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प्रश्न :
'ज़िंदगी का अभाव और संघर्ष ही नागार्जुन के काव्य-संसार की जलवायु है और विक्षोभ उनकी कविता का केंद्रीय स्वर।' इस कथन के आलोक में नागार्जुन के काव्य-कर्म पर विचार कीजिये।
27 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• नागार्जुन के काव्य कर्म पर विवेचन
• निष्कर्ष
नागार्जुन के काव्य का मूल्यांकन करते हुए प्रगतिवादी आलोचकों ने नागार्जुन को मार्क्सवादी विचारधारा का प्रतिष्ठापरक कवि मानते हुए क्रांति चेतना को उनकी कविता का केंद्रीय स्वर माना है। लेकिन कुछ आलोचकों के मत में नागार्जुन के कव्यकर्म का मूल आधार मार्क्सवाद नहीं बल्कि उनके अपने जीवन का अभाव और संघर्ष है और उनकी कविता का केंद्रीय स्वर विद्रोह और क्रांति नहीं बल्कि विक्षोभ है जो मानवीय जीवन मूल्यों में आस्था रखने वाले किसी भी कवि की कविता का सहज स्वभाव होता है।
वस्तुत: नागार्जुन के काव्य में उनके जीवनगत अभाव और संघर्ष के कई संदर्भ मौजूद हैं। एक उदाहरण द्रष्टव्य है -
"मानव होकर मानव के ही चरणों में मैं रोया।
दिन बागों में बीता रात को पटरी पर मैं सोया।
कभी घुमक्कड़ यार दोस्त से मिलकर कभी अकेले -
एक-एक दाने की खातिर सौ-सौ पापड़ बेले।"नागार्जुन के काव्य में सैद्धांतिक आग्रह से इतर ऐसी कई आत्मभिव्यक्तियाँ उपस्थित हैं । 'रवि ठाकुर' कविता में नागार्जुन ने अपने जीवन के हालातों का हवाला देते हुए लिखा है-
"पैदा हुआ था मैं-
दीन-हीन-अपठित किसी कृषक कुल में
आ रहा हूँ पीता अभाव का आसव ठेठ बचपन से
कवि! मैं रूपक हूं दबी हुई दूब का
हरा हुआ नहीं कि चरने दौड़ते।।
जीवन गुजरता प्रतिपल संघर्ष में।।"जीवन का यह दुख अभाव नागार्जुन की कविता में बार-बार उभरता है- सामाजिक तथ्य के रूप में नहीं बल्कि सघन अनुभव के रूप में पिता और पति के रूप में अपने कर्तव्यों का सम्यक निर्वाह न कर पाने की व्यथा अपराध बोध के रूप में छलक कर कविता बन गई है-
हृदय में पीड़ा, दृगों में लिए पानी
देखते पथ काट दी सारी जवानी!नागार्जुन के काव्य में व्यक्तिगत अभावों और संघर्षों का विस्तार सामाजिक अन्याय, गरीबी और शोषण तक होता है और उनकी कविता परिवर्तन और न्याय की चेतना के लिए पाठक के मन को समाज को संस्कारित करती है। उनकी कविताओं में हिंसक क्रांति का स्वर भी सुनाई अवश्य देता है पर वह उनकी कव्यानुभूति का मूल भाव नहीं है।
इस प्रकार इस मत से सहमत हुआ का सकता है कि ज़िंदगी का अभाव और संघर्ष ही नागार्जुन के काव्य संसार की जलवायु है और विक्षोभ उनकी कविता का केंद्रीय स्वर है।
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