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प्रश्न :
"छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है।" कथन की विवेचना करें।
18 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- कथन के पक्ष में तर्क
- निष्कर्ष
डॉ. नगेंद्र ने छायावाद को "स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह" कह कर व्याख्यायित किया है। इस व्याख्या में निहित तर्क को दो आधारों पर समझा जा सकता है- संवेदना एवं शिल्प।
संवेदना के स्तर पर स्थूल का तात्पर्य है- द्विवेदी युगीन सामाजिकता। द्विवेदी युग में समाज के स्तर पर नवजागरण की चेतना व्यापक रुप से दिखाई दे रही थी किंतु व्यक्ति की वैयक्तिकता का हनन हो रहा था। स्वतंत्रता और समानता के मूल्य सांस्कृतिक स्तर पर विकसित हो रहे थे पर वे सभी या तो संपूर्ण समाज को इकाई मानकर चलते थे या किसी विशेष वर्ग को। कोई भी सांस्कृतिक आंदोलन पहले बाहरी, व्यापक व स्थूल स्तरों पर विकसित होता है तथा धीरे-धीरे आंतरिक एवं सूक्ष्म स्तरों पर व्यक्त होने लगता है।
भारतेंदु युगीन नवजागरण पूर्णत: राजनीतिक व आर्थिक पक्षों पर केंद्रित था। द्विवेदी युगीन नवजागरण उसकी तुलना में सूक्ष्म हुआ किंतु व्यक्ति के स्तर तक नहीं पहुँचा। छायावाद में नवजागरण का अगला तथा सूक्ष्म रूप व्यक्त होता है तथा नवजागरण की चेतना व्यक्ति और उसके भावों को मूल इकाई के स्तर पर धारण कर लेती है।शिल्प के स्तर पर भी छायावादी काव्य स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। द्विवेदी युग में शिल्प की जो अभिधात्मक एवं इतिवृत्तात्मक संरचना विकसित हुई थी वह काफी स्कूल थी। छायावादी कविता अपनी अनुभूतिपरकता एवं तन्मयता के कारण ऐसे शिल्प को धारण नहीं करती। वह बाहरी जगत के स्थान पर व्यक्ति के भीतरी जगत को कविता का विषय बनाती है। ऐसे विषयों के लिए आवश्यक हो जाता है कि प्रतीकात्मक एवं लाक्षणिक शिल्प संरचना स्वीकार की जाए। इसी दृष्टि से इस शिल्प को द्विवेदी युग के अभिधात्मक शिल्प की तुलना में सूक्ष्म कहा जाता है।
छायावाद शब्द के अर्थ के संबंध में विद्वानों ने विभिन्न मत दिया है परंतु छायावाद की कोई एक निश्चित परिभाषा कभी तय ना हो सकी। स्वच्छंदतावाद समीक्षक डॉ नगेंद्र ने इसे स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह कह कर छायावाद की सकारात्मक व्याख्या के की है।
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