“खाद्य उत्पादकता के साथ पारिस्थितिकी तंत्र की शुद्धता आज की आवश्यकता है।” विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिये।
22 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स भूगोल‘’पृथ्वी पर पाई जाने वाली फूलों की लगभग 87% प्रजातियाँ जानवरों द्वारा परागित होती हैं तथा वे फसलें जो आंशिक रूप से पशुओं द्वारा परागित होती हैं, वैश्विक स्तर पर 35% उत्पादन के लिये उत्तरदायी हैं।’’
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट्-2018
प्रश्न विच्छेद:
हल करने का दृष्टिकोण:
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पारिस्थितिक तंत्र एक प्रकार का जैविक तंत्र है जो विभिन्न जैविक एवं अजैविक समुदाय घटकों के बीच अंतरसंबध से विकसित होता है। यहाँ समुदाय से तात्पर्य एक क्षेत्र विशेष में रहने वाले समस्त जैविक समूह से है जो वहाँ के पर्यावरण से निरंतर अंतः क्रिया करते रहते हैं।
खाद्य उत्पादकता से आशय, मानव जो कि पारिस्थितिक तंत्र के जैविक घटक का एक अंग है, के द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र के अन्य जैविक व अजैविक घटकों के प्रयोग से खाद्यान्न पदार्थों का उत्पादन करना है।
पारिस्थितिकीय घटक परस्पर अंतः क्रियात्मक संबंधों के आधार पर आपस में जुड़े रहते हैं। मानव खाद्य उत्पादन हेतु पारिस्थितिक तंत्र के अजैविक घटकों जैसे- भूमि, जल, वायुमंडलीय संघटकों आदि पर निर्भर रहता है। वही विभिन्न जैविक घटकों जैसे- पादप तंत्र व शाकाहारी तथा मांसाहारी जंतुओं पर भी निर्भर रहता है। इस प्रकार मानवीय खाद्य आश्यकताओं की पूर्ति प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पारिस्थितिकी तंत्र पर ही निर्भर करती है।
पहले जहाँ मानवीय जनसंख्या के सीमित होने के कारण खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु खाद्यान्न उत्पादन एवं पारिस्थितिकी तंत्र के मध्य एक प्रकार का संतुलन बना हुआ था। समय के साथ औद्योगिक क्रांति, कृषि क्रांति, नीली क्रांति आदि के कारण जहाँ एक ओर जनसंख्या में वृद्धि हुई है तो वही उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण खाद्यान्न वस्तुओं की मांग भी बढ़ी है। अतः खाद्यान्न उत्पादन हेतु प्राकृतिक संसाधनों (घटकों) का अंधाधुंध दोहन किया जाने लगा है। जिसके कारण पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो रहा है। असंतुलित पारिस्थतिक तंत्र के घटकों पर खाद्यान्न उत्पादकता के प्रभावों को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है-
इस प्रकार अनियंत्रित व असंतुलित रूप से खाद्यान्न उत्पादन के द्वारा पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न जैविक व अजैविक घटकों में असंतुलन उत्पन्न हुआ है। अतः आज जहाँ एक ओर विशाल जनसंख्या के जीवन हेतु खाद्यान्न का उत्पादन आवश्यक है वहीं पारिस्थितिक तंत्र में भी संतुलन रखना आवश्यक है। अतः वर्तमान में कृषि हेतु उन्नत तकनीक प्रयोग, फसल चक्रण जैसी कृषि विधियों, उन्नत सिंचाई तकनीकों, औद्योगिक प्रबंधन, कृषि, शिक्षा एवं जागरूकता आदि के प्रयोग व सरकारी प्रयासों द्वारा संतुलित रूप से खाद्यान्न उत्पादकता व पारिस्थितिकी सामंजस्य बनाए जाने हेतु प्रयास किये जाने चाहिये।