उत्तर :
प्रश्न विच्छेद:
- भूमिका
- तड़ितझंझा (थंडरस्टार्म) की उत्पत्ति के बारे में बताइये
- तड़ितझंझा (थंडरस्टार्म) के विकास के बारे में बताइये
- तड़ितझंझा का उदहारण
- निष्कर्ष
हल करने का दृष्टिकोण:
- संक्षिप्त भूमिका लिखें।
- की-वर्ड को परिभाषित करें
- तड़ितझंझा (थंडरस्टार्म) की उत्पत्ति के बारे में बताइये
- तड़ितझंझा (थंडरस्टार्म) के विकास के बारे में बताइये।
- तड़ितझंझा के विकास की तीनों अवस्थाओं का उल्लेख कीजिये।
- शब्द सीमा कम करने के लिये चित्र/माइंड मैप का प्रयोग करें।
- उदहारण के साथ निष्कर्ष लिखिए।
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तड़ितझंझा एक अत्यंत प्रचंड वायुमंडलीय विक्षोभ होता है। जिसमें मेघ गर्जन, विद्युत और तीव्र गति युक्त पवनों के साथ वर्षा होती है। तड़ितझंझा संवहनीय वर्षा का ही एक प्रकार है जिसमें विद्युत की चमक तथा मेघों की गरज के साथ वर्षा होतीहै। ऐसे भीषण तूफान के आने पर विभिन्न मौसमी परिवर्तन होते हैं जैसे- ओला वृष्टि, वायु के तीव्र झोकें, तापमान में आकस्मिक गिरावट आदि। तड़ितझंझा ज्यादातर जमीन पर होते हैं जहाँ तापमान अधिक होता है। कम तापमान वाले जल निकायों पर तड़ितझंझा की उत्पत्ति कम होती है। दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष लगभग 16 मिलियन तड़ितझंझा होते हैं।
तड़ितझंझा के विकास के लिये आवश्यक ऊर्जा की अधिकांश मात्र संलयन (Fusion) एवं संघनन की गुप्त ऊष्मा से प्राप्त होती है। इसका विकास कपासी वर्षा वाले मेघों से होता हैं इनमें जब तरल एवं ठोस जल ऊपर उठती हुई वायु तरंगों द्वारा इतनी ऊँचाई तक पहुँचा दिया जाता है। जहाँ तापमान 20°C से भी काफी नीचे होता है तब विद्युत एवं मेघ गर्जन की उत्पात्ति होती है। तड़ितझंझा के लिये वायुमंडल की निचली परतों में उष्णार्द्र वायु की उपस्थिति तथा आरोही वायु तरंगों का प्रबल होना आवश्यक शर्त है।
तड़ितझंझा जैसे प्रचंड तूफान अल्पकालिक होते हैं। इस तूफान में कुल तीन से पाँच संवहनिक कोश होते हैं। इन कोशों में से प्रत्येक का जीवन चक्र वायु तरंगों की दिशा एवं परिणाम में होने वाले परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाता है। इन कोशों के विकास की तीन अवस्थाएँ होती हैं:
- प्रारंभिक अवस्थाः इसे ‘कपासी मेघ अवस्था’ भी कहते है। मेघों के आधार तल से उनके शीर्ष भाग तक विस्तृत प्रबल आरोही वायु तरंगे प्रत्येक कोश में पाई जाती हैं। इस अवस्था में मेघो में प्रचुर मात्र में जल एकत्रित हो जाता है। ऊर्ध्वगामी वायु तरंगों के उत्पन्न होने से 15-20 मिनट के बाद ही वर्षा की बूंदों का आकार काफी बढ़ा हो जाता है। इन बूंदों का कोश के विकास तथा आवेश केंद्रों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। कोश के निचलने भाग का तापमान अपेक्षाकृत अधिक होने के कारण उसमें जलवृष्टि होती है। वर्षा के प्रारंभ होने के साथ ही कोश की प्रौढ़ावस्था प्रारंभ हो जाती है।
- प्रौढ़ावस्थाः इस अवस्था में प्रत्येक कोश में आरोही एवं अवरोही वायु तरंगों की एक साथ उत्पत्ति होती है। बूंदो के आकार में वृद्धि होने के साथ-साथ उनकी संख्या में भी वृद्धि हो जाती है। इसलिये इस अवस्था में मूसलाधार वृष्टि प्रारंभ हो जाती है। आरंभ में अवरोही वायु तंरगे, आरोही तरंगों के केवल एक ओर पाई जाती है किंतु धीरे-धीरे इन तरंगों का संपूर्ण कोश में विस्तार हो जाता है। धरातल पर हवा के तेज़ झोके चलने लगते हैं। इसके कारण तापमान में शीघ्र कमी आ जाती है तथा तीव्र वर्षा होने लगती है। अंततः अवरोही वायु तरंगों की शक्ति कम होने लगती है तथा क्रमशः उनका पूर्ण रूप से लोप हो जाता है। इसी के साथ ही तड़ितझंझा के विघटन की अवस्था प्रारंभ हो जाती है।
- विघटन अवस्थाः इस अवस्था में तड़ितझंझा के सभी कोशों में अवरोही एवं मंद गति वाली वायु तरंगों की प्रधानता होती है। मेघों में जल की आपूर्ति कम होने लगती है। जिसके फलस्वरूप वृष्टि की तीव्रता भी कम हो जाती है। केंद्र से बाहर की ओर प्रवाहित होने वाली शीलत हवाएँ मंद होने लगती हैं। अंत में आकाश में मेघो के टुकड़े तैरते हुए दिखाई पड़ते हैं। विघटन अवस्थाओं में कभी-कभी कोश का जीवन काल थोड़े ही समय में समाप्त हो जाता है किंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ तूफानों में घंटों तक हल्की वर्षा होती रहती है।
उदाहरण स्वरूप विषुवत रेखा के निकटवर्ती उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में तड़ितझंझा की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ होती है। यहाँ उष्णार्द्र वायु के अतिरिक्त डोलड्रम की पेटी में पवनों के अभिसरण के कारण वायु के ऊपर उठने में सहायता मिलती है। साथ ही सूर्यातप के कारण धरातल के गर्म होने से संवहनीय धाराएँ उत्पन्न होती हैं। जो तड़ितझंझा की उत्पत्ति के लिये अनुकूल दशाएँ उत्पन्न करती है। इसलिये भूमध्यरेखा क्षेत्र में इन तूफानों की बारंबारता होती है। मध्यवर्ती अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका में एंडीज के पूर्व स्थित क्षेत्र, मेडागास्कर तथा पूर्वी द्वीप समूह आदि क्षेत्रों में तड़ितझंझा की अधिक संख्या पाई जाती है।