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प्रश्न :
क्या आपको लगता है कि बेहतर अंतर-वैयक्तिक दक्षता और आत्म प्रबंधन एक लोकसेवक को अन्य की तुलना में बेहतर बनाती है? चर्चा करें ।
28 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
• भूमिका
• अंतर-वैयक्तिक दक्षता
• आत्म प्रबंधन
• निष्कर्ष
वर्तमान परिदृश्य में सिविल सेवाओं में तनाव का स्तर बढ़ा है जिसका मुख्य कारण हैं- कल्याणकारी राज्य की निरंतर बढ़ती अपेक्षाएँ, गठबंधन की राजनीति के कारण परस्पर विरोधी तथा कठिन दबाव, सीमित बजट किंतु ऊँचे उद्देश्य, मीडिया का दबाव, सिविल सोसाइटी के आंदोलन आदि। उपरोक्त स्थितियों में आत्म-प्रबंधन और अंतर-वैयक्तिक दक्षता के कौशल से युक्त एक लोक सेवक अपनी कार्यक्षमता एवं नेतृत्व में औरों से बेहतर सिद्ध हो सकता है।
अंतर-वैयक्तिक दक्षता से तात्पर्य है कि व्यक्ति के अन्य व्यक्तियों के साथ संबंध इस तरह से बनाकर रखने चाहिये कि उन संबंधों से उसे तथा सभी को लाभ हो; यथा-
किसी व्यक्ति से संबंधों में अगर कोई समस्या उत्पन्न हुई है तो सकारात्मक तरीके से उसका समाधान करना न कि संबंध ही समाप्त कर देना या खराब करना।
अन्य व्यक्तियों के व्यवहार के प्रति उपयुक्त फीडबैक उचित तरीके से देने की क्षमता।
अगर किसी व्यक्ति से संबंध बहुत अच्छे न भी हों तो कम से कम ऐसे प्रकार्यात्मक संबंध बनाए रखना जो संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हो।
दूसरों के काम में अनावश्यक टाँग न अड़ाना तथा सम्मिलित प्रयासों का श्रेय अकेले लूटने की इच्छा न रखना।
समूह के विभिन्न व्यक्तियों की क्षमताओं, कमजोरियों, स्वभावों, रूचियों तथा मनोवृत्तियों को समझते हुए उन्हें कार्य का आवंटन करना तथा हर चरण में इस बात की जाँच करना कि अंतर-वैयक्तिक संबंधों के कारण संगठन को नुकसान न पहुँचे।
आत्म-प्रबंधन से आशय व्यक्ति द्वारा अपनी भावनाओं के स्वभाव, उनकी तीव्रता तथा उनकी अभिव्यक्ति को प्रबंधित करना। जैसे- यदि भावना की प्रकृति उचित नहीं है तो उसे अभिव्यक्त होने से रोक देना, यथा- बहुत क्रोध होने पर हिंसा का भाव आ सकता है, उसे रोकना। इसी प्रकार यदि भावना सही है, किंतु उसकी तीव्रता गलत है तो उसे संतुलित करना; उदाहरणतः विलंब से आने वाले कर्मचारी को सीधे निलंबित करने की बजाए ज्यादा उचित है इसे कारण बताओ नोटिस जारी किया जाये। पुनः अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए ध्यान रखना कि अभिव्यक्ति की अधिकता स्वयं एक समस्या न बन जाये।
निष्कर्षतः यह कहना तर्कसंगत होगा कि अंतर-वैयक्तिक क्षमता तथा आत्म-प्रबंधन में कुशल लोक सेवक अन्य लोगों से बेहतर नेतृत्वकर्त्ता व कार्यदक्ष साबित होता है तथा बेहतर लोकतंत्र के निर्माण में प्रभावी भूमिका निभाता है।
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