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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद वैश्विक सुरक्षा प्रबंधन का सबसे बड़ा मंच माना जाता है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है।’ विश्लेषण कीजिये।

    27 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भूमिका 

    • सुरक्षा परिषद में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?

    • सुरक्षा परिषद के सुधार में बाधाएँ 

    • निष्कर्ष

    वर्तमान में विश्व के समक्ष COVID-19 की महामारी के रूप में जो चुनौती खड़ी हुई है, इसे इक्कीसवीं सदी में मानवता के लिये सबसे बड़ा संकट माना जा रहा है। इस संकट की घड़ी में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से संकट को समाप्त करने में सक्रिय भूमिका की अपेक्षा थी, तो परिषद स्वयं ही निष्क्रिय अवस्था में है। सुरक्षा परिषद की निष्क्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है इस वैश्विक संकट की घड़ी में सदस्य देश एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। संकट काल में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस द्वारा अपील के बावज़ूद, संकट के इस वैश्विक परिदृश्य में जिस प्रकार सुरक्षा परिषद अनुपस्थित है, वह वाक़ई एक चिंताजनक स्थिति है।

    सुरक्षा परिषद में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?

    • सुरक्षा परिषद की स्थापना वर्ष 1945 की भू-राजनीति के हिसाब से की गई थी। मौजूदा भू-राजनीति द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि से अब काफी अलग हो चुकी है।
    • शीतयुद्ध समाप्त के बाद से ही इसमें सुधार की ज़रूरत महसूस की जा रही है। इसमें कई तरह के सुधार की आवश्यकता है जिसमें संगठनात्मक बनावट और प्रक्रिया सबसे अहम है।
    • मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी देशों में यूरोप का सबसे ज़्यादा प्रतिनिधित्व है। जबकि यहाँ विश्व की कुल आबादी का मात्र 5 प्रतिशत ही निवास करती है।
    • अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई भी देश सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है। जबकि संयुक्त राष्ट्र का 50 प्रतिशत से अधिक कार्य अकेले अफ्रीकी देशों से संबंधित है।
    • शांति स्थापित करने वाले अभियानों में अहम भूमिका निभाने के बावज़ूद भारत जैसे अन्य देशों के पक्ष को मौजूदा सदस्यों द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र संघ के ढाँचे में सुधार की आवश्यकता इसलिये भी है क्योंकि इसमें अमेरिका का वर्चस्व है। अमेरिका अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति के बल पर संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अंतराष्ट्रीय संगठनों की भी अनदेखी करता रहा है।

    सुरक्षा परिषद के सुधार में बाधाएँ-

    • सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्य देश अपने वीटो पाॅवर को छोड़ने के लिये तैयार नहीं हैं और न ही वे इस अधिकार को किसी अन्य देश को देने पर सहमत हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन सुरक्षा परिषद में किसी भी बड़े बदलाव के विरोध में हैं।
    • अमेरिका जहाँ बहुपक्षवाद के खिलाफ है। तो वहीं रूस भी किसी तरह के सुधार के पक्ष में नहीं है। सुरक्षा परिषद में एशिया का एकमात्र प्रतिनिधि होने की मंशा रखने वाला चीन भी संयुक्त राष्ट्र में किसी तरह का सुधार नहीं चाहता। चीन नहीं चाहता कि भारत और जापान सुरक्षा परिषद के सदस्य बने।

    निष्कर्षतः इस वैश्विक संकट की घड़ी में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को पूर्व की भांति सक्रियता दिखानी चाहिये ताकि विश्व व्यवस्था के सम्मुख अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के महत्त्व को कम कर के न आँका जाए। वर्तमान परिस्थितियों के सामान्य हो जाने पर संयुक्त राष्ट्र को सुरक्षा परिषद् में सुधार की दिशा में भी कार्यरत होना चाहिये। निश्चित रूप से, स्थायी सदस्यता भारत को वैश्विक राजनीति के स्तर पर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन और रूस के समकक्ष लाकर खड़ा कर देगा। अतः संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये भारत को भी और अधिक गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है।

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