भारत ने वैश्विक महामारी COVID-19 से उपजे संकट से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के मद्देनज़र वस्तुतः अपने सामरिक तेल भंडार में वृद्धि की है। भारत में सामरिक पेट्रोलियम भंडारों का संक्षिप्त परिचय देते हुए इसके महत्त्व तथा संबंधित समस्याओं पर प्रकाश डालें।
29 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • सामरिक पेट्रोलियम भंडार से तात्पर्य • भारत की स्थिति • महत्त्व • संबंधित समस्याएं |
भारत की ऊर्जा मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। ईंधन का 80% आयात विशेषकर पश्चिम एशिया से किया जाता है। पश्चिम एशिया में संघर्ष की पृष्ठभूमि में आपूर्ति का संकट और चालू खाता घाटे की स्थिति बन सकती है।
पहली बार तेल के संकट के बाद सामरिक भंडार की इस अवधारणा को वर्ष 1973 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लाया गया था। पृथ्वी की सतह के नीचे गहरी गुफाओं में भंडारण की अवधारणा को पारंपरिक रूप से एक ऊर्जा सुरक्षा उपाय के रूप में लाया गया है जो भविष्य में हमले या आक्रमण के कारण तेल की आपूर्ति में कमी आने पर सहायक हो सकती हैं। यह भूमिगत भंडारण, पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण की अब तक की सबसे अच्छी आर्थिक विधि है, क्योंकि भूमिगत सुविधा भूमि के बड़े स्तर की आवश्यकता को नियंत्रित करती है, कम वाष्पीकरण सुनिश्चित करती है, क्योंकि गुफाओं का निर्माण समुद्र तल से बहुत नीचे किया जाता है, इसलिये कच्चे तेल का निर्वहन जहाज़ो से करना आसान होता है।
भारत के सामरिक पेट्रोलियम भंडार की स्थिति-
महत्त्व:
समस्याएँ
उपरोक्त समस्याओं के मद्देनजर भारत के अन्य रणनीतिक भंडार जिसमें स्पष्ट प्रक्रियाओं, प्रोटोकॉल तथा आँकड़ों को जारी करने की आवश्यकता होती है, उसी सामरिक पेट्रोलियम भंडारण के लिये भी स्पष्ट सार्वजनिक तथा संसदीय जाँच की आवश्यकता होनी चाहिये।सामरिक पेट्रोलियम भंडार पर अलग-अलग इकाइयों का नियंत्रण होने के कारण, इन तेल भंडारों को समय पर उपयोग करने में बाधा उत्पन्न होती है इससे तेल की गतिशीलता प्रक्रिया काफी अस्पष्टता तथा जटिल बन जाती है। अत: सामरिक पेट्रोलियम भंडार के संबंध में विभिन्न इकाइयों की भूमिका और प्रक्रिया में स्पष्टता होनी चाहिये।