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प्रश्न :
भारत में मकबरों के निर्माण में अनुक्रमिक सुल्तानों द्वारा जोडे़ गए वास्तुकलात्मक अभिलक्षणों का वर्णन कीजिये।
18 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- कथन के पक्ष में तर्क
- उदाहरण
- निष्कर्ष
किसी को दफनाने के बाद उसके ऊपर बनाई गई इमारत मकबरा कहलाती है। मकबरों के निर्माण में विभिन्न दिल्ली सुल्तानों द्वारा अपने-अपने अनुरूप वास्तुकलात्मक सुधार करते हुए इनका विकास किया गया जो दिल्ली सल्तनत की वास्तुकला के नायाब नमूने हैं।
भारत में मकबरा शैली का जन्मदाता इल्तुतमिश को माना जाता है। सर्वप्रथम इल्तुतमिश ने अपने बडे़ पुत्र नसीरूद्दीन की मृत्यु के बाद उसकी याद में सुल्तानगढ़ी का मकबरा बनवाया। इसका निर्माण 1231 ई. में करवाया गया। इस मकबरे का मध्य कक्ष अष्टकोणीय है तथा चारों कोनों पर बुर्ज निर्मित किये गए हैं। इस मकबरे में स्तंभ एवं मेहरावों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली में स्थित है। यह केवल एक ही कक्ष का मकबरा है इसका निर्माण लाल पत्थरों द्वारा किया गया है। इसकी दीवारों के भीतरी भाग को कुरान की आयतों एवं नक्कासी द्वारा सजाने का कार्य किया गया है। इस मकबरे में छत बनाई गई थी किंतु टिक नही सकी और गिर गई अतः यह छत विहीन मकबरा है। बलबन ने अपना मकबरा स्वयं बनवाया था। इस मकबरे का कक्ष वर्गाकार है। इसमें मेहराब दीवार के दोनों सिरों पर पत्थर रख कर बनाए गए हैं जो मेहराब के रूप में स्पष्ट दिखाई देते हैं।
तुगलक काल में मकबरा शैली में कुछ सुधार किये गए जैसा कि गयासुद्दीन तुगलक के मकबरों में दिखाई देता है। यह तुगलकाबाद किले के बाहर उत्तरी भाग में स्थित है। यह मकबरा पंचभुजी है तथा कृत्रिम झील के मध्य पानी से घिरा हुआ है। इसके निर्माण में लाल पत्थर के साथ-साथ संगमरमर का प्रयोग किया गया है। दीवारों को संगमरमर की पट्टियों तथा मेहराबों को जालियों द्वारा सुसज्जित एवं सुशोभित किया गया। इस मकबरे की ढालू दीवारें लगभग मिस्र के पिरामिडों की तरह सुदृढ़ हैं।
फिरोज़ तुगलक की यदि बात करें तो यह कुछ हद तक हिंदू-मुस्लिम शैली को भी प्रदर्शित करता है। यह एक वर्गाकार मकबरा है। इसका निर्माण सादी रूपरेखा पर आधारित है किंतु इसकी दीवारें सुदृढ़ एवं सुसज्जित है। मकबरे की दीवारों को फूल-पत्तियों की बेलों द्वारा सुशोभित करने का प्रयास किया गया। इसमें सुंदरता के लिये संगमरमर का भी प्रयोग किया गया है।
आगे के सुल्तानों को यदि देखें तो सैयद वंश की तुलना में लोदी वंश में मकबरों का अत्यधिक निर्माण कराया गया। इसे स्थापत्य कला के क्षेत्र में मकबरों का काल कहते हैं। किंतु दोनों कालों में मकबरों का निर्माण हुआ है। इन मकबरों को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं। प्रथम वे मकबरे जिनका आकार अष्टकोणीय है, दूसरा वे जिसमें मकबरों का आकार वर्गाकार है।
सैयद वंश के मुबारक शाह का मकबरा आकार में बहुत बड़ा है तथा अष्टभुजीय है, इसकी छत पर एक विशाल गुम्बद का निर्माण किया गया है तथा अष्टभुजाओं के प्रत्येक भाग में एक छोटे गुम्बद का भी निर्माण किया गया जो पुराने सुल्तानों के मकबरे से अलग दिखाई देता है। इसके बाद सैयद वंश के मोहम्मद शाह सैयद के मकबरे में अपने पूर्व शासक द्वारा बनवाए गए मकबरे में सुधार का प्रयास किया गया। अतः इस प्रकार मकबरे में गुम्बद एवं महराबों की सुंदर छटा दिखाई देती है।
लोदी वंश के सुल्तानों ने अपने पूर्व के सैयद सुल्तानों के मकबरों का कुछ अंश लेते हुए नवीन रूपरेखा प्रस्तुत की जिसमें सुल्तान इब्राहिम लोदी ने सिकंदर लोदी के मकबरे का निर्माण कराया जो लगभग मोहम्मद शाह के मकबरे की रूपरेखा पर 1578 ई. में कराया गया। इस मकबरे में उसके चारों कोनों पर बुर्ज तथा छत पर दोहरे गुम्बद का निर्माण कराया गया।निष्कर्षतः कह सकते हैं कि भारत में मकबरों के निर्माण में विभिन्न सुल्तानों द्वारा सुधार किया गया जिसमें उसकी मज़बूती एवं सुंदरता का विशेष ध्यान दिया गया जो वास्तुकला के उत्तरोत्तर विकास को इंगित करते हैं।
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