग समान थी जो मुख्यत: विशाल संगठित सेनाओं पर आधारित थी लेकिन कन्नौज के संघर्ष का लाभ उठाकर सामंतों ने अपने-आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया, जिससे रही-सही एकता भी नष्ट हो गई।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि यद्यपि त्रिपक्षीय संघर्ष की शक्तियाँ लगभग एक साथ अस्तित्व में आई धीरे - धीरे लुप्त हो गईं। तत्समय ये भारत में एक बड़ा साम्राज्य स्थापित करने में सफल नहीं हुईं लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि राजनीतिक शून्यता को काफी लम्बे समय तक भरने में कामयाब रहीं।
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