COVID-19 के कारण उपजी हुई परिस्थितियों के बाद देश के नागरिकों का सशक्तीकरण करने की आवश्यकता है ऐसे में आत्मनिर्भर भारत अभियान विभिन्न चुनौतियों के बावजूद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है? टिप्पणी करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
- आत्मनिर्भर भारत का परिचय
- प्रमुख स्तंभ
- अन्य कारक
- चुनौतियां
- निष्कर्ष
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वर्तमान वैश्वीकरण के युग में आत्मनिर्भरता की परिभाषा में बदलाव आया है। आत्मनिर्भरता, आत्म-केंद्रितता से अलग है। भारत 'वसुधैव कुटुंबकम्' की संकल्पना में विश्वास करता है। चूँकि भारत दुनिया का ही एक हिस्सा है, अत: भारत प्रगति करता है तो ऐसा करके वह दुनिया की प्रगति में भी योगदान देता है।‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण में वैश्वीकरण का बहिष्करण या संरक्षणवाद को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा अपितु दुनिया के विकास में मदद की जाएगी। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा के प्रथम चरण में चिकित्सा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, खिलौने जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा द्वितीय चरण में रत्न एवं आभूषण, फार्मा, स्टील जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में उन 10 क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा। सरकार ने इन 10 क्षेत्रों के आयात में कटौती का भी निर्णय किया है। इसमें फर्नीचर, फूट वेयर और एयर कंडीशनर, पूंजीगत सामान तथा मशीनरी, मोबाइल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न एवं आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल आदि शामिल हैं।
आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तंभ-
अर्थव्यवस्था: जो वृद्धिशील परिवर्तन के स्थान पर बड़ी उछाल पर आधारित हो।
अवसंरचना: ऐसी अवसंरचना जो आधुनिक भारत की पहचान बने।
प्रौद्योगिकी: 21 वीं सदी प्रौद्योगिकी संचालित व्यवस्था पर आधारित प्रणाली।
गतिशील जनसांख्यिकी: जो आत्मनिर्भर भारत के लिये ऊर्जा का स्रोत है।
मांग: भारत की मांग और आपूर्ति श्रृंखला की पूरी क्षमता का उपयोग किया जाना चाहिये।
स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण:
- भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ कुछ हिस्सों में बड़ी प्रगति हुई है परंतु अन्य में आज भी हम किसी न किसी रूप में अन्य देशों पर निर्भर हैं।
- उदाहरण के लिये भारत सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र वैश्विक बाज़ार में अपना स्थान बनाया है परंतु हार्ड वेयर के निर्माण में भारतीय कंपनियाँ उतनी सफल नहीं रही हैं। अन्य उदाहरणों में भारतीय दवा उद्योग, मोबाइल असेम्बली आदि हैं, जहाँ स्थानीय आपूर्ति शृंखला को मज़बूत किया जाना अति आवश्यक है।
तकनीकी हस्तक्षेप में वृद्धि:
- भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना के माध्यम से दो मुख्य लक्ष्यों (औद्योगिक विकास और रोज़गार) को प्राप्त करने का प्रयास किया गया।
- वर्तमान में वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में सरकारों को अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा।
- वर्तमान में COVID-19 के कारण बदली हुई परिस्थितियों में अधिकांश कंपनियों में ‘ऑटोमेशन', घर से काम करने और अनुबंधित कामगारों को अधिक प्राथमिकता देंगी।
- ऐसे में आधुनिक तकनीकी प्रगति के अनुरूप कुशल श्रमिकों की मांग को पूरा करने और लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु कौशल विकास के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना होगा।
उत्पादन श्रृंखला में भागीदारी:
- औद्योगिक विकास के साथ-साथ ही उत्पादन के स्वरूप और कंपनियों/उद्योगों की कार्यशैली में बड़े बदलाव होंगे।
- ऐसे में कृषि और अन्य क्षेत्रों को इन परिवर्तनों के अनुरूप तैयार कर औद्योगिक विकास के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान दिया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों की पैकेजिंग या उनसे बनने वाले अन्य उत्पादों के निर्माण हेतु स्थनीय स्तर पर छोटी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देकर औद्योगिक उत्पादन श्रृंखला में ग्रामीण क्षेत्रों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।
अभियान के समक्ष संभावित चुनौतियाँ:
- लागत और गुणवत्ता -
- वर्तमान में कई क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों को बहुत अधिक अनुभव नहीं है, ऐसे में लगत को कम-से-कम रखते हुए वैश्विक बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिये उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी।
- आर्थिक समस्या -
- हाल ही में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में सक्रिय पूंजी और वित्तीय तरलता की चुनौती के मामलों में वृद्धि देखी गई थी, COVID-19 की महामारी से औद्योगिक गतिविधियों के रुकने और बाज़ार में मांग कम होने से औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं में वृद्धि हुई है।
- ऐसे में सरकार को औद्योगिक अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये विभिन्न श्रेणियों में लक्षित योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिये।
- आधारिक संरचना-
- विशेषज्ञों के अनुसार, चीन से निकलने वाली अधिकांश कंपनियों के भारत में न आने का एक मुख्य कारण भारतीय औद्योगिक क्षेत्र (विशेष कर तकनीकी के संदर्भ में) में एक मज़बूत आधारिक ढांचे का अभाव है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय उत्पादक किसी-न-किसी रूप में आयात पर निर्भर रहें हैं।
- वैश्विक मानक-
- सरकार द्वारा स्थानीय उत्पादकों और व्यवसायियों को दी जाने वाली सहायता मुक्त व्यापार समझौतों और ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ’ के मानकों के अनुरूप ही जारी की जा सकती है।
निष्कर्षतः COVID-19 के कारण उपजी हुई परिस्थितियों के बाद देश के नागरिकों का सशक्तीकरण करने की आवश्यकता है ताकि वे देश से जुड़ी समस्याओं का समाधान कर सके तथा बेहतर भारत का निर्माण करने में अपना योगदान दे सके। आत्मनिर्भर भारत अभियान के समक्ष अनेक चुनौतियों के होने के बावजूद, भारत को औद्योगिक क्षेत्र में मज़बूती के लिये उन उद्यमों में निवेश करने की आवश्यकता है जिनमें भारत के वैश्विक ताकत के रूप में उभरने की संभावना है। इस दिशा में कार्य करते हुए सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के अंतर्गत 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक और व्यापक पैकेज की घोषणा की है। आत्मनिर्भर राहत पैकेज़ के माध्यम से न केवल सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों क्षेत्र में सुधारों की घोषणा की गई, अपितु इसमें दीर्घकालिक सुधारों; जिनमें कोयला और खनन क्षेत्र जैसे क्षेत्र शामिल हैं।