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प्रश्न :
क्या अवहट्ट को स्वतंत्र भाषा मानना उचित है? इस प्रश्न का तार्किक उत्तर देते हुए अवहट्ट की शब्दकोशीय विशेषताओं को रेखांकित कीजिये।
01 Sep, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• अवहट्ट को स्वतंत्र भाषा मानने के पीछे तर्क
• अवहट्ट की शब्दकोशीय विशेषताएँ
अवहट्ट शब्द संस्कृत शब्द 'अपभ्रष्ट' का तद्भव रूप है। इस संबंध में एक समस्या यह है कि अपभ्रंश और अवहट्ट दोनों शब्द समानार्थी हैं क्योंकि दोनों ही भ्रष्ट भाषा को व्यक्त करते हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठता है कि क्या अवहट्ट अपभ्रंश से अलग एक स्वतंत्र भाषा है? यह समस्या इसलिये और भी जटिल हो जाती है क्योंकि उस काल के जितने भी कवियों और विद्वानों ने तत्कालीन भाषाओं के नाम गिनाए हैं, उन्होंने या तो अपभ्रंश का नाम लिया है या अवहट्ट का; किसी ने भी इन दोनों का नाम एक साथ नहीं लिखा। इससे यह संभावना प्रतीत होने लगी कि ये दोनों नाम एक ही भाषा के हैं, जिनमें से कहीं किसी एक का प्रयोग होता है और कहीं दूसरे का।
आधुनिक भाषा वैज्ञानिकों के अनुसंधानों से अब यह साबित हो चुका है कि अबहट्ट केवल एक भाषिक शैली नहीं बल्कि एक स्वतंत्र भाषा है। इस भाषा का काल लगभग 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच स्वीकार किया गया है। साहित्य प्रयोग की दृष्टि से या भाषा चौदहवीं शताब्दी तक दिखाई देती है। 'संदेशरासक' एवं 'कीर्तिलता' इस भाषा से संबंधित दो प्रमुख रचनाएँ हैं।
अवहट्ट की शब्दकोशीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- तद्भव शब्दों की संख्या सबसे अधिक है जो प्रक्रिया अपभ्रंश में तेज़ी से आरंभ हुई थी वह अवहट्ट में भी चलती रही। उदाहरण के लिये- दिटि्ठ, लोयण इत्यादि।
- देशज शब्दों का काफी अधिक विकास इस काल में दिखाई देता है- खिखणी (लोमड़ी), गुंडा, हांडी जैसे देशज शब्द इसी युग में विकसित हुए हैं।
- विदेशी शब्द अपभ्रंश की तुलना में काफी बढ़ गए हैं। यह सभी शब्द अरबी फारसी और तुर्की परंपरा के हैं। जैसे-कसीदा, खुदा, चाबुक इत्यादि।
- तत्सम शब्द भी अपभ्रंश के अंत में पुनः आने लगे थे। यही प्रवृत्ति अवहट्ट में भी बनी रही। उदाहरण के लिये- उत्तम, कटाक्ष, पृथ्वी इत्यादि।
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