प्लेट विवर्तनिकी (प्लेट टेक्टॉनिक्स) की संकल्पना को स्पष्ट कीजिये। यह हिमालय और अप्लेशियन पर्वतों के विचलन की व्याख्या करने में किस प्रकार सहायक है?
19 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
प्रश्न विच्छेद:
हल करने का दृष्टिकोण:
|
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का प्रतिपादन महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत, संवहन धारा सिद्धांत (Convection Current Theory) तथा सागर नितल प्रसरण सिद्धांत को आधार बनाकर किया गया। वर्ष 1967 में मैकेंजी एवं पार्कर ने प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का सुझाव दिया। किंतु बाद में वर्ष 1968 में मॉर्गन ने इस सिद्धांत को रेखांकित किया।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी का स्थलमंडल अलग-अलग प्लेटों में विभाजित है ये प्लेटें एक दुर्बल परत के ऊपर तैर रही है जिसे एस्थेनोस्फीयर (मेंटल का ऊपरी हिस्सा) कहा जाता है। ये प्लेटें क्षैतिज रूप से कठोर इकाइयों के रूप में एस्थेनोस्फीयर पर संचलन करती हैं।
लिथोस्फीयर में क्रस्ट एवं ऊपरी मेंटल शामिल होता है जिसकी समुद्री भागों में मोटाई 5-100 किमी. के बीच और महाद्वीपीय क्षेत्रों में लगभग 200 किमी. होती है। लिथोस्फेरिक प्लेटें (टेक्टोनिक प्लेट) छोटी प्लेटों से बड़ी प्लेटों, महाद्वीपीय प्लेटों (अरेबियन प्लेट) से लेकर महासागरीय प्लेटों (प्रशांत प्लेट) की तरह होती हैं कभी-कभी ये महाद्वीपीय एवं महासागरीय प्लेटों (जैसे- इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट) दोनों का एक संयोजन होती हैं। इन प्लेटों का एक-दूसरे के सापेक्ष संचलन तीन प्रकार से होता है:
हिमालय और अप्लेशियन पर्वत की उत्पत्ति: प्लेट विवर्तनिकी सिंद्धात में वर्णित अभिसरण सीमा सिद्धांत द्वारा हिमालय एवं अप्लेशियन पर्वत श्रंखला के निर्माण को समझा जा सकता है। अभिसरण सीमा का निर्माण तब होता है जब दो प्लेटें एक दूसरे की ओर गति करती हैं। यह तीन प्रकार से हो सकता है: 1. महासागरीय और महाद्वीपीय प्लेट के बीच अभिसरण 2. दो महासागरीय प्लेटों के बीच अभिसरण 3. दो महाद्वीपीय प्लेटों के बीच अभिसरण।
अभिसरण की सीमा सर्वाधिक विनाशकारी होती है। हिमालय और अप्लेशियन का गठन एक महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य अभिसरण से हुआ है। पहले चरण में दोनों महाद्वीपीय प्लेटों का सागरीय किनारा आपस में अभिसरित होता है तथा एक प्लेट का दूसरी प्लेट के नीचे क्षेपण होने से क्षेपित प्लेट के आंशिक गलन द्वारा मैग्मा का निर्माण होता है और यह मैग्मा ज्वालामुखी के रूप में बाहर निकलता है। हिमालय पर्वत के संदर्भ में ज्वालामुखी क्रिया नहीं होती क्योंकि इस प्लेट के हल्का होने के कारण इसका अधिक गहराई में क्षेपण नहीं हुआ है। दूसरे चरण में महासागरीय किनारा महाद्वीपीय प्लेट के नीचे पूर्णतः क्षेपित हो जाता हैं अर्थात् सागर का संकुचन होता है। अंत में अंतिम चरण में महाद्वीपीय प्लेट एक दूसरे से टकराती है तथा संपीडन के कारण उत्पन्न वलन प्रक्रिया द्वारा मोड़दार वलित पर्वत अर्थात् हिमालय तथा अप्लेशियन पर्वत की उत्पत्ति होती है।
इस प्रकार प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत न केवल हिमालय और अप्लेशियन पर्वत की उत्पत्ति को समझाने में सहायक है बल्कि इस सिद्धांत की सहायता से महासागरीय नितल, पैलोमैग्नेटिक चट्टानें, भूकंप एवं ज्वालामुखियों का वितरण, ट्रेंच पर गुरुत्वाकर्षण विसंगतियाँ आदि भौगोलिक विशेषताओं को भी समझा जा सकता है।