वर्ण-व्यवस्था पर गांधी व अंबेडकर के मध्य क्या मतभेद थे। चर्चा करें।
19 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण:
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डा. अंबेडकर का योगदान केवल संविधान निर्माण तक ही नहीं सीमित था बल्कि सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर भी उन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया। समाज में निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिलाया तो वहीँ राजनैतिक स्तर पर दलितों, शोषितों व महिलाओं को बराबरी का दर्जा प्रदान करने हेतु विधि का निर्माण कर उसे संहिताबद्ध किया।
कुछ विद्वानों का ऐसा मानना था कि महात्मा गांधी व अंबेडकर की विचारधारा सर्वथा एक-दूसरे से भिन्न थी, परंतु यह पूर्णतः सत्य नहीं है। भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी के प्रशंसक ही नहीं बल्कि अनुगामी भी थे। निश्चित ही दोनों के बीच कुछ विषयों पर मतभेद थे परंतु उनका उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण करना ही था।
गांधी और अंबेडकर दोनों तात्कालिक सामाजिक स्थितियों व परिवेश से असंतुष्ट थे। दोनों समाज का नव निर्माण करना चाहते थे, परंतु इस संदर्भ में समस्या के कारण, स्वरुप व निदान के प्रति दोनों का दृष्टिकोण एवं कार्य-पद्धति अलग-अलग थी।
गांधी जी वर्ण-व्यवस्था के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि वर्ण-व्यवस्था समाज के लिये उपयोगी है, इससे श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण को बढ़ावा मिलता है। वहीँ अंबेडकर वर्ण-व्यवस्था के कट्टर आलोचक थे। अंबेडकर के अनुसार, वर्ण-व्यवस्था अवैज्ञानिक, अमानवीय, अलोकतांत्रिक, अनैतिक, अन्यायपूर्ण एवं शोषणकारी सामाजिक योजना है।
गांधी जी का मानना था कि छुआछूत का वर्ण-व्यवस्था से सीधा संबंध नहीं है। छुआछूत वर्ण-व्यवस्था की अनिवार्य विकृति न होकर वाह्य विकृति है, अतः छुआछूत समाप्त करने हेतु वर्ण-व्यवस्था में रचनात्मक सुधार की आवश्यकता है। वहीँ अंबेडकर के अनुसार, अश्पृश्यता या छुआछूत वर्ण-व्यवस्था का अनिवार्य परिणाम है। अतः बिना वर्ण-व्यवस्था का उन्मूलन किये छुआछूत को दूर नहीं किया जा सकता है।
गांधी जी छुआछूत को दूर करने के लिये आदर्शवादी व दीर्घकालिक उपायों की बात करते थे जबकि अंबेडकर छुआछूत को दूर करने के लिये व्यावहारिक, त्वरित एवं ठोस उपायों पर बल देते थे।
गांधी जी ने सवर्ण हिंदुओं के दृष्टिकोण में परिवर्तन कर अछूतों के प्रति भेदभाव को दूर करने के प्रयासों के हिमायती थे वहीँ अंबेडकर यह मानते थे कि हिंदू धर्म के अंतर्गत अछूतों का उद्धार नहीं हो सकता अतः धर्मान्तरण द्वारा ही दलितों का उद्धार संभव है।
गांधी जी के अनुसार हिंदू धर्मशास्त्र अश्पृश्यता का समर्थन नहीं करते जबकि अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्मशास्त्र में ही अश्पृश्यता के बीज विद्यमान हैं।
निष्कर्षतः गाँधी और आंबेडकर के मध्य कुछ मतभेदों के बावजूद दोनों ही दलितों की स्थिति सुधारने के पक्षधर थे।