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प्रश्न :
'पल्लव काल न सिर्फ स्थापत्य कला अपितु अन्य विलक्षण सांस्कृतिक उपलब्धियों के संदर्भ में प्रगति का काल रहा है।' विवेचना करें।
31 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
• भूमिका
• पल्लव राजवंश के बारे में संक्षिप्त उल्लेख
• स्थापत्य के क्षेत्र में योगदान
• अन्य क्षेत्रों में योगदान
• निष्कर्ष लिखिये
पल्लवों ने प्रारंभिक पल्लव शासकों (250 ई.) से लेकर नौवीं शताब्दी के अपने पतन के अंतिम समय तक शासन किया। सातवाहनों के ध्वंसावशेषों पर निर्मित होने वाले पल्लव वंश की स्थापना सिंहविष्णु ने की थी। सातवाहन साम्राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में शासन करने वाले पल्लवों की राजधानी कांचीपुरम थी। पल्लवों ने वास्तुकला के साथ-साथ संगीत, नृत्य एवं चित्रकला के क्षेत्र में भी प्रगति की, इस प्रकार पल्लव वास्तुकला का इतिहास में काफी महत्त्व है।
पल्लवकालीन स्थापत्य कला की विशेषताएँ:
रथ मंदिर का निर्माण पल्लवों की महत्त्वपूर्ण देन है। इसके अंतर्गत महाबलीपुरम में पाँच रथ मंदिरों का निर्माण किया गया था। ये रथ मंदिर शिव को समर्पित थे तथा इनका नामकरण पाँच पांडवों के आधार पर किया गया था।
पल्लवों की स्थापत्य कला में मंदिर निर्माण को प्रमुख स्थान दिया गया था। इस काल में चट्टानों को काटकर और नक्काशी के द्वारा गुफा और मंदिरों का निर्माण किया गया था।
रथ मंदिरों में सहदेव, धर्मराज और भीम रथ बहु-मंजिले हैं और इनके शिखर पिरामिड के समान है। द्रोपदी रथ लकड़ी के स्तंभों के सहारे झोपड़ीनुमा पत्थर की अनुकृति है। उल्लेखनीय है कि द्रोपदी रथ बाँस और छप्पर के आदिप्रारूप की भी अनुकृति प्रस्तुत करता है।
एकाश्मक मंदिर संरचना भी पल्लवकालीन स्थापत्य की प्रमुख विशेषता है। महाबलीपुरम का गणेश रथ एकाश्मक मंदिरों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। तीन मंजिला गणेश रथ में बेहतरीन नक्काशी की झलक मिलती है।
राजसिम्ह द्वारा निर्मित कांचीपुरम के कैलाशनाथ मंदिर का पल्लव वंश के स्थापत्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस विशाल मंदिर की भव्यता काफी मनोरम है।
पल्लवों की अन्य सांस्कृतिक उपलब्धियाँ:
पल्लवों के काल में स्थापत्य के बाद साहित्य के क्षेत्र में काफी प्रगति देखने को मिलती है। पल्लव शासकों द्वारा संस्कृत भाषा को संरक्षण प्रदान किया गया था।
संकृत भाषा के प्रसिद्ध कवि व ‘किरातार्जुनीयम’ के रचयिता भारवि सिंहविष्णु के दरबार में रहते थे। इसके अतिरिक्त पल्लवकालीन रचनाकारों में दण्डिन प्रमुख थे, इन्होंने ‘दश्मुखचरित’ और ‘काव्यादर्श’ जैसी पुस्तकों की रचना की। पल्लव वंश के शासक महेन्द्रवर्मन स्वयं साहित्य की महान हस्तियों में से एक थे।
पल्लवों के शासन काल को धार्मिक पुनर्जीवन के काल के रूप में भी याद किया जाता है। इन्होंने दक्षिण भारत में आर्यीकरण को बढ़ावा देकर ब्राह्मण धर्म का प्रसार किया। इसके कारण ही कांची हिंदुओं के सात पवित्र शहरों के रूप में गिना जाने लगा।
यद्यपि पल्लव विष्णु एवं शिव के उपासक थे, किंतु उन्होंने अन्य पंथों के प्रति सहिष्णुता बनाए रखी।
मूर्तिकला के सन्दर्भ में भी पल्लव काल अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। महाबलीपुरम के सात विशालकाय पैगोडा के साथ महिषासुरमर्दिनी, गजलक्ष्मी, अर्जुन का तप आदि प्रतिमाओं को पल्लवों का संरक्षण प्राप्त हुआ।
यद्यपि पल्लवों की स्थापत्य शैली धार्मिक भावनाओं से प्रेरित प्रतीत होती है, फिर भी उनकी सांस्कृतिक उपलब्धि भारतीय इतिहास को गौरवान्वित करने के साथ अमूल्य धरोहर का एहसास देती है। पल्लव काल मंदिर निर्माण का एक महान युग था। पल्लवों ने बौद्ध चैत्य विहारों से विरासत में प्राप्त कला का विकास किया और नवीन शैली को जन्म दिया जिसका पूर्ण विकसित रूप पांड्य काल में देखने को मिला। पल्लव कला की विशेषताएँ भारत से बाहर दक्षिण-पूर्व एशिया तक भी पहुँचीं।
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