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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    मुक्तिबोध की काव्यभाषा पर प्रकाश डालिए।

    25 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका
    • मुक्तिबोध की काव्यभाषा पर संक्षिप्त टिप्पणी
    • निष्कर्ष

    मुक्तिबोध मूलतः प्रगतिवादी कवि हैं। प्रगतिवादी चिंतन में कविता की 'वस्तु' और 'रूप' में वस्तु को प्राथमिक और रूप को गौण माना गया है किंतु एक सर्जक के रूप में मुक्तिबोध प्रगतिवादी अनुशासनों का अतिक्रमण करते हैं। मुक्तिबोध की मुख्य चिंता विचार वह अनुभव की दुनिया को एक प्रभावशाली रूप-विधान में मूर्त करने की है, जिसका एक महत्वपूर्ण अनुषंग भाषा है।

    मुक्तिबोध की काव्यभाषा प्रगतिवादी कवियों से भिन्न एवं विशिष्ट है। उनकी काव्यभाषा की पहली विशिष्टता उसकी एकरूपता है। वे अपनी संपूर्ण काव्य-यात्रा में भाषा के एक निश्चित विधान का सहारा लेते हैं। लेकिन, एक निश्चित ढाँचे के भीतर मुक्तिबोध की भाषा की अनेक तहें हैं।

    वस्तुतः मुक्तिबोध की काव्यभाषा की प्रकृति बीहड़ है। अंधकार और प्रकाश, फूलों की महक और हिंसक पशुओं की डरावनी आवाजें, झरने और गुफाएँ, स्वप्न और संघर्ष, दमन और क्रांति जैसी विरोधी स्थितियों को मुक्तिबोध अपनी भाषा के द्वारा काव्यवस्तु में रूपांतरित करते हैं।

    मुक्तिबोध की काव्यभाषा में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी और मराठी के शब्दों का भरपूर प्रयोग हुआ है। किंतु उनकी भाषा की प्रकृति मूल रूप से संस्कृतनिष्ठ है। लेकिन वे तत्सम शब्दों के साथ विजातीय शब्दों को रखकर भाषा की अभिजात्यता को तोड़ते हैं। जैसे-

    उदयंभरि बन अनात्म बन गए
    भूतों की शादी में कनात से तन गए

    नए विशेषणों एवं क्रियापदों के प्रयोग के द्वारा मुक्तिबोध ने काव्यभाषा को ताजगी दी है। कुछ विशेषण दृष्टव्य हैं- अपाहिज पूर्णताएँ, तिलस्मी चाँद, चिलचिलाते फासले आदि। कुल मिलाकर मुक्तिबोध की काव्य भाषा पारंपरिक नहीं है। उन्होंने एक नई काव्यभाषा की खोज की है और यह उनकी सृजनात्मकता का ठोस प्रमाण है।

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