हाल ही में 15000 करोड़ रुपए से स्थापित पशुपालन अवसंरचना विकास कोष के कार्यान्वयन संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इस कोष से संबंधित प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए समझाएं कि यह किस प्रकार किसानों की आय को दोगुना करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
• भूमिका
• प्रमुख बिंदु
• विशेषताएं
• किसानों की आय बढ़ाने में किस प्रकार मददगार है।
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आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित प्रोत्साहन पैकेज के अंतर्गत 15000 करोड़ रुपए के पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF) की स्थापना की बात की गई थी। इस कोष के अंतर्गत पात्र लाभार्थियों में, किसान उत्पादक संगठन , MSMEs, कंपनी अधिनियम की धारा 8 में शामिल कंपनियाँ, निजी क्षेत्र की कंपनियाँ और व्यक्तिगत उद्यमी शामिल होंगे। उल्लेखनीय है कि पशुपालन अवसंरचना विकास कोष से संबंधित प्रावधान देश भर के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू होंगे।
प्रमुख दिशा-निर्देश-
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष के तहत सभी पात्र परियोजनाएँ अनुमानित परियोजना लागत का अधिकतम 90% तक ऋण के रूप में अनुसूचित बैंकों से प्राप्त करने में सक्षम होंगी, जबकि सूक्ष्म एवं लघु इकाई की स्थिति में पात्र लाभार्थियों का योगदान 10%, मध्यम उद्यम इकाई की स्थिति में 15% और अन्य श्रेणियों में यह 25% हो सकता है।
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष के तहत 15000 करोड़ रुपए की संपूर्ण राशि बैंकों द्वारा 3 वर्ष की अवधि में वितरित की जाएगी।
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष के तहत मूल ऋण राशि के लिये 2 वर्ष की ऋण स्थगन अवधि और उसके पश्चात् 6 वर्ष के लिये पुनर्भुगतान अवधि प्रदान की जाएगी, इस प्रकार कुल पुनर्भुगतान अवधि 8 वर्ष की होगी, जिसमें 2 वर्ष की ऋण स्थगन अवधि भी शामिल है।
- संबंधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, अनुसूचित बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि ऋण के वितरण के पश्चात् पुनर्भुगतान अवधि 10 वर्ष से अधिक न हो, जिसमें ऋण स्थगन अवधि भी शामिल है।
- इसके अलावा भारत सरकार द्वारा नाबार्ड के माध्यम से प्रबंधित 750 करोड़ रुपए के ऋण गारंटी कोष की भी स्थापना की जाएगी।
उद्देश्य:
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष का प्रमुख उद्देश्य दूध और माँस प्रसंस्करण की क्षमता और उत्पाद विविधीकरण को बढ़ावा देना है, ताकि भारत के ग्रामीण एवं असंगठित दुग्ध और माँस उत्पादकों को संगठित दुग्ध और माँस बाज़ार तक अधिक पहुँच प्रदान की जा सके।
- उत्पादकों को उनके उत्पाद की सही कीमत प्राप्त करने में मदद करना।
- स्थानीय उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण दुग्ध और माँस उपलब्ध कराना।
- देश की बढ़ती आबादी के लिये प्रोटीन युक्त समृद्ध खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना और बच्चों में कुपोषण की बढ़ती समस्या को रोकना।
- देश भर में उद्यमिता को प्रोत्साहित करना और संबंधित क्षेत्र में रोज़गार सृजित करना।
- दुग्ध और माँस उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित करना।
किसानों की आय बढ़ाने के संदर्भ में यह निम्नप्रकार से सहायक -
- भारत द्वारा वर्तमान में, 188 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन किया जा रहा है और वर्ष 2024 तक दुग्ध उत्पादन बढ़कर 330 मिलियन टन तक होने की संभावना है।
- वर्तमान में केवल 20-25% दूध ही प्रसंस्करण क्षेत्र के अंतर्गत आता है, हालाँकि सरकार ने इसे 40% तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- इस कोष के माध्यम से बुनियादी ढाँचा तैयार होने के पश्चात् लाखों किसानों को इससे फायदा पहुँचेगा और दूध का प्रसंस्करण भी अधिक होगा।इससे डेयरी उत्पादों के निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा जो कि वर्तमान समय में नगण्य है। गौरतलब है कि डेयरी क्षेत्र में भारत को न्यूज़ीलैंड जैसे देशों के मानकों तक पहुँचने की आवश्यकता है।
- भारत में डेयरी उत्पादन का लगभग 50-60% अंतिम मूल्य प्रत्यक्ष रूप से किसानों को वापस मिल जाता है, इसलिये इस क्षेत्र में होने वाले विकास से किसान की आय पर प्रत्यक्ष रूप से महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
- ध्यातव्य है कि भारत में प्रौद्योगिकी हस्तक्षेपों के माध्यम से पशुओं की नस्ल सुधार का कार्य तेज़ी से किया जा रहा है, आँकड़ों के अनुसार सरकार द्वारा 53.5 करोड़ पशुओं के टीकाकरण का निर्णय लिया गया है, वहीं 4 करोड़ पशुओं का टीकाकरण किया जा चुका है। हालाँकि अभी भी भारत प्रसंस्करण के क्षेत्र में काफी पीछे है, इस कोष के माध्यम से विभिन्न प्रसंस्करण संयंत्र भी स्थापित किये जाएंगे।
- इस कोष के माध्यम से भारत के किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य में मदद मिलेगी और यह 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के सपने को साकार करने की दिशा में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
अनुमान के अनुसार, सरकार द्वारा गठित इस कोष और इसके तहत स्वीकृति उपायों के माध्यम से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से 35 लाखों लोगों के लिये आजीविका का निर्माण होगा।