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प्रश्न :
'वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण प्रारंभ हुए आर्थिक संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योगों में से एक वस्त्रोद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।' वस्त्रोद्योग की समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए बताएं कि सरकार द्वारा इन समस्याओं के समाधान हेतु क्या कदम उठाये गए हैं।
22 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
- भूमिका
- समस्याएं
- समाधान
- निष्कर्ष
भारतीय वस्त्रोद्योग, अपनी समग्र मूल्य शृंखला, मजबूत कच्ची सामग्री तथा सशक्त विनिर्माण क्षमता के कारण विश्व के बड़े वस्त्रोद्योगों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। हथकरघा, हस्तशिल्प और छोटे स्तर की विद्युतकरघा इकाई जैसे परंपरागत क्षेत्र ग्रामीण व अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में लाखों लोगों के लिये रोज़गार के बड़े स्रोत हैं। भारतीय वस्त्रोद्योग के कृषि तथा देश की संस्कृति तथा परंपराओं के साथ नैसर्गिक संबंध हैं जो घरेलू तथा निर्यात बाज़ारों, दोनों के लिये उपयुक्त उत्पादों के बहुआयामी विस्तार को संभव बनाते हैं।
वस्त्रोद्योग को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
- असंगठित क्षेत्र: असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने पर विद्यमान है और इसमें पारंपरिक उपकरणों एवं विधियों का उपयोग किया जाता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प और रेशम कीट पालन/सेरीकल्चर शामिल हैं।
- संगठित क्षेत्र: संगठित क्षेत्र में आधुनिक मशीनरी तथा तकनीकों का उपयोग किया जाता है एवं इसमें कताई, परिधान और पोशाक निर्माण जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
नीति आयोग के विज़न डॉक्यूमेंट के अनुसार अगले 7 वर्षों में यह क्षेत्र 130 मिलियन रोज़गार मुहैया करा सकता है। वस्त्रोद्योग ऐसा क्षेत्र है, जो कृषि और उद्योग के बीच सेतु का कार्य करता है। कपास की खेती हो या रेशम का उत्पादन, इस उद्योग पर बहुत कुछ निर्भर करता है।
वस्त्रोद्योग की समस्याएँ
- दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता जैसे कुछ प्रमुख मुक्त व्यापार समझौतों ने बांग्लादेश जैसे देश को भारत के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सहायता प्रदान की है, जिन्हें भारतीय बाज़ार तक पहुँच के लिये शून्य शुल्क देना होता है।
- उद्योग संचालन को आधुनिक बनाने में मदद करने के लिये प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना के तहत सब्सिडी के वितरण सक्रियता का अभाव।
- वस्तु एवं सेवा कर की जटिल कर संरचना घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में वस्त्रों को महँगा और अप्रभावी बना देता है।
- आधुनिकीकरण और निवेश का अभाव जिससे वस्त्रोद्योग का निर्यात पिछले छह वर्षों से 40 अरब डॉलर के स्तर पर स्थिर रहा है।
समाधान के प्रयास
- ड्यूटी ड्रॉबैक कवरेज में वृद्धि जिसके फलस्वरूप राज्य यदि लेवियों के रूप में पुनअर्दायगी नहीं कर पाया है तो अब उसकी अदायगी केन्द्र सरकार द्वारा की जाएगी।
- संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना के तहत वर्ष 2022 तक लगभग 95,000 करोड़ रुपये के नये निवेश को प्रेरित करने तथा लगभग 35 लाख लोगों के लिये रोज़गार के सृजन का लक्ष्य रखा गया है।
- वस्त्र क्षेत्र में कुशल श्रमशक्ति की कमी को दूर करने के उद्देश्य से वस्त्र मंत्रालय 15 लाख अतिरिक्त कुशल श्रम शक्ति उपलब्ध कराने के लिये एकीकृत कौशल विकास योजना का क्रियान्वयन कर रहा है।
- वस्त्र कामगारों की आवास योजना की शुरूआत 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान किया गया था। इस योजना का उद्देश्य वस्त्रोद्योग के कामगारों को उद्योगों के उच्च बहुलता वाले क्षेत्र के नज़दीक सुरक्षित पर्याप्त और सुविधाजनक आवास उपलब्ध कराना है।
- बुनकरों को उनके अनुकूल शैक्षणिक सेवा उपलब्ध कराने के लिये इग्नू तथा राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गये हैं, जिसके तहत मंत्रालय SC, ST, बीपीएल एवं महिला बुनकरों के मामले में फीस का 75% उपलब्ध कराती है।
- भारत सरकार ने वस्त्रोद्योग के लिये कई निर्यात प्रोत्साहन नीतियों को अपनाया है। उदाहरण के लिये, भारत ने स्वचालित मार्ग के तहत भारतीय वस्त्रोद्योग में 100% विदेशी निवेश की अनुमति दी है।
निष्कर्षतः भारत के विकास को समावेशी तथा प्रतिभागी बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सरकार का मुख्य जोर वस्त्र क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ विनिर्माण अवसंरचना का निर्माण करना, नवाचार को बढ़ावा देने वाली प्रौद्योगिकी का उन्नयन करना है। भारत, वस्त्रोद्योग के लिये मेगा परिधान पार्क और सामान्य बुनियादी ढाँचा स्थापित करके इस क्षेत्र को संगठित कर सकता है। साथ ही राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन योजना और एकीकृत ऊन विकास कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों को सबसे प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिये।
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